इस यात्रा में हर तरह के लोग हैं। भारत के बहुरंगी चरित्र की तरह। महिलाएं, युवा और बुजुर्ग भी। कुछ नंगे पैर। इन्हें किसी ने बुलाया नहीं है। खुद-ब-खुद चले आए हैं। कोई राहुल गांधी को देखने आया है। कोई राहुल गांधी का संदेश सुनकर ‘भारत जोड़ने’ के यज्ञ में आहुति देने। भारत यह रंग कई दशक बाद देख रहा है। मुख्यधारा का मीडिया इसे लेकर जैसा भी नैरेटिव बनाए, सोशल मीडिया पर लोग इसे अपने तरह से सेलेब्रेट कर रहे हैं। हाथों हाथ ले रहे हैं। बीजेपी ने इस पर जैसी बौखलाहट भरी प्रतिक्रिया दी है, महंगाई से त्रस्त समाज इसे बड़ी उम्मीद से देख रहा है। यही भारत जोड़ो है।
तिरुवनंतपुरम प्रेस क्लब में हमारी मुलाकात हुई प्रोफेसर एचएम देसार्डे से। 70 साल से ज्यादा की उम्र। दो योजना आयोग के सदस्य रह चुके हैं। सिविल सोसाइटी के साथ आए हैं। मीडिया को बता रहे हैं कि लोगों को ‘भारत जोड़ो पदयात्रा’ से क्यों जुड़ना चाहिए। प्रो देसार्डे ने अपने होश में हुई सभी पदयात्राएं न सिर्फ देखी हैं, उनमें शामिल भी हुए हैं। बताते हैं कि राहुल की पदयात्रा की तुलना चंद्रशेखर की पदयात्रा से नहीं की जा सकती। वह पदयात्रा छोटी थी और उसमें कई बार चंद्रशेखर वाहनों पर चलते थे। यहां राहुल गांधी कन्याकुमारी से कश्मीर पैदल चलकर ही जाएंगे। सुनील दत्त की पदयात्रा भी उन्हें याद है। सुनील दत्त की पदयात्रा में खूब लोग उमड़ते थे। राहुल की पदयात्रा सुनील दत्त की पदयात्रा से ज्यादा लोगों को आकर्षित कर रही है।
पांच सितंबर की रात से मैं इस यात्रा के साथ हूं। जिन 117 पद यात्रियों को भारत यात्री नाम दिया गया है उनमें से कुछ मेरे इलाके के परिचित भी हैं। शुरू दिन से ही अपार उत्साह से लबरेज। राहुल गांधी के साथ 5 महीने 15 दिन रहने की उनकी उत्कंठा अब भी कायम है। मेरे हिसाब से पदयात्रा ने शुरू होने के साथ ही अपना लक्ष्य आधे से ज्यादा हासिल कर लिया है। इसका घोषित उद्देश्य बेरोजगारी के खिलाफ लोगों को जागृत करना है और साथ ही समाज में धार्मिक असहिष्णुता के खिलाफ प्यार और अपनेपन का माहौल तैयार करना है। ये दोनों ही काम बेहतर तरीके से हो रहे हैं।
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राहुल पट्टम से चले तो सफेद कुर्ता और ऑफ व्हाइट पैजामा या ट्राउजर पहने थे। पहला पड़ाव वेल्यारी जंक्शन था। आराम करने के बाद जब शाम को चलना शुरू किया तो वही टीशर्ट उनके बदन पर थी (जिसे लेकर बीजेपी आईटी सेल ‘परेशान’ थी) और वही काला ट्राउजर। राहुल गांधी सबसे ज्यादा सहज इन्हीं कपड़ों में महसूस करते हैं। राहुल की इस टी शर्ट के बारे में एक नया खुलासा हुआ कि राज्यसभा सांसद इमरान प्रतापगढ़ी ने राहुल से कहा आपकी टी शर्ट ने तो आग लगा रखी है। राहुल ने बताया कि पंजाब में किसी ने यह टी शर्ट उन्हें गिफ्ट की थी। वैसे, राहुल महंगे ब्रांड्स के शौकीन नहीं हैं। उनका जोर सादगी पर ही रहता है। दिखावा करने वालों को टोक भी देते हैं। पहले ज्यादा टोकते थे, अब कम कर दिया है। केसी वेणुगोपाल वही सफेद लुंगी और सफेद आधी बांह का शर्ट पहनते हैं। उनके लिए वही आरामदेह है। उसी में चल भी लेते हैं, सो भी जाते हैं।
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कन्याकुमारी से तिरुवनंतपुरम तक पदयात्रा को जैसा जन समर्थन मिला, उत्साहित करने वाला है। एक काबिले जिक्र घटना यह कि राहुल जब तिरुवनंतपुरम आ रहे थे, एक पादरी उनके पास जाने की कोशिश में था। बीजेपी आईटी सेल के एक पादरी के बयान को लेकर भाजपाई हंगामे के बाद दूसरे नेता नहीं चाहते थे कि पादरी राहुल के करीब भी जाएं। मगर राहुल गांधी ने देख लिया और उससे पूछा: “क्या आप मेरे साथ चलना चाहते हैं”। पादरी ने मुस्कुराकर हां कहा तो राहुल ने उन्हें अपने साथ लिया और कई सौ मीटर तक उन्हें साथ लेकर चलते रहे।
कुछ अवकाश भी: सुनने में आ रहा है कि पदयात्रा में कुछ अवकाश भी होंगे। पहला ब्रेक तो राहुल तब ले रहे हैं जब अपनी मां सोनिया गांधी से मिलने जाएंगे। तब यात्रा कोच्ची के नजदीक होगी और एक दिन आराम का रहेगा। पदयात्रा के रास्ते में पड़ने वाले जिन राज्यों में चुनाव हैं, राहुल वहां एक-दो दिन प्रचार में भी जा सकते हैं। उतने दिन यात्रा रुकी रहेगी। राहुल के बिना यात्रा एक कदम भी आगे नहीं बढ़ेगी।
बैर कन्हैया से था: तिरुवनंतपुरम की एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी में पदयात्रा रात्रि विश्राम नहीं कर पाई थी। केरल स्टूडेंट विंग की नाराजगी के कारण जगह बदलनी पड़ी थी। विंग की नाराजी कांग्रेस या राहुल गांधी से नहीं थी। उनका विरोध कन्हैया कुमार से था जो पहले कम्युनिस्ट थे, बाद में कांग्रेसी हुए।
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अलग है सिविल सोसायटी का इंतजाम: योगेंद्र यादव की सिविल सोसाइटी के लोग पदयात्रा में पूरे समय शामिल रहेंगे मगर वे न तो कांग्रेसियों के साथ खाना खाते हैं और न ही उनके सोने का इंतजाम कांग्रेस की तरफ से होता है। कांग्रेस से वे कोई मदद नहीं ले रहे। कंटेनर में सिर्फ वही 117 लोग सो रहे हैं जिनका नाम शुरू से शामिल किया गया है और जो 50,000 आवेदकों में से चुने गए हैं।
समस्या नाखून उखड़ने की: पैदल चलने वालों को कोई और दिक्कत तो नहीं आ रही मगर कुछ लोगों के पैर के नाखून उखड़ रहे हैं, खासकर अंगूठे का नाखून। जूते-मोजे में पैर दबा होता है। ऊपर से पसीने की नमी मिलती है, नीचे से दबाव पड़ता है। इतना पैदल चलने की आदत है नहीं, सो नाखून उखड़ जाता है। जूता खोलकर जब मोजे उतारते हैं तो मोजे के साथ-साथ नाखून भी बाहर आ जाता है। दिग्विजय सिंह ने शुरू में ही चेताया था कि ऐसे जूते-मोजे पहने जिनमें खूब हवा आती हो। उन्होंने तो बाथरूम स्लीपर तक की सिफारिश कर दी थी। मगर बाथरूम स्लीपर की दिक्कत यह है कि इतनी भीड़ में चप्पल अगर किसी के पैर के नीचे आ जाए तो फिर बद्धी टूट जाएगी और नंगे पांव ही चलना पड़ेगा। जिन लोगों के नाखून उखड़ गए हैं, वे पदयात्रा जारी रखे हुए हैं। एंबुलेंस चल रही है मगर किसी को भी अभी तक मेडिकल हेल्प की जरूरत नहीं पड़ी है।
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इसमें दो राय नहीं कि पदयात्रा से कांग्रेस को बहुत मजबूती मिली है। दिग्विजय सिंह इस यात्रा के अध्यक्ष हैं और वह सभी जगह संगठन के लोगों को राहुल गांधी से मिलवा रहे हैं। युवक कांग्रेस, महिला कांग्रेस, अल्पसंख्यक विभाग, सेवादल... संगठन का ऐसा कोई अंग नहीं है जिससे राहुल न मिलते हों। मान-सम्मान की यह घूंट संगठन के नेताओं में नया जोश भरने वाली है।
इससे भी बड़ी उपलब्धि यह है कि सोशल मीडिया पर पूरा देश जैसे राहुल गांधी के साथ खड़ा नजर आ रहा है। ऐसा पहली बार हो रहा है कि बीजेपी की आईटी सेल हमला राहुल गांधी पर करती है और बचाव में देश के लोग उतर आते हैं। राहुल गांधी की पदयात्रा ने कांग्रेस के समर्थकों और महंगाई से त्रस्त सत्ता विरोधी लोगों को एक मॉरल ग्राउंड दे दिया है जिस पर खड़े होकर वे भाजपा का विरोध कर पा रहे हैं। दरअसल यह पदयात्रा एक ऐसा विशाल बैकड्रॉप बनकर उभरी है जिसके सामने सत्ता पक्ष के सारे दांव, उसका खोखलापन खुलकर नजर आ रहा है। जैसे कोई हैलोजन जल गया हो और सबकुछ साफ दिखने लगा हो।
(दीपक असीम इंदौर के पत्रकार हैं और 'भारत जोड़ो यात्रा' के साथ-साथ चल रहे हैं )
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