बिहार में राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के अध्यक्ष लालू प्रसाद की गैरमौजूदगी में अपेक्षाकृत कमजोर नजर आ रही आरजेडी के वोटबैंक में सेंधमारी की तैयारी शुरू हो गई है। बिहार में मुस्लिम और यादव (एमवाई) समुदाय को आमतौर पर आरेजडी का वोटबैंक माना जाता रहा है। अब जेडीयू लंबे समय से लालू यादव की अनुपस्थिति का फायदा उठाकर आरजेडी के इसी वोटबैंक में सेंध लगाने की जुगत में है।
राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) में बीजेपी की अहम सहयोगी जेडीयू ने जहां लोकसभा और राज्यसभा में तीन तलाक विधेयक के विरोध में सदन से बहिर्गमन किया, वहीं एक सप्ताह पहले बाढ़ प्रभावित इलाकों के दौरे के दौरान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने आरजेडी के वरिष्ठ नेता अब्दुल बारी सिद्दीकी के घर अचानक पहुंच मुलाकात कर कयासों को हवा दे दिया है।
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इसके अलावा कुछ ही दिन पहले लोकसभा चुनाव के समय पूर्व केंद्रीय मंत्री और आरजेडी के वरिष्ठ नेता और लालू प्रसाद के करीबी रहे मोहम्मद अली अशरफ फातमी ने 'लालटेन' का साथ छोड़ दिया था। बाद में उन्होंने जेडीयू का दामन थाम लिया। ये तीनों खबरें न केवल अखबारों की सुर्खियां बनीं, बल्कि इससे सियासी मैदान में इस कयास को भी बल मिला कि जेडीयू की नजर आरजेडी के वोटबैंक पर है।
हालांकि कहा जा रहा है कि उक्त तीनों खबरों का संबंध प्रत्यक्ष तौर पर जेडीयू से है। किन्तु इसका सबसे ज्यादा असर आरजेडी पर पड़ता नजर आ रहा है। राजनीतिक समीक्षक सुरेंद्र किशोर मानते हैं कि लालू प्रसाद की अनुपस्थिति में आरजेडी कमजोर हुई है, इसे कोई नकार नहीं सकता। उन्होंने कहा कि “फातमी लालू प्रसाद के नजदीकी रहे हैं और प्रारंभ से ही स्वभिमानी व्यक्ति रहे हैं। आरजेडी में जिस तरह की स्थिति है, उसे वह झेल नहीं पाए और उन्होंने पाला बदल लिया।”
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सुरेंद्र किशोर कहते हैं, "राजनीति में वोटबैंक किसी की मिल्कियत नहीं होती। कोई भी दल कमजोर होगा तो मतदाता उससे छिटकेंगे और दूसरे दल उसे लपक लेंगे। यही हाल आज बिहार में है। हालांकि इसके लिए 2020 के विधानसभा चुनाव का इंतजार करना होगा।"
वहीं आरजेडी के नेता इसे वोटबैंक में सेंध से जोड़कर देखना सही नहीं मानते। आरजेडी विधायक भाई वीरेंद्र कहते हैं, "मुख्यमंत्री दरभंगा में बाढ़ प्रभावित इलाकों को देखने और पीड़ितों से मिलने गए थे। वहीं से सिद्दीकी साहब भी हैं। सिद्दीकी साहब मुख्यमंत्री के साथ काम कर चुके हैं। ऐसे में मुख्यमंत्री उनके घर चले गए और चाय पी ली। इसे किसी राजनीति से जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए।" उन्होंने दावा किया कि आरजेडी आज भी राज्य में सबसे ज्यादा विधायकों वाली पार्टी है।
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वैसे, आरजेडी के ही एक अन्य नेता का कहना है कि पार्टी को यह पता है कि बिहार में मुस्लिम नेताओं की लंबी सूची सिर्फ आरजेडी और कांग्रेस के पास है। जेडीयू के पास अभी तक कोई कद्दावर मुस्लिम नेता नहीं है, इसलिए वह इस सूची को लंबा करना चाहेगी। जेडीयू की कोशिशों का अंदाजा उन्हें भी है। फातमी के जाने के बाद आरजेडी भी अपने मुस्लिम नेताओं की हिफाजत में जुटी है। उन्होंने कहा कि यही कारण है कि पार्टी में मुस्लिम नेताओं की पूछ बढ़ाई जा रही है।
पटना के वरिष्ठ पत्रकार नलिन वर्मा कहते हैं कि सभी दल अपना वोटबैंक बनाते हैं। लेकिन जेडीयू का आरजेडी के मुस्लिम वोटबैंक में पूरी तरह सेंध लगा पाना आसान नहीं है। उन्होंने कहा कि जेडीयू ऐसे निर्णय से भले ही एनडीए में रहकर बीजेपी से अलग दिखने की कोशिश कर रही है, लेकिन बीजेपी के साथ रहने के बाद बिहार के मुस्लिम वोटबैंक में किसी भी पार्टी के लिए सेंध लगाना आसान नहीं है। हालांकि उन्होंने इतना जरूर कहा कि इससे जेडीयू बीजेपी पर दबाव बनाने की स्थिति में जरूर रहेगी।
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बहरहाल, बिहार में लोकसभा चुनाव में आरजेडी को एक भी सीट नहीं मिलने और लालू की गैर मौजूदगी से जो खालीपन हुआ है, नीतीश उसका लाभ उठाते हुए आरजेडी के मुस्लिम वोटबैंक में सेंध लगाना चाह रहे हैं। यही कारण है कि बीजेपी के साथ रहकर भी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ सहित उसके 19 संगठनों की जांच कराकर नीतीश यह जताना चाहते हैं कि बिहार में अब मुसलमानों के असली रक्षक वही हैं।
कुल मिलाकर, स्थिति से साफ है कि अगले साल होने वाले बिहार विधानसभा चुनाव के पहले बिहार की सियासत में कई उठापटक देखने को मिल सकते हैं। लेकिन इस नूराकुश्ती में कौन कितने फायदे में रहेगा, यह कहना अभी कठिन है।
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