सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि अयोध्या मामले की मध्यस्थता में राम लला विराजमान भाग नहीं ले रहे हैं। सुनवाई के दौरान हिंदू पक्ष ने साफ कहा कि उन्हें मामले पर कोई मध्यस्थता (कोर्ट के बाहर समझौता) नहीं करनी है।
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वहीं मुस्लिम पक्षकार के वकील शेखर नाफडे ने दलील दी कि 1885 के मुकदमे और अभी के मुकदमे एक जैसे ही हैं, दोनों में फर्क सिर्फ इतना है कि 1885 में विवादित स्थल के एक जगह पर दावा किया गया था और अब पूरे हिस्से में दावा किया गया है। अब हिंदू अपने दावे के दायरे को बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं। नाफडे ने आगे कहा कि सिविल लॉ के तहत उसी विवाद को हिंदू पक्षकार दोबारा नहीं उठा सकते।
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दूसरी ओर मुस्लिम पक्ष की ओर निजम पाशा ने कहा कि जब बाबर राज कर रहा था तो वह संप्रभु था, किसी के प्रति जवाबदेह नहीं था। उसने कानून और कुरान के हिसाब से राज किया। विरोधी पक्ष कह रहे हैं कि बाबर ने मस्जिद बनाकर पाप किया, लेकिन उसने कोई भी पाप नहीं किया। इस दौरान जस्टिस बोबड़े ने कहा कि हम यहां बाबर के पाप-पुण्य का फैसला करने नहीं बैठे हैं, हम यहां कानूनी कब्जे पर दावे का परीक्षण करने के लिए बैठे हैं।
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बता दें कि 18 अक्टूबर तक सुनवाई खत्म करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में पूरी कोशिशें चल रही हैं। इस मामले की सुनवाई हफ्ते में 5 दिन हो रही है। साथ ही कोर्ट में रोजाना एक घंटे अधिक वकीलों की दलीलें सुन रही हैं। इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट की ओर से कहा गया है कि अगर जरूरत पड़ती है तो वह शनिवार को भी मामला सुनने को तैयार हैं।
(आईएएनएस के इनपुट के साथ)
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