उत्तर प्रदेश में छठे दौर के मतदान पर एंथ्रो ने जो अनुमान लगाया है, उसका पहला शब्द है शून्य...यह वह नंबर है जो एंथ्रो के मुताबिक बीजेपी के हिस्से में आएगा। एंथ्रों ने इसका कारण मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से लोगों की नाराजगी और जातिवाद को बताया है।
नीचे दी गई रिपोर्ट anthro.ai का अनुवाद है -
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रविवार, 12 मई को पूर्वी उत्तर प्रदेश की 14 सीटों पर मतदान हुआ। 2014 के लोकसभा चुनाव में आज़मगढ़ के अलावा बीजेपी ने इस दौर की सभी सीटें जीती थीं। इस दौर की ज्यादातर सीटों पर बीएसपी के उम्मीदवार थे, इसलिए कई चीज़ें थीं जो इस मतदान को प्रभावित कर सकती थीं। इनमें से सबसे अहम था कि क्या समाजवादी पार्टी के वोट बीएसपी के हिस्से में जाएंगे या नहीं। हमारा मानना है कि एसपी के सारे वोट बीएसपी उम्मीदवारों को मिले।
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दरअसल समाजवादी पार्टी के परंपरागत वोटरों को याद था कि किस तरह बीएसपी के वोटरों ने पश्चिमी और मध्य उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के उम्मीदवारों को वोट दिया था। उन्होंने अपनी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव और बीएसपी सुप्रीमो मायावती के बीच मेल-मिलाप और घुलना-मिलना भी देखा। उन्होंने यह भी सुना कि कैसे मायावती ने अपने वोटरों से आज़मगढ़ में अखिलेश यादव को वोट देने की अपील की। इन कारणों से समाजवादी पार्टी के वोटर जोश के साथ बाहर निकले और बीएसपी उम्मीदवारों को जमकर वोट दिया।
हमें ऐसा ही होने की उम्मीद थी और हम करीब एक महीने से यही कहते रहे हैं, इसलिए इस बार भी हमें कोई आश्चर्य नहीं हुआ।
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लेकिन जिस चीज़ ने हमें चौंकाया, वह था ब्राह्मण वोट का संभावित हृदय परिवर्तन...
रविवार के मतदान में बीजेपी को ब्राह्मण वोटरों के एक बड़े हिस्से का नुकसान उठाना पड़ा है। अभी तक बीजेपी इन वोटों को काफी मशक्कत कर कांग्रेस और गठबंधन से बचाए हुए थे। इसका कुछ श्रेय मायावती को भी जाता है, क्योंकि उन्होंने अपने उम्मीदवार काफी समझदारी से चुने थे। लेकिन हमारा मानना है कि ब्राह्मण वोटरों की बीजेपी से दूरी का सबसे बड़ा कारण मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ हैं।
योगी के खिलाफ पूर्व उत्तर प्रदेश में तो बहुत ज्यादा माहौल नजर आता है। और रोचक है कि उत्तर प्रदेश का यह वह हिस्सा है जहां आवारा पशुओं से बहुत ज्यादा नुकसान नहीं हुआ है। हमने जब पड़ताल की तो सामने आए जातिगत समीकरण, जिनका बहुत ही बेरहमी से दोहन हो रहा है।
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योगी आदित्यनाथ की जाति यानी ठाकुरों को तो बदसुलूकी और खराब रवैये के लिए जाना जाता है। हमारा अनुमान है कि गैर यादव ओबीसी और गैर जाटव दलितों पर इसका निश्चित ही असर हुआ होगा।
इसके अलावा मुख्यमंत्री की अलोकप्रियता का खामियाजा बीजेपी को भुगतना पड़ सकता है। इसके अलावा केंद्र सरकार द्वारा हाल में सवर्णो को दिए गए आरक्षण का भी असर दलितों और पिछड़ों पर पड़ा है। लेकिन हमने इस फैसले के जितने प्रभाव का अनुमान लगाया था, वह उससे कहीं अधिक सामने आया।
इसके अलावा प्रियंका गांधी की मौजूदगी का भी खासा असर रहा है। प्रियंका के आने से बीजेपी से खफा ब्राह्मण वोटरों का कांग्रेस और गठबंधन की तरफ आने की रफ्तार तेज़ हुई है। हमारा मानना है कि इस चरण के मतदान में पूर्वी उत्तर प्रदेश में एक ऐसी सीट है जहां कांग्रेस का प्रदर्शन बहुत अच्छा रहा है।
हमारा मानना है कि इस इलाके में बीजेपी के वोट शेयर में पश्चिमी उत्तर प्रदेश से ज्यादा गिरावट आएगी। छठे दौर के मतदान के बाद, हमारा अनुमान है कि गठबंधन 53 सीटों पर जीत सकता है। इसमें 5 सीटों की कमीबेशी हो सकती है। बीजेपी के हिस्से 22 सीटें आ सकती हैं। इनमें 3 सीटें ऊपर-नीचे हो सकती हैं। वहीं कांग्रेस के हिस्से में 5 सीटें आ सकती हैं, जिसमें 2 सीटें ऊपर नीचे हो सकती हैं।
जब बीजेपी इस हार का कारण तलाशने बैठेगी कि आखिर यूपी में उसके वोट शेयर में इतनी गिरावट कैसे आई, तो उसे सबसे पहले यह सोचना होगा कि आखिर उसने योगी आदित्यनाथ को यूपी का मुख्यमंत्री क्यों बनाया। साथ ही यह भी तय करना होगा कि क्या उन्हें बदलने का समय आ गया है।
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