असम सरकार के रिकॉर्ड से पता चलता है कि 1986 से दिसंबर 2016 के बीच 30 वर्षों के दौरान राज्य में सिर्फ 75 हजार विदेशियों की ही पहचान की गई। असम सरकार की वेबसाइट पर मौजूद यह सूचना एनआरसी (नेशनल रिजस्टर ऑफ सिटीज़न) की पूरी कवायद पर सवालिया निशान लगाती है। गौरतलब है कि इसी सप्ताह सोमवार को जब एनआरसी का अंतिम मसौदा प्रकाशित किया गया तो असम के 40 लाख लोगों के नाम इसमें से गायब थे।
दरअसल एनआरसी तैयार करने की प्रक्रिया में तेज़ी 2013 में आई जब सुप्रीम ने एक जनहित याचिका का संज्ञान लिया। याचिका में मांग की गई थी कि असम में विदेशियों की पहचान कर उन्हें देश निकाला देने की प्रक्रिया तेज़ की जाए।
लेकिन बीते 30 वर्षों में सिर्फ 75 हजार विदेशियों की पहचान और बीते पांच साल में 40 लाख लोगों को गैर-भारतीय घोषित किया जाना समझ से परे है। माना जा रहा है कि एनआरसी तैयार करने में इस्तेमाल की गई वंश वृक्ष या फैमिली ट्री के जरिए किसी को असम वासी मानने या न मानने का मॉडल अपनाया जाना ही समस्या की जड़ है। एनआरसी तैयार करने की प्रक्रिया में लोगों द्वारा दिए गए कई दस्तावेज़ ऐसे थे जिसमें नामों की स्पेलिंग यानी उन्हें लिखने में गलती हुई थी, ऐसे दस्तावेज़ों को एनआरसी तैयार कर रहे कर्मचारियों और अधिकारियों ने मानने से इनकार कर दिया।
इसके अलावा भी कई सवाल हैं जिनके जवाब देने वाला कोई नहीं है। मिसाल के तौर पर विदेश में रह रहे किसी भारतीय परिवार में अगर कोई बच्चा जन्म लेता है तो उसे स्वत: ही उस देश की नागरिकता मिल जाती है। कानून विशेषज्ञों के मुताबिक इस कसौटी पर देखें तो 1971 के बाद भारत में पैदा हुए किसी भी व्यक्ति को जन्म से भारत का नागरिक माना जाना चाहिए।
लेकिन, जिन 40 लाख लोगों को एनआरसी के मसौदे में शामिल नहीं किया है, उनका पर्याप्त डाटा उपलब्ध ही नहीं है, ऐसे में यह भी नहीं पता चल पा रहा कि इनमें से कितने ऐसे हैं, जिन्हें जन्म के आधार पर भारतीय नागरिकता मिल जाना चाहिए। इसके अलावा, नागरिकता को लेकर असम सरकार के आंकड़े भी अलग-अलग हैं।
असम सरकार की एक वेबसाइट https://assamaccord.assam.gov.in/portlets/assam-accord-and-its-clauses पर 1985 के असम समझौते का संदर्भ देते हुए कहा गया है कि:
इसी वेबसाइट पर कुछ और सूचनाएं भी हैं :
विशेषज्ञों का कहना है कि फैमिली ट्री या वंश वृक्ष की समस्या की जड़ है। सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील संजय हेगड़े ने लिखा है कि, “मैं अपने ननिहाल से तीसरी पीढ़ी का पोस्ट ग्रेज्युएट हूं। मुझे पने दादा के भाई का नाम नहीं पता। मेरे दादा का नाम लिखने में वर्तनी यानी स्पेलिंग की गलती हो सकती है। अगर में असम का रहने वाला मुस्लिम होता, तो आज मैं एक ऐसे शिविर में होता जहां अवैध रूप से रह रहे लोगों को रखा जाता है। यह अमानवीय है। आखिर हो क्या रहा है।
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असम में एनआरसी के समन्वयक और गृह मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी प्रतीक हजेला का खुद कहना है कि जिन लोगों के नाम इस मसौदे में नहीं हैं उन्हें घुसपैठिए कहना गलत है। लेकिन बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह तो इन सारे लोगों को ही घुसपैठियां करार देने पर तुले हुए हैं।
बताया जाता है कि एनआरसी मसौदे में बीजेपी के वरिष्ठ सांसद बिजॉय चक्रवर्ती के परिवार के लोगों के नाम भी नहीं हैं। चक्रवर् लोकसभा के वरिष्ठतम सांसदों में से हैं और वाजपेयी सरकार में कैबिनेट मंत्री भी रह चुके हैं। उन्होंने खुद पत्रकारों को बताया कि उनके भतीजे का नाम सूची में नहीं है।
तो क्या चक्रवर्ती भी घुसपैठिए हैं अमित भाई?
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