देश में उठे फेसबुक विवाद के बीच कांग्रेस सांसद और आईटी पर संसद की स्थायी समिति के अध्यक्ष शशि थरूर द्वारा सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के अधिकारियों को समिति के समक्ष तलब करने पर बीजेपी बौखला गई है। इस बीच थरूर की ओर से बीजेपी सांसद के खिलाफ विशेषाधिकार हनन का नोटिस दिए जाने के बाद थरूर के कदमों को रोकने के लिए भगवा पार्टी दो योजनाओं के साथ तैयार है, जिसमें से पहला कदम पहले ही चला जा चुका है, जो थरूर को समिति के चेयरमैन पद से हटाने की मांग के रूप में है।
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अगर प्लान ए वांछित परिणाम नहीं देता है, तो बीजेपी की ओर से एक सितंबर को बैकअप योजना पर अमल करने की संभावना है, जब आईटी पर स्थायी समिति का पुनर्गठन होगा। फेसबुक के प्रतिनिधियों को अगले दिन शाम 4 से 4.30 बजे के बीच तलब किया गया है। इस विषय पर 'नागरिकों के अधिकारों की रक्षा और सामाजिक/ऑनलाइन समाचार मीडिया प्लेटफार्मों के दुरुपयोग की रोकथाम' नियम में किसी भी सदस्य को सवाल उठाने और उस पर मतदान करने की अनुमति है।
ऐसे में आकंड़ों की बात करें तो समिति में शामिल 21 लोकसभा सदस्यों में से बीजेपी के 12 और एक सहयोगी का सदस्य है। वहीं 10 राज्यसभा सदस्यों में से एक का निधन हो गया है और अब इनमें से केवल नौ बचे हैं। इन नौ में से बीजेपी के तीन सदस्य हैं और एक नामित सदस्य का वोट मिलने की भी उम्मीद है।
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इस 30 सदस्यी पैनल में बीजेपी के खुद के दम पर 15 सदस्य हैं। अगर यह सहयोगी लोक जनशक्ति पार्टी (एलजेपी) और एक मनोनीत सदस्य को अपने पाले में कर लेती है तो सत्तारूढ़ दल के पास 17 वोट हो जाएंगे। हालांकि यह वोटिंग इतनी आसान नहीं है, यह देखते हुए कि पिछली बार व्हाट्सएप स्नूपिंग का मुद्दा जब सामने आया था, तब बीजेपी ने वह राउंड गंवा दिया था। लेकिन इस बार, बीजेपी ने अपने अंकगणित पर काम करना शुरू कर दिया है।
हालांकि बीजेपी का प्लान बी पर ज्यादा रुझान नहीं है। बीजेपी के प्लान ए में लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला के जरिये सूचना प्रौद्योगिकी संबंधी स्थायी समिति के अध्यक्ष थरूर को रोकने का है, जिन्होंने फेसबुक के प्रतिनिधियों को दो सितंबर को समिति में समन किया है। समिति में थरूर के इस कदम पर बीजेपी के विरोध का नेतृत्व करते हुए, निशिकांत दुबे ने बिरला को पत्र लिखकर योजना ‘ए’ को आगे बढ़ाया है, जहां उन्होंने आचरण संबंधी नियम 283 को लागू करने का आग्रह किया है।
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यह नियम कहता है कि स्पीकर (अध्यक्ष) समय-समय पर एक समिति के अध्यक्ष को ऐसे निर्देश जारी कर सकता है, जैसा कि स्पीकर प्रक्रिया और अपने काम के संगठन को विनियमित करने के लिए आवश्यक समझता है। सरल शब्दों में कहें तो स्पीकर थरूर को रोकने के लिए कदम उठा सकते हैं, अगर वह परिस्थिति के अनुसार सटीक बैठता है। दुबे का कहना है कि, "समिति में किसी को भी बुलाने के लिए हस्ताक्षर करने वाला प्राधिकारी महासचिव होता है, जो लोकसभा अध्यक्ष और अध्यक्ष को रिपोर्ट करता है और किसी को रिपोर्ट नहीं करता है।"
अध्यक्ष की इस अतिव्यापी शक्ति पर बल देते हुए, निशिकांत दुबे ने थरूर के कथित दुराचार के उदाहरणों का हवाला दिया है, जिसमें कथित रूप से समिति के सदस्यों को दरकिनार करना शामिल है। हालांकि, बीजेपी के ही कई सदस्यों ने स्वीकार किया है कि थरूर को हटाना स्पीकर के लिए भी आसान काम नहीं है।
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