सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को बिहार के महाराजगंज के पूर्व सांसद प्रभुनाथ सिंह को 1995 के दोहरे हत्याकांड के मामले में दोषी ठहराते हुए उन्हें बरी करने के पटना हाईकोर्ट के आदेश को पलट दिया। न्यायमूर्ति एस. कौल, अभय एस. ओका और विक्रम नाथ की विशेष पीठ ने पटना हाईकोर्ट के आदेश को रद्द करते हुए प्रभुनाथ सिंह को आईपीसी की धारा 302 (हत्या) के तहत दोषी करार दिया। पीठ ने बिहार सरकार को आदेश दिया है कि वह आरजेडी नेता को एक सितंबर को शीर्ष अदालत के समक्ष पेश करे, जब उन्हें सजा सुनाई जाएगी।
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छपरा में 23 अगस्त 1995 को दो लोगों- राजेंद्र राय और दरोगा राय की कथित तौर पर गोली मारकर हत्या कर दी गई। आरोप है कि दोनों ने विधानसभा चुनाव में प्रभुनाथ सिंह के कहे अनुसार वोट नहीं दिया था, इसीलिए दोनों की हत्या कर दी गई। आदेश में कहा गया कि यह दिखाने के लिए पर्याप्त सबूत हैं कि सिंह ने 1995 में छपरा में एक मतदान केंद्र के पास राजेंद्र राय और दरोगा राय की गोली मारकर हत्या कर दी थी।
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शीर्ष अदालत ने इस साल मार्च में सबूतों की कमी के आधार पर निचली अदालत द्वारा प्रभुनाथ सिंह को बरी करने के फैसले को बरकरार रखने के पटना उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ 2012 में मृतक के भाई द्वारा दायर अपील पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। प्रभुनाथ सिंह वर्तमान में एक अन्य हत्या मामले में आजीवन कारावास की सजा काट रहे हैं।
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बिहार में प्रभुनाथ सिंह की छवि एक बाहुबली नेता की रही है। इनके रुतबे का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि कभी ये आरजेडी अध्यक्ष लालू प्रसाद के करीबी रहे, तो कभी ये बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश के नजदीकी रहे। वर्ष 2010 से वे लालू प्रसाद के साथ हैं। प्रभुनाथ सिंह की पहचान दबंग छवि वाले नेता के रूप में रही है। शुरुआती दौर में वो मशरख विधानसभा से चुनाव लड़े। मशरक के विधायक रहे रामदेव सिंह काका की 1980 में हुई हत्या के मामले में नाम आने के बाद प्रभुनाथ सिंह चर्चा में आए।
इसके बाद 1985 में वे मशरख से निर्दलीय विधायक बन गए। वर्ष 1990 में जनता दल ने इन्हें टिकट दिया और फिर चुनाव जीत गए। इसके बाद 1998 से 2014 तक चार बार लोकसभा में इन्होंने महाराजगंज का प्रतिनिधित्व किया। इसमें तीन बार नीतीश कुमार की पार्टी से तो एक बार लालू यादव की पार्टी के सांसद बने।
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