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आरे में पेड़ों की कटाई पर सुप्रीम कोर्ट की रोक, लेकिन महाराष्ट्र सरकार बोली- जितने पेड़ काटने थे, काट चुके

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को आरे कॉलोनी में पेड़ों की कटाई पर रोक लगा दी है। लेकिन महाराष्ट्र सरकार ने बताया कि उसे मुंबई मेट्रो के लिए जितने पेड़ काटने थे वह काट चुकी है। लेकिन और पेड़ न कटें, इसके लिए कोर्ट ने यथास्थिति बनाए रखने को कहा है।

फोटो : सोशल मीडिया
फोटो : सोशल मीडिया 

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को मुंबई की आरे कॉलोनी में यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया है। आरे कॉलोनी में मुंबई मेट्रो के लिए हजारों पेड़ों को काटा जा रहा है। इसके साथ ही कोर्ट ने उन सभी लोगों को तुरंत रिहा करने का भी आदेश दिया। सुप्रीम कोर्ट ने यह टिप्पणी भी की कि, “ऐसा लगता है कि आरे कभी एक वन था...।” इसके अलावा कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार से इस बारे में रिपोर्ट मांगी है कि अब तक कितने पेड़ काटे गए हैं और मुंबई मेट्रों ने नियमानुसार कितने पेड़ लगाए हैं।

इस मामले में याचिका कर्ता की तरफ से कोर्ट में पेश वरिष्ठ वकील संजय हेगड़े ने नेशनल हेरल्ड से बातचीत में बताया कि यह एक अंतरिम आदेश हैं और कोर्ट ने यथास्थिति बनाए रखने को कहा है। उन्होंने बताया, “कोर्ट ने इस मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले पर स्टे नहीं दिया है। मैंने आंशका जताई है कि अब तक काटे गए पेड़ों को हटाने के नाम पर और भी पेड़ काटे जा सकते हैं जिसके बाद ही कोर्ट ने वहां यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया।”

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यह पूछे जाने पर कि 4 अक्टूबर की रात से अब तक कितने पेड़ काटे जा चुके हैं, संजय हेगड़े ने बताया, “किसी के पास कोई संख्या नहीं है। लेकिन सरकार का कहना है कि उसे जितने पेड़ काटने थे, वह काट चुकी है। इस बारे में कोर्ट में महाराष्ट्र सरकार की तरफ से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता का बयान रिकॉर्ड में दर्ज हुआ है।” संजय हेगड़ ने बताया कि, “आज का आदेश आने के बाद उसी समय, करीब 10.15 बजे, अगर फिर भी कोई अधिकारी नया पेड़ काटने की कोशिश करेंगे तो उन पर अदालत की अवमानना का मामला बनेगा।”

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इस चर्चा पर कि अब तक कम से कम 2600 पेड़ काटे जा चुके हैं, उन्होंने कहा, “आप सिर्फ पेड़ काटने के नाम पर वृक्ष नहीं काटते हो। वे तो मेट्रो यार्ड बनाने के लिए पेड़ों को काट रहे हैं। लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार वे 21 अक्टूबर को अगली सुनवाई होने तक आगे कोई काम नहीं कर सकते।”

सुप्रीम कोर्ट की इस विशेष अवकाश पीठ के जस्टिस अरुण मिश्रा और जस्टिस अशोक भूषण ने कहा कि जो पेड़ काटे जा चुके हैं, उनके बारे में दशहरे की छुट्टियों के बाद फैसला होगा। इस मामले की सुनवाई कोर्ट की पर्यावरण पीठ करेगी।

गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने कानून के एक छात्र रिशभ रंजन द्वारा मुख्य न्यायाधीश को लिखे पत्र के जनहित याचिका में बदलते हुए इस मामले की सुनवाई की।

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ध्यान रहे कि आरे को मुंबई के फेफड़े माना जाता है क्योंकि यहां काफी घना जंगल है। मुंबई मेट्रो रेल कार्पोरेशन और महाराष्ट्र की बीजेपी सरकार का कहना है कि आरे कोई जंगल नहीं है, इसलिए यहां पेड़ काटे जा सकते हैं।

इससे पहले शुक्रवार को बॉम्बे हाईकोर्ट ने आरे कॉलोनी को वन क्षेत्र घोषित करने से इनकार कर दिया था। साथ ही बीएमसी के उस फैसले को रद्द करने से भी मना कर दिया जिसमें आरे के पेड़ों को काटने की अनुमति दी गई थी।

शनिवार को सैकड़ों सामाजिक कार्यकर्ता, आम नागरिक, सेलेब्रिटीज और नेताओं ने इस मामले का विरोध शुरु किया था, जिसके बाद बहुत से लोगों को हिरासत में ले लिया गया था। साथ ही आरे कॉलोनी में धारा 144 लागू कर दी गई थी। हिरासत में लिए 29 पर्यावरण कार्यकर्ताओं को 5 दिन के लिए न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया था।

बीएमसी में बहुमत और महाराष्ट्र सरकार में बीजेपी की साझीदार शिवसेना ने पेड़ काटने का विरोध किया था। पार्टी के युवा नेता आदित्य ठाकरे ने इस बारे में ट्वीट किया था, जिस पर लोगों ने पार्टी के दोहरे रवैये की आलोचना की थी। वहीं कांग्रेस नेता संजय झा ने एक वीडियो शेयर कर शिवसेना के रुख की निंदा की थी।

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