पैंगोंग त्सो और गलवान घाटी में जो कुछ हुआ, उसके बाद भी अगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चीन का नाम भी एक आक्रामक के तौर पर लेने से बचते रहे और कहा कि ‘भारतीय क्षेत्र का एक इंच भी नहीं खोया गया है’, तो आखिर, सैन्य स्तर पर नौ चक्रों की बातचीत में क्या विचार विमर्श किया गया? क्या एक आक्रामक के तौर पर चीन का नाम लेने से आनाकानी और वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर उल्लंघनों से मना करना बातचीत में चीन को मजबूत स्थिति नहीं देते हैं?
बातचीत के नौवें चक्र के बाद पैंगोंग त्सो से पीएलए की सुचिंतित वापसी के दृश्य की हालांकि भारतीय सेना ने तस्वीरें खींची और इसकी वीडियो रिकॉर्डिंग की, यह देखना होगा कि चीनी पूरी सहमत प्रक्रिया का पालन करते हैं या नहीं। आखिर, वापसी की इसी किस्म की आशाएं सरकार के इस दावे के साथ पहले भी जगती रही हैं कि राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और चीन के विदेश मंत्री वांग यी के बीच 5 जुलाई, 2020 को हुए विस्तृत वीडियो कॉल के बाद युद्ध की स्थिति शांत हो गई है। पर आरंभिक कदम उठाने के बाद चीनी सेनाएं रुकी रहीं।
Published: 20 Feb 2021, 7:22 PM IST
फिर, सैन्य स्तर की बातचीत तो जारी रही ही, मास्को में शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के रक्षा मंत्रियों के सम्मेलन के अवसर पर 4 सितंबर को राजनाथ सिंह ने चीनी रक्षा मंत्री जनरल वी फेंगे से संकट के पारस्परिक स्वीकार्य समाधान पर बातचीत की। एक हफ्ते बाद उसी जगह विदेश मंत्री एस. जयशंकर एससीओ विदेश मंत्रियों के सम्मेलन में वांग यी से विवाद पर बात करने और उसे खत्म करने के लिए मिले। इससे पहले गलवान घाटी में चीनी सेना के साथ हुई हिंसक झड़प में 20 भारतीय सैनिकों की शहादत के दो दिनों बाद भी गतिरोध समाप्त करने के लिए दोनों मंत्रियों ने बात की थी।
भारत ने लगातार दावा किया है कि इसने चीन से कई प्रमुख रियायतें हासिल की हैं। लेकिन इसके विपरीत लगता है कि भारत ने अपनी ही सीमा के क्षेत्रों से अपने जवानों की वापसी और भारतीय क्षेत्र के अंदर आंशिक ‘बफर जोन’ बनाने पर सहमत होकर चीन को अपने इलाके सौंप दिए हैं। इसका परिणाम यह है कि भारत वह यथास्थिति बनाए रखने पर जोर देने में विफल रहा है जिससे चीन द्वारा कब्जा किए गए इलाके वापस पाने की हालत होती।
Published: 20 Feb 2021, 7:22 PM IST
इस तरह चीन दो पड़ोसियों के बीच विभाजन करने वाली 3,488 किलोमीटर हिमालयी सीमा के एलएसी को एकतरफा तरीके से बदलने में सफल रहा है। 5 जुलाई को भी जिस सहमति पर पहुंचा गया था, उसमें दोनों पक्षों को अपनी-अपनी जगह से कम-से-कम 1.5 किलोमीटर हटना था ताकि एलएसी के दोनों तरफ 2 किलामीटर का बैरियर बनाए रखा जाए और बॉर्डर पेट्रोलिंग इस तरह की जाए कि किसी सैन्य आमना-सामना की पुनरावृत्ति न हो।
यह असली सवाल बना हुआ है कि पूर्वी लद्दाख में चीन के इस तरह बढ़ने के पीछे उसका उद्देश्य क्या है, खास तौर से तब जब उसने उन क्षेत्रों में अपने लोगों और साजो-सामान की सुरक्षा और नियंत्रण के लिए काफी निवेश कर रखा है। चीन के साथ-साथ ताईवान और सिंगापुर की प्रमुख आबादी को ‘हैन’ कहते हैं। चीनी हैन संस्कृति लक्ष्य-आधारित है और इसकी सेना की सोच है कि अगर वह कोई इलाका अपनी इच्छा से कब्जा कर सकती है जहां कम प्रतिरोध हो, तो इससे अनुरोध पर वापसी की उम्मीद नहीं की जा सकती। इसलिए लद्दाख में चीनी सैन्य आक्रमण महज सुनियोजित नहीं है बल्कि इसके पीछे दीर्घकालीन लक्ष्य को पूरा करने की रणनीतिक इच्छा है। आखिरकार, पीएलए के कदम को उच्चतम नेतृत्व- राष्ट्रपति शी की अध्यक्षता वाले केंद्रीय सैन्य आयोग (सीएमसी), से निर्देश प्राप्त था।
Published: 20 Feb 2021, 7:22 PM IST
अनदेखी नहीं की जा सकती राहुल के इन 5 सवालों की
Published: 20 Feb 2021, 7:22 PM IST
Google न्यूज़, नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें
प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia
Published: 20 Feb 2021, 7:22 PM IST