अगर आपने केंद्र सरकार द्वारा घोषित लोन मोरेटोरियम का विकल्प चुना था, तो आपको ब्याज पर ब्याज देना है या नहीं, इसका फैसला अभी नहीं हो पाया है। मामला सुप्रीम कोर्ट में है और केंद्र सरकार तरह-तरह के बहाने बना रही है। सोमवार को हुई सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा कि केंद्र सरकार या आरबीआई ने अभी तक कोई भी ऐसा ठोस आदेश या सर्कुलर जारी नहीं किया है। कोर्ट ने यह भी कहा कि सरकार के स्पष्ट आदेश पास करना चाहिए ताकि लोगों को पता चल सके कि उन्हें कोई फायदा हो रहा है या नहीं। कोर्ट ने अब इस मामले में सभी पक्षों को केंद्र सरकार के हलफनामे पर एक सप्ताह में जवाब देने का आदेश जारी किया है। मामले की अगली सुनवाई अब 13 अक्टूबर को होगी।
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सोमवार को सुनवाई के दौरान कोर्ट काफी सख्त नजर आयै। कोर्ट ने कहा कि केंद्र सरकार या आरबीआई की तरफ से अभी तक कामथ समिति की रिपोर्ट को रिकॉर्ड में नहीं लाया गया है। गौरतलब है कि लोन मोरेटोरियम की अवधि समाप्त होने के बाद जब बैंकों ने ब्याज पर ब्याज लेने की बात की तो कई लोगों ने इसके खिलाफ याचिका दायर की। जिस पर केंद्र सरकार ने कामथ समिति का गठन कर मामलेका कोई हल निकालने का ऐलान किया। लेकिन इस समिति की रिपोर्ट को अभी तक रिकॉर्ड में नहीं लाया गया है। सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि केंद्र के हलफनामे में कई मुद्दों पर कार्रवाई नहीं की गई है।
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इसी दौरान रियल एस्टेट की संस्था क्रेडाई ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि सरकार ने अपने हलफनामे में जो ढेर सारे आंकड़े दिए हैं, उनका कोई आधार नहीं है। इसी पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि केंद्र सरकार और आरबीआई को इस पर निश्चित रूप से ऑर्डर पास करने चाहिए ताकि लोगों को यह पता लगे कि उन्हें क्या लाभ मिल रहा है। कोर्ट ने कहा कि मामला यह नहीं है कि कामथ कमेटी की रिपोर्ट रिकॉर्ड पर रखी जाए, बल्कि इसे लागू करने का मामला है।
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इस बीच इंडियन बैंक्स एसोसिएशन की तरफ से पेश वकील हरीश साल्वे ने कहा कि इस मामले में देरी से बैंकों को नुकसान हो रहा है। यदि सुनवाई टाली भी जाती है तो यह केवल जवाब देने के लिए टाली जाए और वह भी 2-3 दिनों से ज्यादा का समय नहीं दिया जाए। वहीं आरबीआई के वकील वी गिरि ने कहा कि ज्यादातर लोग यह महसूस कर रहे हैं कि ब्याज पर ब्याज उन्हें बुरी तरह प्रभावित करेगा। इसमें आगे और सिफारिशें आनी चाहिए और उन पर विचार करना चाहिए।
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