उत्तर प्रदेश सरकार ने 2013 में हुए मुजफ्फरनगर दंगे से संबंधित 77 मुकदमे बिना कोई कारण बताए वापस ले लिए हैं। यह जानकारी सरकार के वकील ने सुप्रीम कोर्ट में दी है। जिन मामलों को वापस लिए गए हैं, उनमें से ज्यादातर में अधिकतम सजा आजीवन कारावास है। सांसदों और विधायकों के खिलाफ आपराधिक मामलों के जल्द ट्रायल के मामले में नियुक्त एमाइकस क्यूरी वकील विजय हंसारिया ने ये स्टेटस रिपोर्ट दाखिल की है।
साल 2013 में हुए मुजफ्फरनगर दंगे के मामले में कुल 510 केस दर्ज किए गए थे। इन 510 मामलों में से 175 मामलों में आरोप पत्र दाखिल किया गया है, 165 मामलों में अंतिम रिपोर्ट जमा की गई और 170 मामलों को खारिज कर दिया गया है। अब यूपी सरकार ने सीआरपीसी की धारा 321 के तहत 77 मुकदमे वापस ले लिए हैं। यूपी सरकार ने 24 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट में स्टेटस रिपोर्ट दाखिल कर इस बात की जानकारी दी है।
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रिपोर्ट में सरकारी आदेश में मामला वापस लेने का कोई कारण भी नहीं बताया गया। केवल यह कहा गया है कि प्रशासन ने पूरी तरह से विचार करने के बाद विशेष मामलों को वापस लेने का निर्णय लिया है। एमाइकस क्यूरी वकील विजय हंसारिया ने रिपोर्ट में यह भी जानकारी दी है कि मुजफ्फरनगर दंगों से संबंधित जिन मामलों को वापस लिया गया है, उन पर हाईकोर्ट CRPC की धारा 402 के तहत जांच कर सकता है।
दरअसल सुप्रीम कोर्ट में इन दिनों सांसदों/विधायकों के खिलाफ लंबित आपराधिक मुकदमों के तेजी से निपटारे के लिए विशेष अदालतों के गठन पर सुनवाई चल रही है। कोर्ट ने सभी राज्यों में लंबित इस तरह के मुकदमों की जानकारी मांगी थी। इससे पहले सुनवाई में कोर्ट ने यह निर्देश भी दिया था कि बिना हाईकोर्ट की अनुमति लिए सांसदों और विधायकों के खिलाफ लंबित मुकदमे राज्य सरकार वापस नहीं ले सकती है।
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इस मामले में एमिकस क्यूरी नियुक्त किए गए वरिष्ठ वकील विजय हंसारिया ने कोर्ट को पिछली सुनवाई में जानकारी दी थी कि यूपी सरकार कई वर्तमान और पूर्व जनप्रतिनिधियों के ऊपर मुजफ्फरनगर दंगे में लंबित मुकदमों को वापस लेने की तैयारी कर रही है। अब कोर्ट को सौंपी नई रिपोर्ट में एमिकस क्यूरी ने बताया है कि उत्तर प्रदेश सरकार ने मुजफ्फरनगर दंगों से जुड़े कुल 77 मामले वापस लेने का आदेश जारी किया है, जिसमें से कई मामले सांसदों और विधायकों से जुड़े हैं।
दाखिल रिपोर्ट में सुप्रीम कोर्ट से अपील की गई है कि वह राज्य सरकार को सभी मामलों के लिए अलग-अलग कारण बताते हुए आदेश जारी करने को कहें। सरकार से यह भी कहा जाए कि वह यह बताए कि क्या यह मुकदमा बिना किसी ठोस आधार के, दुर्भावना के तहत दर्ज कराया गया था। रिपोर्ट में कोर्ट को दूसरे राज्यों के बारे में भी जानकारी दी गई है।
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समाजवादी पार्टी के शासनकाल में साल 2013 में मुजफ्फरनगर में दंगे हुए थे। दंगों में लगभग 62 लोगों की मौत हुई थी और हजारों लोग बेघर हुए थे। इस मामले में पुलिस ने खुद ही नोटिस लेकर बीजेपी नेता संगीत सोम, कपिल देव अग्रवाल, सुरेश राणा, साध्वी प्राची आदि लोगों पर भड़काऊ भाषण देने और समुदाय विशेष के खिलाफ उकसाने के आरोप में केस दर्ज कराया था।
मुजफ्फरनगर में समाजवादी पार्टी के नेता साजिद हसन ने इस पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है। विधानसभा चुनाव नजदीक होने के कारण समाज के बीच में पुराने झगड़े के जख्मों को कुरेद कर खराब सियासत की जा रही है जो अत्यंत ही आपत्तिजनक है। अगर ये लोग निर्दोष थे तो अदालत अपने आप बरी करती अथवा जो लोग पीड़ित हैं, कम से कम उनको तो सुना जाना चाहिए था। सरकार की नीयत समाज मे भाईचारा कायम करने की होनी चाहिए।
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