भारत के इतिहास में 2 अक्टूबर का दिन बेहद विशेष स्थान रखता है। आज का दिन इतिहास में देश की दो महान विभूतियों के जन्मदिन के तौर पर दर्ज है। इसी दिन 1869 में जहां राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का जन्म हुआ, वहीं 1904 में आज ही के दिन पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री का भी जन्म हुआ। एक ओर जहां गांधी जी के विचारों और संघर्ष ने भारत को आजाद कराने में बड़ी भूमिका निभाई, वहीं लाल बहादुर शास्त्री ने उनके विचारों को अपनाकर देश के निर्माण में बड़ी की भूमिका अदा की। उनकी सादगी, ईमानदारी, विनम्रता और निर्मल छवि के लोग आज भी कायल हैं। 1965 के भारत-पाक युद्ध के दौरान उनका दिया, ‘जय जवान, जय किसान’ का नारा आज भी सटीक और सार्थक है।
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मंगलवार को राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री को उनकी 114वीं जयंती पर विजय घाट स्थित उनकी समाधि पर जाकर श्रद्धांजलि दी। राष्ट्रपति ने पूर्व प्रधानमंत्री शास्त्री को श्रद्धांजलि देते हुए ट्वीट कर कहा, "हमारे पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी को उनकी जयंती पर याद कर रहा हूं। उनकी ईमानदारी, युद्धकालीन नेतृत्व और हरित क्रांति को आकार देने में उनकी भूमिका पूरे देश के लिए एक प्रेरणा बनी रहेगी।" उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने भी ट्वीट किया, "आज दिल्ली में पूर्व प्रधानमंत्री और हमारी मिट्टी के महान सपूत लाल बहादुर शास्त्री को विजय घाट में उनकी जयंती पर श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए।" पूर्व प्रधानमंत्री को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए पीएम मोदी ने कहा कि शास्त्री जी ने 'शक्ति और सादगी' का सार निकाला। उन्होंने भारत का एक महत्वपूर्ण समय पर नेतृत्व किया और हमारे देश को और समृद्ध बनाने के लिए कड़ी मेहनत की।"
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भारत के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री एक गांधीवादी नेता थे। उन्होंने अपना पूरा जीवन गरीबों, कमजोरों और देश की सेवा में समर्पित कर दिया था। उनका जन्म 2 अक्टूबर 1904 को उत्तर प्रदेश के मुगलसराय में शारदा प्रसाद और रामदुलारी देवी के यहां हुआ था। 1920 में वह छोटी सी उम्र में देश की आजादी की लड़ाई में शामिल हो गए। महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन में भाग लेने के कारण उन्हें कुछ समय के लिए जेल जाना पड़ा था। आजादी के बाद पंडित जवाहरलाल नेहरू की सरकार में उन्होंने कई अहम विभागों को संभाला। प्रधानमंत्री बनने से पहले वह देश के विदेश मंत्री, गृह मंत्री और रेल मंत्री जैसे अहम पदों पर रहे। 11 जनवरी, 1966 को ताशकंद घोषणा पर हस्ताक्षर करने के एक दिन बाद दिल का दौरा पड़ने के कारण उज्बेकिस्तान के ताशकंद में उनका निधन हो गया। उन्हें 1966 में देश के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार भारत रत्न से मरणोपरांत सम्मानित किया गया।
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लाल बहादुर शास्त्री का पूरा जीवन सरलता, ईमानदारी और सादगी से भरा रहा। उनकी सादगी के कई किस्से देश के इतिहास में दर्ज हैं। लाल बहादुर शास्त्री जाति प्रथा के घोर विरोधी थे। उनके नाम के साथ 'शास्त्री' उपनाम असल में उनकी उपाधि है, जो उन्हें काशी विद्यापीठ की तरफ से मिली थी।
गरीबी और अभाव में जन्म लेने वाले शास्त्री जी शुरू से संघर्ष के आदी थे। बचपन में गंगा की दूसरी तरफ स्थित स्कूल जाने के लिए नाव के पैसे नहीं होने के कारण वह दिन में दो बार सिर पर अपनी किताबें बांधकर तैरकर नदी पार किया करते थे और स्कूल जाते थे। उनके बारे में कहा जाता है कि वह फटे कपड़ों से बाद में रुमाल बनवा लेते थे और अपने फटे कुर्तों को कोट के नीचे पहना करते थे। इस पर जब उनकी पत्नी उन्हें टोका करतीं, तो वह कहते थे कि देश में बहुत से ऐसे लोग हैं, जो इसी तरह गुजारा करते हैं। बापू को अपना आदर्श मानने वाले शास्त्री जी को खादी से इतना लगाव था कि अपनी शादी में दहेज के तौर पर उन्होंने खादी के कपड़े और चरखा लिया था।
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देश का प्रधानमंत्री बनने से पहले विदेश मंत्री, गृह मंत्री और रेल मंत्री जैसे अहम पदों पर रहे शास्त्री जी इतने ईमानदार थे कि उन्होंने कभी अपने पद का इस्तेमाल परिवार या निजी लाभ के लिए नहीं किया। उन्होंने प्रधानमंत्री के तौर पर मिली गाड़ी का कभी निजी काम के लिए इस्तेमाल नहीं किया। निजी इस्तेमाल के लिए उन्होंने कर्ज लेकर एक गाड़ी खरीदी थी, जिसे वह अपने जीवन में नहीं चुका पाए। कहा जाता है कि प्रधानमंत्री होने के बावजूद उन्होंने अपने बेटे के कॉलेज में दाखिले के फॉर्म पर अपने आपको प्रधानमंत्री न लिखकर सरकारी कर्मचारी लिखा। यही नहीं उनके बेटे को नौकरी में जब एक बार गलत तरीके से प्रमोशन दे दिया गया, तो उन्होंने खुद उस प्रमोशन को रद्द करवा दिया। वह किसी भी कार्यक्रम में वीवीआईपी की तरह नहीं, बल्कि एक आम इंसान की तरह जाना पसंद करते थे। तरह-तरह के पकवानों के इंतजाम के बावजूद वह कभी किसी आयोजन में नहीं खाते थे। वह कहा करते थे कि “देश का गरीब आदमी भूखा सोया होगा और मै मंत्री होकर पकवान खाऊं, ये शोभा नहीं देता”। भारत-पाक युद्ध के दौरान देश के अन्न संकट से उबरने के लिए उन्होंने देशवासियों से सप्ताह में एक दिन का व्रत रखने की अपील की थी और खुद भी परिवार सहित एक दिन उपवास रखा करते थे।
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लाल बहादुर शास्त्री का पूरा जीवन सादा जीवन और उच्च विचार का उदाहरण है। उनके लिए देश और उसकी एकता और समृद्धि ही पूरी जिंदगी सर्वोपरि रहा। उनका मानना था कि हमारी ताकत और मजबूती के लिए सबसे जरूरी काम है लोगो में एकता स्थापित करना। राष्ट्रवाद, लोकतंत्र और स्वतंत्रता पर भी उनके विचार बेहद स्पष्ट थे। उनका मानना था कि जब स्वतंत्रता और अखंडता खतरे में हो, तो पूरी ताकत से उस चुनौती का मुकाबला करना ही एकमात्र कर्त्तव्य होता है। वह कहा करते थे कि देश की तरक्की के लिए हमें आपस में लड़ने के बजाय गरीबी, बीमारी और अज्ञानता से लड़ना होगा।
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