देश की सर्वोच्च अदालत सुप्रीम कोर्ट में सोमवार को बाबरी मस्जिद-राम मंदिर के जमीन विवाद पर सुनवाई शुरु हो जाएगी। सोमवार को सुप्रीम कोर्ट इस पर शुरुआती सुनवाई करेगा, और संभवत: तय करेगा कि इस केस की नियमित सुनवाई कब से शुरु होगी। इस केस की सुनवाई चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस के एम जोसेफ की बेंच करेगी।
इससे पहले पिछले चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुवाली तीन जजों की पीठ ने फैसला दिया था कि 1994 के संविधान पीठ के उस फैसले पर पुनर्विचार की कोई जरूरत नहीं है जिसमें मस्जिद में नमाज पढ़ने को इस्लाम का जरूरी हिस्सा मानने से इनकार कर दिया गया था। इस पीठ में जस्टिस मिश्रा के अलावा जस्टिस एम खानविलकर और जस्टिस एस अब्दुल नजीर भी थे। पीठ ने यह फैसला 2-1 के बहुमत से सुनाया था।
उस समय पीठ ने अपने फैसले में कहा था कि 1994 का इस्माइल फारुकी फैसला सिर्फ जमीन अधिग्रहण के बारे में था। संविधान पीठ ने कहा था कि जमीनी विवाद से इसका लेना देना नहीं, इसलिए सिविल मामले की सुनवाई होगी।
दरअसल सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या मसले में 2010 में इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देते हुए करीब 13 याचिकाएं दायर की गई हैं। इन्हीं सारी याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई कर रहा है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने फैसले में अयोध्या की 2.77 एकड़ जमीन को तीन हिस्सों में बांटने का फैसला सुनाया था। इसके मुताबिक एक हिस्सा सुन्नी वक्फ बोर्ड, एक हिस्सा निर्मोही अखाड़े को और एक हिस्सा राम लला विराजमान को देने का निर्णय दिया गया था।
फैसले में कहा गया थाजिस जगह रामलला की मूर्ति है, उसे रामलला विराजमान को दिया जाए, सीता रसोई और राम चबूतरा निर्मोही अखाड़े को दिया जाए और बाकी की एक तिहाई जमीन सुन्नी वक्फ बोर्ड को दी जाए।
इस फैसले के बाद रामलला विराजमान और हिंदू महासभा की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई। वहीं सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने भी सुप्रीम कोर्ट में हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ अर्जी दाखिल कर दी। इसके बाद इस मामले में कई और पक्षकारों ने याचिकाएं लगाई।
अब जबकि इस मामले में सुनवाई शुरु होने में कुछ ही घंटे बचे हैं, इस मुद्दे पर सियासत जबरदस्त तरीके से तेज़ हो गई है। उत्तर प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ, बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह और आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के बयान सामने आ चुके हैं।
योगी आदित्यनाथ का कहना है कि अगर सुप्रीम कोर्ट सबरीमाला मंदिर पर फैसला दे सकता है, तो उसे राम मंदिर पर भी फैसला देना चाहिए। उन्होंने वही बात दोहराई कि ‘राम मंदिर हिंदुओं की आस्था का मामला है।’
इसके अलावा केरल के कुन्नूर में एक सभा में बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने भी सबरीमला के बहाने सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर सवाल उठाए थे। उन्होंने कहा था कि ‘अदालत को ऐसे फैसले नहीं देने चाहिए जो धार्मिक आस्था के खिलाफ हो और जिसे लागू करवा पाना मुश्किल हो।‘
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इनसे पहले आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने अपने विजयादशमी भाषम में कहा था कि, ‘किसी भी रास्ते से राम मंदिर का निर्माण जरूर होना चाहिए, इसके लिए सरकार को कानून लाना चाहिए।“
दूसरी तरफ विपक्ष ने इस मामले में बीजेपी और संघ के बयानों को सुप्रीम कोर्ट के कामकाज में दखलंदाज़ी करार दिया है। मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस का कहना है कि सर्वोच्च न्यायालय में जब कोई मामला विचाराधीन है तो उस पर टिप्पणी करना सही नहीं है।
गौरतलब है कि पिछले दिनों साधू-संतों ने राम मंदिर मुद्दे पर सरकार पर दबाव बढ़ाने का काम किया है। संतों ने ऐलान किया था कि कुंभ मेले में धर्म संसद कर मंदिर निर्माण की रणनीति को अंतिम रूप दिया जाएगा।
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