मोदी सरकार के 3 अध्यादेशों के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हरियाणा के किसानों को देशद्रोही कहना बीजेपी के गले की फांस बनता जा रहा है। कांग्रेस कार्यसमिति सदस्य और राज्यसभा सांसद दीपेंद्र सिंह हुड्डा ने किसानों को देशद्रोही बताने वाले बीजेपी के बयान पर हमला बोला है। उन्होंने कहा कि देश की 130 करोड़ जनसंख्या एक सुर में जय जवान और जय किसान का नारा लगाती है। जवान और किसान दोनों एक ही परिवार से आते हैं। किसान देश के खेतों को अपने पसीने से सींचता है तो उसका बेटा सैनिक बनकर देश की सीमा की रक्षा के लिए अपना खून बहाता है। लेकिन देश को खून-पसीने से सींचने वाले किसान वर्ग को बीजेपी ने देशद्रोही कहने का घोर पाप किया है। बीजेपी के इस बयान से पूरे हरियाणा के किसानों और बॉर्डर पर खड़े उनके बेटों में रोष है। बरौदा उपचुनाव में वहां की जनता किसान को देशद्रोही कहने वालों को सबक सिखाएगी।
दीपेंद्र सिंह हुड्डा ने कहा कि कांग्रेस सरकार के दौरान खुद बीजेपी नेता किसान बनकर अर्धनग्न प्रदर्शन करते थे, लेकिन उन्हें किसी ने देशद्रोही नहीं कहा। आज वही लोग सत्ता में बैठकर, लोकतांत्रिक तरीके से विरोध-प्रदर्शन करने वाले किसानों को देशद्रोही करार दे रहे हैं। इससे दुर्भाग्यपुर्ण और कुछ नहीं हो सकता। उन्होंने कहा कि अपनी किसान विरोधी नीतियों की वजह से ही बीजेपी लगातार ऐसे फैसले ले रही है, जिससे किसानों को नुकसान हो। इसी दिशा में संसद को बाईपास करके करोना काल में 3 नए अध्यादेश लाए गए हैं। इन 3 अध्यादेशों के जरिए सरकार खरीद तंत्र को ध्वस्त कर पूंजीपतियों और जमाखोरी को बढ़ावा देना चाहती है।
कांग्रेस सांसद ने कहा कि बीजेपी सरकार किसानों को एमएसपी देने से पीछे हट रही है। इसी वजह से पिछले 6 साल में हुड्डा सरकार के मुकाबले एमएसपी में खट्टर सरकार ने ना के बराबर बढ़ोत्तरी की है। दीपेंद्र हुड्डा ने आंकड़ों के साथ बताया कि हुड्डा सरकार के दौरान धान के रेट में हर साल औसतन 14-15 प्रतिशत बढ़ोत्तरी करते हुए 800 रुपये बढ़ाए गए। इसके अलावा खाड़ी देशों में एक्सपोर्ट की वजह से हुड्डा सरकार के दौरान किसानों को एमएसपी से कहीं ज्यादा 4000 से 6000 रुपये तक धान का रेट मिला।
दीपेंद्र हुड्डा ने कहा कि दूसरी तरफ खट्टर सरकार में एमएसपी में वृद्धि की दर घटकर सिर्फ 6 प्रतिशत सालाना रह गई। गेहूं के रेट में हुड्डा सरकार के दौरान कुल 127 प्रतिशत यानी हर साल औसतन 13 प्रतिशत बढ़ोत्तरी हुई। लेकिन खट्टर सरकार में यह बढ़ोत्तरी घटकर सिर्फ 5 प्रतिशत रह गई। गन्ने के रेट में भी हुड्डा सरकार के दौरान करीब 3 गुणा बढ़ोत्तरी करते हुए 117 से 310 रुपये तक पहुंचाया गया। लेकिन खट्टर सरकार ने 6 साल में महज 20 से 30 रुपये की बढ़ोत्तरी की। उसकी भी बरसों से पेमेंट रुकी हुई है।
बेरोजगारी के मुद्दे पर भी खट्टर सरकार को आईना दिखाते हुए दीपेंद्र हुड्डा ने कहा कि सीएमआईई के आंकड़ों से पता चला है कि हरियाणा इस महीने भी पूरे देश में बेरोजगारी में नंबर वन है। उन्होंने कहा कि खट्टर सरकार युवाओं को नौकरी देने की बजाए उनका रोजगार छीनने में लगी है। बीजेपी सरकार ने 6 साल में कुल जितनी नौकरियां दी हैं, उससे ज्यादा नौकरियां तो हुड्डा सरकार के दौरान सिर्फ शिक्षा महकमे में दी गईं।
उन्होंने कांग्रेस के 10 साल के शासन में नौकरियों का ब्यौरा देते हुए कहा कि इस दौरान शिक्षा विभाग में एचएसएससी, एचपीएससी, कॉलेज-यूनिवर्सिटी कैडर और अन्य की करीब 51,000 भर्तियां हुईं। अगर इनमें गेस्ट टीचर्स, कंप्यूटर टीचर्स और लैब अटेंडेंट को भी जोड़ दिया जाए तो नौकरियों का आंकड़ा करीब 80,000 बनता है। भर्तियों में अगर शिक्षा विभाग के एडमिनिस्ट्रेशन, टेक्निकल, ग्रुप डी और कॉन्ट्रेक्चुअल स्टाफ को जोड़ा जाए तो यह आंकड़ा करीब एक लाख का बनता है। इस आंकड़े में उस दौरान स्थापित हुए प्राइवेट कॉलेज और विश्वविद्यालयों की नौकरियां शामिल नहीं हैं। फिर भी यह आंकड़ा इतना बड़ा है कि खट्टर सरकार की सारी भर्तियों पर भारी पड़ता है।
उन्होंने कहा कि बीजेपी सरकार के 6 साल में जेबीटी की एक भी भर्ती नहीं हुई, जबकि हुड्डा सरकार के दौरान करीब 20 हजार भर्तियां निकाली गईं। अलग-अलग महकमों में भर्ती संस्थाओं की तरफ से करीब 1,46,000 भर्तियां की गईं। अगर इसमें सेमी रेगुलर गेस्ट टीचर, कंप्यूटर टीचर्स, आशा वर्कर्स, आंगनबाड़ी वर्कर्स, मिड-डे-मील वर्कर्स जैसी नौकरियों को भी जोड़ा जाए तो यह आंकड़ा करीब 2,30,000 बनता है। अगर हेल्थ वर्कर्स, डीसी रेट और अनुंबधित कर्मचारियों को भी इसमें शामिल किया जाए तो हुड्डा सरकार के दौरान सरकारी विभागों में कुल नौकरियां देने का आंकड़ा करीब 3 लाख बनता है, जबकि खट्टर सरकार के दौरान अब तक बमुश्किल 50 हजार भर्तियां ही की गई हैं।
दीपेंद्र हुड्डा ने कहा कि बीजेपी सरकार के दौरान हरियाणा में न कोई बड़ा प्रोजेक्ट आया, न कोई संस्थान और न ही कोई परियोजना। इसलिए सरकारी या निजी, दोनों ही क्षेत्रों में सरकार रोजगार देने में विफल रही। कांग्रेस सांसद ने कहा कि खट्टर सरकार ने अपने कार्यकाल में कुल जितनी नौकरियां दी हैं, उससे ज्यादा तो कर्मचारी हर साल रिटायर हो जाते हैं। सरकार की तरफ से हर महकमे में छंटनी की जा रही है, वह अलग है।
कांग्रेस नेता ने कहा कि हरियाणा के 1983 पीटीआई को सिर्फ राजनीति के चलते शिकार बनाया गया। अगर सरकार कोर्ट को पीटीआई की वैकेंसी के बारे में सही जानकारी देती तो इनका रोजगार बच सकता था। खेल कोटे से ग्रुप-डी में भर्ती हुए 1518 कर्मचारियों को भी यह सरकार नौकरी से निकाल रही है। यह पहली बार है कि अपने ही भर्ती किए गए कर्मचारियों के खिलाफ केस हारने के बाद सरकार खुद सिंगल बेंच के बाद डबल बेंच में जा रही है। हुड्डा ने कहा कि आयुष डॉक्टरों, पर्यटन निगम कर्मचारियों, असिस्टेंट प्रोफेसरों, युनिवर्सिटीज-कॉलेज से कच्चे कर्मचारियों, सफाई कर्मियों और कंप्यूटर ऑपरेटरों को सरकार अपनी छंटनी नीति का शिकार बना रही है। इससे पहले 5000 शिक्षा प्रेरकों को भी खट्टर सरकार ने आते ही नौकरी से निकाल दिया था।
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