राफेल सौदे में एक नया खुलासा हुआ है। इस सौदे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वित्तीय सलाहकार की उस सलाह को खारिज कर दिया था जिसमें एक एस्क्रो अकाउंट खोलने की बात कही गई थी। पीएम ने इससे पहले इस सौदे के लिए सौवरिन या बैंक गारंटी की शर्त रखने से भी इनकार कर दिया था। एस्क्रो अकाउंट ऐसा खाता होता है जिसमें किसी सौदे को दोनों पक्ष पैसा रखते हैं ताकि जरूरत पड़ने पर इसका इस्तेमाल किया जा सके।
यह खुलासा किया है द हिंदू अखबार ने जो इससे पहले भी राफेल सौदे पर दो बड़े खुलासे कर चुका है। वरिष्ठ पत्रकार एन राम ने इस खबर में बताया है कि “राफेल सौदे में भारत सरकार ने कुछ ऐसी रियायत फ्रांस को दीं, जो इससे पहले किसी सौदे में नहीं दी गईं। इस सौदे में भुगतान एस्क्रो अकाउंट से करने की शर्त को फ्रांस और भारत सरकार के बीच हुए समझौते से ऐन पहले हटा दिया गया था। इस अकाउंट के जरिए सौदे के पक्ष पर किसी भी गड़बड़ी की स्थिति में भ्रष्टाचार विरोधी पेनाल्टी लगाई जा सकती थी।”
जब दोनों सरकारों के बीच हुए सौदे में से इस महत्वपूर्ण शर्त को हटा दिया गया तो सौदे की बातचीत करने वाली टीम के तीन सदस्यों ने असहमति पत्र लिखा था। इस पत्र में कहा गया था कि, “किसी वित्तीय लेनदेन के लिए जरूरी बुनियादी शर्तों को खारिज करना सही नहीं है।” अखबार ने इस असहमति पत्र की विस्तृत जानकारी दी है। इस पत्र पर सौदा की शर्तें आदि तय करने वाली टीम के तीन सदस्यों एडवाईज़र (कॉस्ट) एम पी सिंह, वित्तीय प्रबंधक (एयर) ए आर सुले और संयुक्त सचिव एवं एक्विज़िशन मैनेजर (एयर) राजीव वर्मा ने हस्ताक्षर किए थे। इस पत्र में कहा गया था कि, “दो सरकारों के बीच सौदे की आड़ में एक वाणिज्यिक आपूर्ति कर्ता (कमर्शियल सप्लायर) को रियायतें देना सही नहीं है।”
पत्र में स्पष्ट किया गया था कि, “सौदे में उच्च स्तरीय राजनीतिक दखल का यही अर्थ है कि डिफेंस प्रोक्यूरमेंट प्रोसीजर (रक्षा खरीद प्रक्रिया) के उन प्रावधानों को भारत सरकार ने खुद शर्तों से बाहर कर दिया जिसके तहत सौदे को प्रभावित करने, एजेंट या एजेंसी के कमीशन और सौदे के सप्लायर दसॉल्ट के खातों को देखने से इनकार करने पर पेनाल्टी डाली जा सकती है।” भारत और फ्रांस के बीच 23 सितंबर 2016 को हुए समझौते के मुताबिक दसॉल्ट एविएशन विमानों की सप्लाई करेगा और एमबीडीए फ्रांस इस विमान में लगने वाले हथियार और लड़ाकू उपकरण की सप्लाई करेगा।
खबर के मुताबिक, “सितंबर 2016 में हुई डिफेंस एक्वीजिशन काउंसिल (रक्षा खरीद परिषद) की बैठक में तत्कालीन रक्षा मनोहर पर्रिकर ने भी हिस्सा लिया था। इस बैठक में काउंसिल ने दोनों सरकारों के बीच हुए समझौते में 8 बदलाव को मंजूरी देते हुए अधिकृत किया था। इन बदलावों में सप्लाई प्रोटोकॉल, ऑफसेट कांट्रेक्ट और ऑफसेट शिड्यूल आदि शामिल थे। परिषद ने यह बदलाव रक्षा मामलों पर कैबिनेट समिति द्वारा दोनों सरकारों के बीच हुए समझौते को मंजूरी देने के बाद किए थे। रक्षा मामलों पर कैबिनेट कमेटी की बैठक 24 अगस्त 2016 को हुई थी”
द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक, इन बदलावों में सबसे महत्वपूर्ण बदलाव वह था जिसे वाइस एडमिरल अजित कुमार ने अपने नोट में लिखा था। अजित कुमार रक्षा खरीद परिषद के सदस्य सचिव थे। उन्होंने लिखा था, “सौदे को प्रभावित करने, एजेंट या एजेंसी को कमीशन देने और कंपनी के खाते को दिखाने से इनकार करने पर पेनाल्टी लगाने जैसी रक्षा खरीद प्रक्रिया के जरूरी प्रावधानों को हटाया जाना सही नहीं था।”
फ्रांस और भारत के बीच रक्षा खरीद प्रक्रिया 2013 के तहत समझौता हुआ था। इस सौदे के मानक नियम समझौते के संलग्नक 8 में दर्ज हैं। इनमें कहा गया है कि, “रक्षा खरीद प्रक्रिया के नियमों में स्पष्ट है कि डीपीपी 2013 ही किसी भी रक्षा खरीद के लिए मानक आधार होगा, फिर भी भारत सरकार ने इन शर्तों को दो निजी रक्षा सप्लायर से समझौते करते वक्त हटा दिया।”
द हिंदू की रिपोर्ट में मुख्य रूप से यह खुलासे किए गए हैं।
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