रसगुल्ले को लेकर पश्चिम बंगाल और ओडिशा के बीच खींचतान जगजाहिर है। दो साल पहले पश्चिम बंगाल को रसगुल्ले के लिए जीआई (जियोग्राफिकल इंडीकेशन अर्थात भौगोलिक सांकेतिक) टैग मिला था तो ओडिशा ने आपत्ति जताई थी। अब इस लड़ाई में ओडिशा को जीत मिली है।अब दो साल बाद ओडिशा को उसके वर्जन के ओडिशा रसगुल्ले को भी जीआई टैग मिल गया है।
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चेन्नई की जीआई रजिस्ट्री ने ओडिशा रसगुल्ले को अपनी वेबसाइट पर एक औपचारिक सर्टिफिकेट इशू करके जीआई टैग दे दिया और यह 22 फरवरी, 2028 तक मान्य होगा। ओडिशा की जगन्नाथ संस्कृति के साथ रसगुल्ले का प्राचीन रिश्ता है और इससे यह स्पष्ट होता है कि ओडिशा की परंपरा भी रसगुल्ले से जुड़ी है। ओडिशा के लोगों का कहना है कि सदियों पहले रथयात्रा के दौरान माता लक्ष्मी को मनाने के लिए महाप्रभु जगन्नाथ उन्हें रसगोला खिलाकर उनका गुस्सा शांत किया था। यह प्रथा ओडिशा में अब भी जारी है।
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गौरतलब है कि नवंबर 17 को बंगालर रसोगोल्ला का जीआई टैग पश्चिम बंगाल को मिल गया था। इस फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती भी दी गई थी। ओडिशा सरकार के तत्कालीन वित्तमंत्री शशिभूषण बेहरा ने कहा था कि यह मिठाई ओडिशा की है और रहेगी। फरवरी 2018 को ओडिशा हाईकोर्ट में इसी प्रकरण को लेकर जनहित याचिका दायर की गई थी। इसमें पश्चिम बगाल को आवंटित जीआई टैग पर सवाल उठाए गए थे।
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किसी क्षेत्र विशेष के उत्पादों को जियोग्रॉफिल इंडीकेशन टैग (जीआई टैग) से खास पहचान मिलती है। जीआई टैग किसी उत्पाद की गुणवत्ता और उसके अलग पहचान का सबूत है।
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