बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इंजीनियरिंग की डिग्री तो ली है लेकिन लगता नहीं कि वह अपनी इस प्रतिभा का उपयोग प्रशासनिक कार्य में कर पा रहे हैं। उदाहरण तो कई हैं, पर सड़कों के मामले में तो इसे देखा ही जा सकता है।
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नीतीश ने पिछले पांच साल के दौरान कई बार घोषणा की कि उनकी सरकार जिला मुख्यालयों से राजधानी पटना आने-जाने के लिए सड़कों की ऐसी व्यवस्था करने जा रही है कि कुछ ही घंटे लगें। अभी 7 सितंबर को वर्चुअल रैली में भी उन्होंने कहा कि ‘हमने लक्ष्य रखा कि कहीं से भी राजधानी पटना आने में 6 घंटे से ज्यादा समय न लगे। वह लक्ष्य पूरा हुआ तो हमने अब समय को घटा कर 5 घंटे करने का लक्ष्य रखा है।’ सड़कें तो बनी हैं, फिर भी, किसी को भी ऐसे लोग खोजने होंगे जिसने इतने समय में यात्रा पूरी कर ली हो। दरअसल, सिर्फ सड़क बना देने से यात्राएं सुगम नहीं होतीं। जगह-जगह बॉटल नेक्स हैं और लोग घंटों यहां- वहां जाम में फंसे रहते हैं। यह रोजाना की बात है।
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इतना ही नहीं है। पथ निर्माण विभाग ने सूचना के अधिकार (आरटीआई) के तहत मांगी गई जानकारी में जो सूचनाएं दी हैं, उससे ही साफ है कि सड़क और पुल- पुलिया निर्माण को लेकर नीतीश सरकार किस तरह काम कर रही है। नेशनल हाईवे में स्टेट फंड से 2014-15 से 2019-20 तक एक भी किलोमीटर सड़क नहीं बनी है। इसी तरह स्टेट हाईवे में केंद्र सरकार की तरफ से वित्तपोषित (फन्डेड) राष्ट्रीय सम विकास योजना (आरएसवीवाई) से 2016-17 से 2019-20 तक एक भी किलोमीटर सड़क का निर्माण नहीं हुआ है। स्टेट हाईवे में ही स्टेट प्लान के तहत 2010-11 से 2013- 14 तक एक भी किलोमीटर सड़क नहीं बनी।
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इस मद में सबसे अधिक काम 2015-16 (469.50 किमी) और 2016-17 (367.88 किमी) में हुए। उसके बाद यह घटते चले गए और 2019-20 में 41.77 किलोमीटर सड़क बनी। मेजर डिस्ट्रिक्टरोड्स (एमडीआर) योजना के तहत भी इसी तरह असंगति रही है। 2012- 13 में 1156.79 किलोमीटर सड़क बनी और यह निरंतर बढ़ती गई लेकिन 2016-17 में इस पर ब्रेक लग गया। उस साल 1135.13 और उससे अगले साल 892.59 किमी सड़क ही बनी। पर लोकसभा चुनाव और फिर, नजदीक के विधानसभा चुनाव को देख 3175.71 किमी सड़क बनाई गई।
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सड़क और पुल-पुलिया निर्माण पर पथनिर्माण विभाग ने दस साल में 44,774 करोड़ रुपये खर्च किए हैं लेकिन 2012-13 से अब तक सबसे कम 3477.18 करोड़ 2019-20 में खर्च किए गए। जिस तरह से पुल और एप्रोच रोड धंसने की खबरें अभी तीन महीने में वायरल हुई हैं, उनकी चर्चा बख्श भी दें तो यह भी ध्यान देने की बात है कि इनके निर्माण की संख्या भी 2016-17 से ही घटती गई है।
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