असम: एनआरसी का फाइनल ड्राफ्ट जारी, 2.89 करोड़ से ज्यादा लोग एनआरसी में शामिल, 40 लाख अवैध घोषित
प्रेस को संबोधित करते हुए राज्य एनआरसी के कोऑर्डिनेटर ने कहा कि वे सभी लोग जिनका नाम पहले ड्राफ्ट में था, लेकिन फाइनल ड्राफ्ट में नहीं है, उन्हें व्यक्तिगत रूप से एक पत्र दिया जाएगा, ताकि वे एक बार फिर अपनी नागरिकता को साबित कर सकें।
By नवजीवन डेस्क
फोटो: सोशल मीडिया असम में एनआरसी का फाइनल ड्राफ्ट जारी
असम में एनआसी का फाइनल ड्राफ्ट जारी कर दिया गया है। ड्र्राफ्ट जारी करते हुए राज्य एनआरसी के कोऑर्डिनेटर ने बताया कि 3.29 करोड़ लोगों में से 2 करोड़ 89 लाख 83 हजार 677 लोग एनआरसी में शामिल करने के योग्य पाए गए हैं।
Published: 30 Jul 2018, 11:32 AM IST
प्रेस को संबोधित करते हुए राज्य एनआरसी के कोऑर्डिनेटर ने कहा, “वे सभी लोग जिनका नाम पहले ड्राफ्ट में था, लेकिन फाइनल ड्राफ्ट में नहीं है, उन्हें व्यक्तिगत रूप से एक पत्र दिया जाएगा, ताकि वे एक बार फिर अपनी नागरिकता को साबित कर सकें।”
Published: 30 Jul 2018, 11:32 AM IST
नागरिकता के लिए 3,29,91,384 लोगों ने आवेदन किया था, जिसमें 40,07,707 लोगों को अवैध माना गया है। ऐसे में अब करीब 40 लाख से ज्यादा लोगों को बेघर होना पड़ेगा। जिन्हें अवैध घोषित किया गया है, बताया जा रहा है कि ये लोग नागरिकता साबित नहीं कर पाए।
इस बीच एनआरसी मसौदे को लेकर पूरे राज्य में सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए गए हैं। ऐहतियातन सीआरपीएफ की 220 कंपनियों को राज्य में तैनात किया गया है।
Published: 30 Jul 2018, 11:32 AM IST
आखिर है क्या एनआरसी?
नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजंस -एनआरसी में जिन लोगों के नाम नहीं होंगे उन्हें अवैध नागरिक माना जाएगा। इसमें उन भारतीय नागरिकों के नामों को शामिल किया गया है जो 25 मार्च 1971 से पहले असम में रह रहे हैं। उसके बाद राज्य में पहुंचने वालों को बांग्लादेश वापस भेज दिया जाएगा।
कई राजनीतिक दल और मुस्लिम संगठन एनआरसी का विरोध कर रहे हैं। उनका आरोप है कि सरकार अल्पसंख्यकों को देश से बाहर निकालने के लिए इसका सहारा ले रही है। हालांकि सुप्रीम कोर्ट के आदेश और उसकी निगरानी में एनआरसी को अपडेट किया जा रहा है। इससे पहले 31 दिसंबर 2017 को जारी पहली सूची में 3.29 करोड़ आवेदकों में 1.9 करोड़ लोगों के नाम ही शामिल थे।
इस तरह समझें एनआरसी...
दरअसल इन कथित सूचनाओं और खबरों के बाद कि बांग्लादेश से आए लोग बड़ी तादाद में असम में रह रहे हैं, सरकार ने राज्य के लोगों का एक रजिस्टर बनाने का फैसला किया। इस अभियान को दुनिया का सबसे बड़ा एनआरसी अभियान माना जा रहा है। इस अभियान को तीन डी यानी डिटेक्ट, डिलीट और डिपोर्ट के सिद्धांत पर चलाया गया है। यानी सबसे पहले अवैध रूप से रह रहे लोगों की पहले पहचान की जाएगी फिर उनका नाम सरकारी दस्तावेज़ों से हटाकर उन्हें वापस उनके देश भेजा जाएगा। दावे किए जाते रहे हैं कि असम में करीब 50 लाख बांग्लादेशी गैर-कानूनी तरीके से रह रहे हैं, जिसकी वजह से वहां सामजिक और आर्थिक समस्याएं खड़ी होती रही हैं।
पिछले करीब 37 वर्षों से असम में घुसपैठियों को वापस भेजने का अभियान चल रहा है। 1971 में बांग्लादेश के स्वतंत्रता संघर्ष के दौरान बहुत से लोग पलायन कर भारतीय सीमा में आ गए थे और यहीं बस गए। इसके चलते स्थानीय लोगों और घुसपैठियों में कई बार हिंसक झड़पें हुईं।
कथित घुसपैठियों को वापस भेजने का आंदोलन सबसे पहले 1979 में ऑल असम स्टूडेंट यूनियन और असम गण परिषद ने शुरू किया था। यह आंदोलन काफी हिंसक रहा और करीब 6 साल तक चला था। इस हिंसा में सैकड़ों लोगों की जान गई थी।
हिंसा रोकने के लिए 1985 में केंद्र सरकार और आंदोलनकारियों के बीच समझौता हुआ था। तय हुआ था कि 1951 से 1971 के बीच भारत आए लोगों को नागरिकता दी जाएगी और 1971 के बाद आए लोगों को वापस भेजा जाएगा। लेकिन बाद में यह समझौता टूट गया था। बाद में इस मुद्दे पर राजनीतिक और सामाजिक तनाव बढ़ने लगा। आखिरकार 2005 में केंद्र सरकार ने 2005 में एनआरसी अपडेट करने का समझौता किया। लेकिन प्रक्रिया धीमी होने के कारण मामला सुप्रीम कोर्ट तक जा पहुंचा।
बीते तीन साल के दौरान असम के करीब 3.29 करोड़ लोगों ने अपनी नागरिकता साबित करने के लए 6.5 करोड़ के आसपास दस्तावेज जमा कराए। नागरिकता साबित करने के लिए लोगों से 14 तरह के अलग-अलग दस्तावेज़ मांगे गए थे।
आखिरकार पिछले साल यानी 2017 में सुप्रीम कोर्ट की डेडलाइन खत्म होने से पहले ही आधी रात को असम सरकार ने एनआरसी की पहली लिस्ट जनवरी में जारी कर दी। लिस्ट जारी होते ही एनआरसी सेंटर पर लोगों की भीड़ उमड़ पड़ी, लेकिन इस सूची में बहुत सारे लोगों के नाम नहीं थी। ऐसे लोगों में कुछ एआईयूडीएफ नेता बदरुद्दीन अजमल जैसे मशहूर लोग भी शामिल थे।