मऊ से लखनऊ वापसी के रास्ते में अयोध्या बस स्टैंड पर कुछ युवकों के घेरे में अपने अखबार की आईडी वाला माइक लिए एक पत्रकार किसी हद तक फंसा हुआ सा है। बहस अयोध्या के हालात, चुनाव और भावी सरकार की है, सो उत्तेजना बढ़ी हुई है। ज्यादातर युवक अयोध्या के बहु प्रचारित मिजाज के विपरीत राय वाले हैं। वैसे अयोध्या का असल मिजाज है भी यही, जिसे अयोध्या आकर ही समझा जा सकता है!
क्या अयोध्या में छोटी-छोटी धर्म संसदें चल रही हैं इन दिनों बीजेपी के पक्ष में हवा बनाने के लिए? इस सवाल पर ज्यादातर अनजान ही दिखे। अलबत्ता यह जरूर कहा कि हमें तो हमारे सवालों से मतलब है!
लेकिन चुनावी दौर में धर्म संसद कितना सही है…? अभी ज्यादा समय नहीं हुआ, संतों के एक समूह ने सरयू का जल हाथ में लेकर शपथ ली थी कि बीजेपी की सरकार नहीं आने देंगे और अब छोटे-छोटे समूहों में साधु-संत कुछ और बात कर रहे हैं… किसे और क्या सही समझें ?अयोध्या के टकसाल इलाके से आने वाले दिनेश कुमार सवाल उठाते हैं।
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पास ही मौजूद विकास ने भी समर्थन में हामी भरी। मंगल चौरसिया बोले- यह सब तो संत अपनी गद्दी बचाने के लिए कर रहे हैं। असल मुद्दों की बात कोई नहीं कर रहा। मंदिर बन रहा, अच्छी बात है, लेकिन मेरा बेटा एमए पास है, उसे नौकरी ही नहीं मिल रही। नौकरियां निकल ही नहीं रहीं। अब क्या बेटे से पान दुकान लगाने को बोलें!
चौरसिया की बातों में कई और लोगों का भी दर्द शामिल है। कहते हैं- अब पांडे जी का लड़का पढ़ा लिखा है। मूंगफली का ठेला लगा रहा है और पढ़ाई भी कर रहा है। पर नौकरी कहां है। सवाल उठाते हैं कि आखिर राम के नाम पर कब तक वोट देंगे? मंदिर से पेट नहीं न भरेगा!
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अयोध्या के बदलते राजनीतिक घटनाक्रम पर बारीक नजर रखने वालों का कहना है कि भगवा संगठन पहले से ही मतदाताओं को लुभाने में जुटे थे। डिप्टी सीएम दिनेश शर्मा के रविवार के दौरे के बाद साधु संतों के समूह की मतदाताओं से संवाद में तेजी आई है।
दिनेश शर्मा मणिरामदास छावनी गए थे। दिगंबर अखाड़े में लोगों को संबोधित भी किया। रामजन्म भूमि न्यास के वरिष्ठ सदस्य व पूर्व सांसद डॉ रामविलास दास वेदांती कहते हैं कि, "सभी साधू-संत बीजेपी से जुड़े हुए हैं, उसे वोट दिला रहे हैं। रामजन्म भूमि मुद्दा शुरू से रहा है और रहेगा। हम चुनाव जीतेंगे।"
लेकिन स्थानीय निवासियों का दर्द दूसरी ही तस्वीर पेश करता है। उनके मुताबिक साधू-संतों के छोटे-छोटे समूह भले ही मतदाताओं से लगातार संवाद कर रहे हैं, उनके अपने एजेंडे भी हैं, पर आमजन पर इसका खास असर नहीं है। जैसाकि हमेशा होता रहा है, अयोध्या अपनी तरह ही सोच रही है। राम मंदिर आंदोलन का वक्त हो या फिर चुनावी संग्राम। रिकाबगंज के विवेक पिछले चुनाव को अपवाद बताते हैं। खड़ाऊं बनाने वाले सलीम खान अनायास तो नहीं कहते कि ‘अयोध्या हमेशा सौहार्द में यकीन रखती है और आज भी यह वहीं है’।
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रामराज के सरकारी दावों के उलट रामनगरी के लोगों के लिए भी बढ़ती महंगाई, बेरोजगारी और जनप्रतिनिधियों की उपेक्षा ही अहम है। मौजूदा विधायक वेद प्रकाश गुप्ता को बीजेपी ने टिकट दिया है। लेकिन शहर में लोगों की उनसे नाराजगी साफ है और इसकी चर्चा भी आम है। किशन बताते हैं कि "गुप्ता जी पूरे पांच साल नजर नहीं आये। उन्हें दोबारा प्रत्याशी बनाये जाने से निराशा हुई है। इस बार वह उन्हें वोट नहीं देने का मन बना रहे हैं।" चाय बेचने वाले राजू ऐसी ही चर्चाओं के हर रोज गवाह बनते हैं। कहते हैं- "लड़ान बहुत है सपा और भाजपा में, कुछ कहल नहीं जा सकत (कुछ कहा नहीं जा सकता)। लोग बात तो बहुत करत हैं पर वोटवा देवे जवाएं तब त (लोग बात बहुत करते हैं पर जब वोट देने जाएं तब तो)।" राजू के चाय की दुकान पर यही चर्चा चल रही थी, लेकिन राजू सबकी बातों का निचोड़ खुद रख देते हैं। वहां मौजूद युवाओं का समूह भी उनकी बात की तस्दीक कर रहा है।
दरअसल अयोध्या में इस वक्त राममंदिर निर्माण की खुशी से ज्यादा जमीन अधिग्रहण में मुआवजा कम मिलने का दंश, सुविधाओं के बिना हाउस टैक्स का बढ़ना ज्यादा बड़ा मुद्दा है जो लोगों को परेशान भी कर रहा है। अखिलेश यादव ने सरकार बनने के बाद टैक्स खत्म करने की घोषणा कर यह गर्मी और बढ़ा दी है। यही कारण हैं कि अयोध्या-फैजाबाद की पांचों सीटों पर काबिज बीजेपी को इस वक्त सबसे बड़ा संघर्ष अयोध्या की अपनी असली सीट के साथ ही मिल्कीपुर और गोसाईंगंज में भी करना पड़ रहा है। बीकापुर और रुदौली की राह भी स्थानीय कारणों से कड़े संघर्ष में हैं।
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बीते दिनों गोसाईगंज में सपा प्रत्याशी अभय सिंह और बीजेपी प्रत्याशी आरती तिवारी के समर्थकों के बीच हुए गोलीकांड ने भी इस निर्वाचन क्षेत्र को हॉट सीट बना दिया है। दोनों प्रत्याशियों के बीच शह और मात के लिए कड़ी टक्कर है। प्रचार में बाहुबल के तड़के पर चटकारे के साथ चर्चा कर रहे अंगद कहते हैं कि इस विवाद की वजह से ठाकुर वोटर अभय सिंह के पक्ष में लामबंद हो गए हैं। कोरोना काल मे फ्री अनाज बांटने से गरीब तबके को तुरंत तो राहत महसूस हुई, पर बढ़ती महंगाई से वह वर्ग भी त्रस्त है। विमलकांत कहते हैं कि सिर्फ राम के नाम पर वोट दिए थे। इस बार भी कहा जा रहा है कि लाज बचानी है। जनता त्रस्त है। महंगाई ने कमर तोड़ दी है। आगे क्या होगा, कुछ पता नहीं।
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अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर राममंदिर की पहचान बनाने के लिए सड़क, एयरपोर्ट और अन्य बड़े प्रोजेक्ट पाइप लाइन में होने के सरकारी दावों से बढ़ी उम्मीदों के बावजूद बेरोजगारी व स्थानीय स्तर पर विकास का मुददा हर जंग चर्चा में है। स्पष्ट है कि अयोध्या सीट पर बीजेपी की प्रतिष्ठा दांव पर है, जिसके लिए दिग्गज नेताओं ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। सीएम योगी खुद अयोध्या में रोड शो और सभाएं कर रहे हैं। पीएम नरेंद्र मोदी की सभाएं भी प्रस्तावित हैं। अब तस्वीर तो मतगणना के बाद ही साफ हो सकेगी कि जनता ने फिर ध्रुवीकरण का साथ दिया या स्थानीय मुददों को तवज्जो दी है।
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