असम में तीसरे और आखिरी चरण का मतदान कल यानी 6 अप्रैल को होना है। इस चरण में बाकी सभी 40 सीटों पर मतदान होगा। राज्य में मुख्य मुकाबला कांग्रेस की अगुवाई वाले महाजोत और बीजेपी के बीच है। इस बार विकास के तमाम दावों के बावजूद असम विधानसभा के चुनाव का मुख्य मुद्दा असमिया सभ्यता की रक्षा पर केंद्रित हो गया। कांग्रेस महागठबंधन से बीजेपी को कड़ी चुनौती मिली, इसलिए उसने असमिया संस्कृति की रक्षा पर फोकस किया। वहीं ऊपरी असम में नागरिकता संशोधन कानून का मुद्दा बीजेपी के लिए एक अलग चुनौती के रूप में सामने नजर आया। ध्यान रहे कि नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ उग्र आंदोलन ऊपरी असम में ही हुआ था और इसके गर्भ से असम जातीय परिषद और राइजर दल का जन्म हुआ।
वहीं कांग्रेस ने चाय मजदूरों के मुद्दे को जोरशोर से उठाया, क्योंकि बीजेपी की सोनोवाल सरकार के तमाम वादों के वाबजूद इन मजदूरों को अनुसूचित जाति का दर्जा आज तक नहीं मिल पाया है। वैसे परंपरागत रूप से चाय मजदूर कांग्रेस के ही वफादार रहे हैं। चाय मजदूरों को प्रभावित करने के लिए छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को विशेष जिम्मेदारी के साथ असम भेजा गया है। ऊपरी असम के अधिकांश मजदूरों की जड़ें छत्तीसगढ़ और झारखंड से जुड़ी हुई हैं। बघेल और उनकी टीम ने काफी रणनीतिक तरीके से काम किया और इसका प्रभाव यह रहा कि बीजेपी पूरे विधानसभा चुनाव के दौरान परेशान नजर आई। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि कांग्रेस की रणनीति के चलते इस इलाके में कांग्रेस को अच्छे नतीजे देखने को मिल सकते हैं।
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कांग्रेस विधायक दल के नेता देबव्रत सइकिया खुद यह मानते हैं कि इस बार बीजेपी ने तीसरे चरण में होने वाले नुकसान से बचने के लिए ऊपरी असम में कांग्रेस के कब्जे वाली सीटें हथियाने की कोशिश की थी लेकिन उसमें उसे सफलता नहीं मिलेगी। ऊपरी असम में अजमल कोई फैक्टर नहीं हैं। दो-तीन सीटों पर ही उनका प्रभाव है। इसके अलावा असम जातीय परिषद तथा राइजर दल भी विशेष प्रभाव नहीं डाल पाए।
इस चुनाव में बीजेपी की मुख्य रणनीति यही थी कि ऊपरी असम में अपने आधार को बरकरार रखा जाए। उससे पहले से अनुमान था कि दूसरे और तीसरे चरण के चुनाव में उसे कांग्रेस महागठबंधन से बड़ी चुनौती मिलने वाली है। सत्ता में वापसी के लिए ऊपरी असम बीजेपी के लिए प्रवेश द्वार था। इसलिए उसने असमिया सभ्यता के आने वाले खतरे का मुद्दा बनाया और यह प्रचारित किया कि कांग्रेस महागठबंधन से आने से असम में अजमल राज स्थापित हो जाएगा। ध्यान रहे कि ऊपरी असम में बांग्लादेश से आने वालों के प्रति आक्रोश कुछ अधिक है।
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बीच में बीजेपी के प्रचार को अजमल के इस बयान से कुछ हवा मिली थी कि असम में सरकार की चाबी तो उनके पास है। दरअसल अजमल की पार्टी एआईयूडीएफ का चुनाव चिह्न ताला-चाबी है। यही वजह है कि पहले चरण के चुनाव के बाद से बीजेपी ने इसे प्रचारित करना शुरु कर दिया था, लेकिन उसे अपेक्षित परिणाम मिलना मुश्किल नजर आ रहा है। पिछले विधानसभा चुनाव में बीजेपी गठबंधन को 47 में से 37 सीटें मिलीं थी। कांग्रेस पास 9 और एआईयूडीएफ के पास एक सीट थी।
लेकिन असम जातीय परिषद के अध्यक्ष लुरिन ज्योति गोगोई का दावा है कि इस बार ऊपरी असम में अंडर करंट था। मतदाताओं ने असली क्षेत्रीयवादी पार्टी के पक्ष में चुपचाप मतदान किया है। इसलिए ऊपरी असम में बीजेपी बुरी तरह पराजित हो रही है।
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दूसरे चरण में मोटे तौर पर मुकाबला आमने-सामने या बराबरी का कहा जा सकता है। इस दौर में बीजेपी ने हिंदू मतों के ध्रुवीकरण की कोशिश में असमिया सभ्यता की रक्षा के सवाल को आक्रामक तरीके से उठाया। प्रधानमंत्री से लेकर मुख्यमंत्री तक के भाषणों में यह साफ कहा गया कि असम में बीजेपी भाजपा ही असमिया संस्कृति की रक्षा कर सकती है। बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने अपनी सभाओँ में यही कहा कि, “हमारा मुद्दा है- असम की सुरक्षा, संस्कृति का सवंर्द्धन और समृद्धि को बढ़ाना। यह सिर्फ चुनावी वादा नहीं है, इस दिशा में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की नेतृत्व वाली केंद्र सरकार और असम में सर्वानंद सोनोवाल की सरकार ने पिछले पांच वर्षों में उल्लेखनीय कार्य करके दिखाया है।“
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लेकिन सबसे दिलचस्प बात यह है कि इस चुनाव में कांग्रेस की रणनीति ने बीजेपी की सांस फुला दी है और उसे रक्षात्मक बना दिया है। बीजेपी शुरु से मान रही थी कि चुनाव एकतरफा होगा। कांग्रेस से ऐसी चुनौती मिलने के बारे में बीजेपी के रणनीतिकारों ने सोचा भी नहीं था। दरअसल बीजेपी ने शुरु में कोशिश की कि कांग्रेस की अजमल के साथ दोस्ती न हो। लेकिन जब दोस्ती हो गई तो प्रचारित करना आरंभ कर दिया कि कांग्रेस असमिया संस्कृति के दुश्मन बदरुद्दीन अजमल को असम सौंपना चाहती है। बीजेपी के इस नारे का उलटा असर हुआ और राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो इसका लाभ दूसरे चरण में कांग्रेस महागठबंधन को मिला। खीझ में बीजेपी नेता हिमंत विश्वशर्मा ने प्रचार के दौरान यहां तक कह दिया कि उन्हें मियां वोट नहीं चाहिए। इसकी वजह से बीजेपी और असम गण परिषद को पसंद करने वाले अल्पसंख्यक भी कांग्रेस महा गठबंधन की तरफ मुड़ गए। इस स्थिति को भांपते हुए ही प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष रंजीत दास ने सरभोग की जगह पाटाचारकुचि विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ने का फैसला किया।
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उधर कांग्रेस के पक्ष में प्रचार के दौरान प्रियंका गांधी का चाय बागान जाना और चाय मजदूरों के साथ समय बिताने का गहरा असर हुआ है। वहीं राहुल गांधी ने जिस तरीके से बीजेपी पर हमला किया, उससे कांग्रेस महागठबंधन के कार्यकर्ताओं का उत्साह बढ़ा है। कांग्रेस ने 5 गारंटी दी है और उसका लाभ उसे मिल सकता है। इसमें दो राय नहीं है कि कांग्रेस की रणनीति ने इस चुनाव को काफी दिलचस्प बना दिया है।
तीसरे चरण की वोटिंग में माहौल क्या बनता है, यह अब से कुछ घंटों में पता चल जाएगा, लेकिन कुल मिलाकर बीजेपी के 100 से ज्यादा सीटें जीतने के दावे की हवा निकल चुकी है।
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