अब यह कोई बहुत बड़ा राज़ नहीं रह गया है कि केंद्र सरकार की सूचना के अधिकार कानून और सूचना आयोग को मजबूत करने में कोई दिलचस्पी क्यों नहीं है। साफ देखा जा रहा है कि सूचना आयुक्तों की नियुक्ति में खासतौर से देरी की जाती है और अदालतों के दखल के बाद बेमन से नियुक्तियां की जा रही हैं। इसी तरह आरटीआई अर्जियों के जवाब देने से इनकार किया जा रहा है और 2019 में तो केंद्र सरकार ने सूचना के अधिकार कानून यानी आरटीआई को ही कमजोर कर दिया।
अभी 31 अक्टूबर को जब सुप्रीम कोर्ट का ध्यान इस तरफ दिलाया गया कि बीते करीब एक महीने से (3 अक्टूबर, 2023) मुख्य सूचना आयोग बिना किसी प्रमुख के काम कर रहा है और चार अन्य सूचना आयुक्त 6 नवंबर को रिटायर हो जाएंगे, तो तीन दिन बाद केंद्र सरकार ने आनन-फानन हीरालाल समारिया को मुख्य सूचना आयुक्त के पद पर तैनात कर दिया। उन्हें और दो अन्य सूचना आयुक्तों विनोद कुमार तिवारी और आनंदी रामालिंगम को 6 नवंबर को शपथ दिला दी गई। मुख्य सूचना आयुक्त समारिया दलित समुदाय से आते हैं, इस बात की मुख्यधारा के मीडिया में खूब चर्चा भी की गई।
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आनंदी रामालिंगम इससे पहले भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड की चेयरमैन और मैनेजिंग डायरेक्टर थीं। उनके पास बीई ऑनर्स और कम्यूनिकेशन इंजीनियरिंग की डिग्री है। विनोद तिवारी 1986 बैच के फॉरेस्ट सर्विस अफसर हैं। वे हिमाचल प्रदेश वन विभाग में फोर्स-कम-चीफ कंजर्वेटर के पद पर तैनात थे।
आरटीआई एक्ट के तहत सूचना आयोग में मुख्य सूचना आयुक्त के अलावा 10 सूचना आयुक्त तक होने चाहिए। केंद्रीय सूचना आयोग में राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री आदि से संबंधित खारिज की गई सभी अपील पर फैसला होता है। लेकिन 2015 से आमतौर पर सूचना आयुक्तों की नियुक्ति में देरी की जाती रही है, जिसके कारण काफी अपील अटकी पड़ी हैं।
सुप्रीम कोर्ट में जब इस मामले की सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली तीन जजों की बेंच ने राज्यों और मुख्य सूचना आयोगों में मौजूदा तैनाती पर जानकारी और मार्च 2024 तक कितने पद खाली होने वाले हैं, इसकी जानकारी देने के लिए तीन सप्ताह का समय दिया। सुप्रीम कोर्ट ने यह निर्देश एक्टिविस्ट अंजलि भारद्वाज, रिटायर्ड कमोडोर लोकेश बत्रा और अमृता जौहरी की अर्जी पर जारी किया। इस पर तीन सप्ताह बाद फिर सुनवाई होगी।
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याचिकाकर्ताओं की तरफ से पेश वकील प्रशांत भूषण का तर्क था कि खाली पड़े पदों की वजह से आरटीआई एक्ट एक तरह से निष्क्रिय हो गया है, जबकि इस बाबत 2018-19 में कोर्ट ने सरकार को खाली पड़े पद भरने का निर्देश दिया था। उन्होंने आगे बताया कि झारखंड का राज्य सूचना आयोग मई 2020 से निष्क्रिय है, इसी तरह त्रिपुरा और तेलंगाना के सूचना आयोग भी क्रमश: जुलाई 2021 और फरवरी 2023 से निष्क्रिय हैं। इनके अलावा महाराष्ट्र, कर्नाटक, बिहार, ओडिशा और पश्चिम बंगाल के सूचना आयोगों में भी काफी पद खाली पड़े हैं।
इसके अलावा जुलाई 2019 में राज्यसभा में बोलते हुए कांग्रेस सांसद जयराम रमेश ने कहा था कि चूंकि सरकार आरटीआई के तहत हासिल सूचनाओं से लगातार शर्मिंदा होती है, इसलिए वह जानबूझकर इस कानून और सूचना आयोग को कमजोर कर रही है। जयराम रमेश ने दावा किया था कि केंद्रीय सूचना आयोग ने पीएमओ को आदेश दिया था कि वह प्रधानमंत्री शिक्षा के बारे में जानकारी मुहैया कराए जिसे सरकार ने कोर्ट में चुनौती दी थी। इसी तरह आरटीआई से यह भी सामने आया था कि प्रधानमंत्री ने देश में मौजूदा राशन कार्ड की संख्या को बढ़ा-चढ़ाकर बताया था।
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इसी प्रकार आरटीआई से हासिल सूचना से ही सामने आया था कि केंद्र सरकार द्वारा 8 नवंबर 2016 को रात 8 बजे घोषित की गई नोटबंदी से चंद घंटे पहले ही रबीआई के केंद्रीय बोर्ड की बैठक हुई थी। इस सूचना से यह भी पता चला था कि आरबीआई ने इस फैसले पर आपत्ति जताई थी जिसमें देसकी 87 फीसदी नकदी को अवैध घोषित कर दिया गया था।
इसी तरह आरटीआई से हासिल सूचना से ही पता चला था कि तत्कालीन आरबीआई गवर्नर रघुराम राजन ने सरकार को ऐसे इच्छाधारी डिफाल्टर्स की सूची सौंपी थी जिनके कारण सरकारी बैंकों के एनपीए बढ़ रहे थे। इसके अलावा आरटीआई के जरिए ही विदेशों में जमा काले धन की असलियत सामने आई थी, जिसे मौजूदा सरकार ने वापस लाने का वादा किया था।
जयराम रमेश ने कहा था कि आरटीआई अधिनियम को कमजोर करने और सूचना आयोग को सरकार द्वारा नियंत्रित एक विभाग तक सीमित करने के प्रयासों से न सिर्फ इसकी स्वायतता और स्वतंत्रता खत्म हो रही है बल्कि यह देश के लिए भी नुकसानदेह है।
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