प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के मुखिया शिवपाल सिंह यादव इन दिनों लगातार सुर्खियों में हैं। भतीजे अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी में भाव नहीं मिलने से उनके बीजेपी में अपनी संभावना तलाशने की चर्चा इन दिनों तेज है। अब जाकर खुद उन्होंने इसके संकेत भी दे दिए हैं। दो दिन पहले ही उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और पूर्व डिप्टी सीएम डा. दिनेश शर्मा को ट्विटर पर फॉलो करके अपने अगले कदम का संकेत दे दिया था।
शिवपाल यादव ने सोमवार को ट्वीट कर कहा, "प्रातकाल उठि कै रघुनाथा। मातु पिता गुरु नावहिं माथा। आयसु मागि करहिं पुर काजा। देखि चरित हरशइ मन राजा। भगवान राम का चरित्र सपरिवार, संस्कार और राष्ट्र निर्माण की सर्वोत्तम पाठशाला है। चैत्र नवरात्रि आस्था के साथ ही प्रभु राम के आदर्श से जुड़ने और उसे गुनने का भी क्षण है।"
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अखिलेश यादव और शिवपाल यादव के बीच लंबे समय तक चली रार इस चुनाव में कुछ थमती नजर आई थी। प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) बनाने वाले शिवपाल अपने भतीजे और सपा मुखिया से कुछ सीटों के लिए बातचीत करते रहे, लेकिन अंतत: अखिलेश ने सिर्फ एक ही सीट उनके लिए छोड़ी। समावादी पार्टी के चुनाव चिन्ह पर अखिलेश ने भले ही चाचा को चुनाव लड़वाकर विधायक बनवा दिया हो, पर इस समय उनकी ज्यादा कोई दिलचस्पी शिवपाल को लेने में दिख नहीं रही है।
दरअसल चुनाव में भले ही परिवार की एकता की बातें चली थी। पर हार के बाद समाजवादी पार्टी ने जब उनको विधायक दल की बैठक में नहीं बुलाया तो उनके तेवर तल्ख होने लगे। 28 मार्च को समाजवादी पार्टी के सहयोगी दलों की बैठक से किनारा करने वाले शिवपाल सिंह यादव ने 29 मार्च को विधानसभा अध्यक्ष के कमरे में विधानसभा सदस्य के रूप में शपथ ली और मीडिया को अपने अगले कदम का इंतजार करने को कहा। उसके बाद वह मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मिले और इसे निजी मुलाकात बताया।
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समाजवाजी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव के रवैये से आहत विधायक शिवपाल सिंह यादव अपने समर्थकों के साथ लगातार बैठक कर रहे हैं। शिवपाल ने अभी हाल में ही पार्टी कार्यालय में प्रसपा से जुड़े वरिष्ठ नेताओं के साथ मंत्रणा की थी। हालांकि बीजेपी में जाने के सवाल पर वो चुप रहे। उन्होंने कहा कि अगले कदम के बारे में जल्द ही घोषणा करेंगे।
राजनीतिक पंडितों की मानें तो शिवपाल को अखिलेश ज्यादा भाव नहीं दे रहे हैं। उनको अपने साथ रखने में उन्हें कोई बड़ा फायदा नहीं दिख रहा है। ये बात 2019 की लोकसभा और अभी 2022 के विधानसभा में साबित होती दिखी। क्योंकि जो एमवाई का समीकरण मुलायम के जमाने से है उसने अखिलेश पर अपना विश्वास कर लिया है। अब अखिलेश को शिवपाल की ज्यादा जरूरत दिख नहीं रही है। पार्टी में अखिलेश का पूरा वर्चस्व हो चुका है।
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दशकों से यूपी की राजनीति में गहरी पकड़ रखने वाले रतनमणि लाल कहते हैं कि अखिलेश को अब शिवपाल की जरूरत नहीं है। इस चुनाव में अखिलेश ने उनकी पार्टी को खत्म करके उन्हें प्रभावहीन बना दिया है। शिवपाल के पास भले ही थोड़ा बहुत जनाधार हो, सहकारिता मूवमेंट को उन्होंने खड़ा किया हो, लेकिन उनके इस महत्व को सपा इस्तेमाल नहीं करना चाहती है। सपा ने जो इस बार प्रदर्शन किया है उसका क्रेडिट अखिलेश को ही है। शिवपाल की जरूरत अब सपा को नहीं है।
वहीं, शिवपाल के सामने अब बीजेपी में ही जाने का रास्ता बचा है। इसलिए वह हाथ पैर मार रहे हैं। लेकिन बीजेपी में अभी जाना इतना आसान नहीं है, क्योंकि अंदर विरोध होगा। बीजेपी पर्दे के पीछे से उनको मजबूत बनाने का काम कर सकती है। उनका राजा भैया की पार्टी जैसा कद बनाया जा सकता है। शिवपाल को बीजेपी को समर्थन देने वाली पार्टी बनाने की संभावना ज्यादा है।
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