असम के बाघजान क्षेत्र में स्थित प्राकृतिक गैस कुओं में से एक में हुए विस्फोट के बाद लगी आग 100 दिन बाद भी धधक रही है और ऑयल इंडिया लिमिटेड (ओआईएल) अब तक इस पर का नियंत्रित करने में असफल रहा है। बुधवार को वाणिज्य और उद्योग मंत्री चंद्र मोहन पटोवारी ने कहा कि कुएं की आग बुझाने में छह से आठ सप्ताह का समय और लग सकता है। पटोवारी ने असम विधानसभा में कांग्रेस के दुर्गा भूमिज को शून्य काल के नोटिस का जवाब देते हुए कहा, "कनाडा के विशेषज्ञ 'स्नबिंग' उपकरण के साथ असम आ रहे हैं। इस प्रक्रिया में छह-आठ सप्ताह लग सकते हैं।"
गैस का रिसाव 27 मई 2020 को शुरू हुआ, जिसमें बीते 9 जून को आग लग गई। आग बुझाने की कोशिश में दो दमकल कर्मियों की मौत हो गई। इतने दिनों के बाद भी गैस रिसाव पर काबू नहीं पाया जा सका है। सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम ऑयल इंडिया लिमिटेड (ओआईएल) ने गैस रिसाव को रोकने के लिए वैश्विक विशेषज्ञों से मदद मांगी थी। जून में सिंगापुर की एक फर्म 'अलर्ट डिज़ास्टर्स कंट्रोल' की टीम ओएनजीसी और ओआईएल के साथ आग बुझाने घटना स्थल पर पहुंची थी। 22 जून को कुएं के सिर से चरखी (स्पूल) निकालते वक्त एक धमाका हो गया, जिसमें तीन विदेशी विशेषज्ञ घायल हो गएं।
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रिसाव के बाद कुएं के डेढ़ किलोमीटर के दायरे में रहने वाले करीब दो हजार लोगों को यहां से ले जाया गया है और अब वे राहत कैंपों में रह रहे हैं। राहत कार्य के लिए एनडीआरएफ की टीम को भी बुलाया गया।
9 जून को तेल क्षेत्र में आग लगने के बाद से लगातार विरोध प्रदर्शनों के कारण ओआईएल की व्यावसायिक गतिविधियाँ बाधित हुई हैं। 7 जुलाई को विस्थापित होने वाले ग्रामीणों ने कुएं में कूदने और अपने जीवन को समाप्त करने के प्रयास में तेल कुएं स्थल की ओर मार्च किया। प्रदर्शनकारियों को पुलिस और जिला अधिकारियों ने गैस के कुएं तक पहुंचने से रोक दिया।
18 जुलाई को बागजान के एक गाँव के 45 वर्षीय निवासी शुक्रेश्वर नेउग का कीटनाशक के सेवन के बाद डिब्रूगढ़ जिले के असम मेडिकल कॉलेज अस्पताल में निधन हो गया। नेउग को आग में क्षतिग्रस्त हुए घर का मुआवजा नहीं मिला था।
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यह क्षेत्र डिब्रू-साइखोवा नेशनल पार्क के निकटवर्ती क्षेत्र में स्थित है।यह क्षेत्र हूलॉक गिबोन जानवर के प्रवास का इलाका भी है। यह इको-सेंसिटिव ज़ोन है, जहां डिब्रु सैखोवा राष्ट्रीय उद्यान भी है, जो प्रवासी पक्षियों और जंगली घोड़ों के लिए जाना जाता है। गांव वालों का कहना है कि इस उद्यान में कई जगहों पर तेल फैल चुका है। इस बारे में सोशल मीडिया पर ढेरों वीडियो साझा किए जा रहे हैं। कथित तौर पर मछलियों और डॉल्फिन की मौत होने के बाद राज्य के वन विभाग ने इस कंपनी को नोटिस जारी किया है।
बाघजान ऑयलफ़ील्ड मगुरी-मोटापुंग आर्द्रभूमि के ठीक बगल में स्थित है, विशेष रूप से अपने प्रवासी पक्षियों और जंगली घोड़ों के लिए जाने जाने वाले डिब्रू-साइखोवा राष्ट्रीय उद्यान के पर्यावरण-संवेदनशील क्षेत्र का हिस्सा है।इससे पहले साल 2005 में डिब्रूगढ़ के डिकोम में एक बड़ा ब्लोआउट हुआ था, जिसे 45 दिन बाद अमेरिकी विशेषज्ञों की मदद से बंद किया जा सका था।
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तिनसुकिया में एक पर्यावरण कार्यकर्ता निरंत गोहाईं ने कहा, “यह पक्षी द्वारा घोंसले का निर्माण और मछली प्रजनन का मौसम है। तेल रिसाव का जैव विविधता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है - विशेष रूप से ऐसा इसलिए है क्योंकि यह एक पर्यावरण-संवेदनशील क्षेत्र है।”
26 जून को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल(एनजीटी) ने बाघजान कुएं में आग लगने और उसके कारण मनुष्य, वन्यजीवों और पर्यावरण को हुए नुकसान की जांच के लिए एक आठ सदस्यीय समिति का गठन किया था। ट्रिब्यूनल ने यह भी निर्देश दिया था कि ओआईएल अंतरिम नुकसान की भरपाई के लिए ज़िला प्रशासन के साथ 25 करोड़ रुपए जमा करे। गुवाहाटी उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति ब्रजेन्द्र प्रसाद कटैकी की अध्यक्षता वाली विशेषज्ञ समिति द्वारा ट्रिब्यूनल के समक्ष 400 पन्नों की एक आलोचनात्मक रिपोर्ट प्रस्तुत की गई। रिपोर्ट में कहा गया है कि ओआईएल ने प्रमुख पर्यावरण मानदंडों का उल्लंघन किया है। सार्वजनिक उपक्रम की इस तेल कंपनी ने आज तक कुएं स्थापित और संचालित करने को लेकर अनिवार्य सहमति नहीं ली है।
24 अगस्त से लगभग 200 ग्रामीणों ने बाघजान गांव मिलनज्योति युवा संघ की तरफ से आयोजित एक शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन में उपायुक्त कार्यालय के सामने डेरा डाल रखा है।
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बाघजान गांव मिलनज्योति युवा संघ के अध्यक्ष हेमंत मोरन ने कहा, "जिन बारह परिवारों के घर पूरी तरह से जल गए थे, उन्हें मुआवज़ा मिला। लेकिन जिनके घर आंशिक रूप से जल गए थे, उनकी सहायता नहीं की गई है। हम चीजों के तकनीकी पक्ष को नहीं समझते हैं। हम उन पर विश्वास करते रहे जब उन्होंने कहा कि आग को नियंत्रित किया जाएगा। अब हम ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं।”
38 वर्षीया संगीता चेतिया कहती हैं, ''अब तक हम नहीं जानते कि हमें क्या मुआवजा मिलेगा। हमने सुना है कि कुछ मुआवजा मिलने वाला है, लेकिन मुझे यकीन नहीं है।'' । कुएं में आग लगने से चेतिया का बगीचा जल गया। वह अपने पति और तीन बेटियों के साथ एक राहत शिविर में हैं। “हमारे बगीचे में कुछ भी नहीं बचा है - हमारे सभी सुपारी के पेड़, आम के पेड़ जल गए हैं। हम अपनी आजीविका के लिए इस बगीचे पर निर्भर हैं, “चेतिया ने कहा।
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