अमरावती अब धीरे-धीरे सामान्य स्थिति की ओर लौट रहा है। लेकिन महाराष्ट्र में नांदेड़, मालेगांव और अब अमरावती में सांप्रदायिक तत्वों ने आग में घी डालने और उससे हाथ सेंकने की जिस तरह कोशिश की, वह महा विकास अघाड़ी (एमवीए) सरकार के लिए सबक ही है। इस किस्म के पूरे कुचक्र का निशाना कई अन्य शहरों के साथ इन शहरों में होने वाले नगर निकाय चुनावों से पहले एमवीए सरकार में असहमतियां पैदा करना है।
अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (कानून-व्यवस्था) डॉ. राजेन्द्र सिंह के अनुसार, इस हिंसा में दोनों ही पक्षों के 14,000 लोगों पर आगजनी, लूट आदि के मामले दर्ज किए गए हैं और 200 से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है।
वैसे, अमरावती में हुई हिंसा साफ तौर पर प्रायोजित ही लगती है। त्रिपुरा में मस्जिद में आग लगाने के विरोध के नाम पर महाराष्ट्र के कई इलाकों में रजा एकेडमी ने विरोध प्रदर्शन करने की घोषणा की थी। इस मुद्दे पर 12 नवंबर को अमरावती में जिस तरह अचानक 50,000 लोग इकट्ठा हो गए, वह खुद पुलिस वालों के ही नहीं, अल्पसंख्यकों के लिए भी चौंकाने वाला था। रजा एकेडमी सलमान रश्दी, तसलीमा नसरीन, संगीतकार के आर रहमान आदि के विरोध के नाम पर चर्चा में रहता रहा है लेकिन यह किसी राजनीतिक शक्ति के तौर पर महाराष्ट्र में कभी नहीं जाना गया। वह भी मूलतः मुंबई में ही विरोध प्रदर्शन करता रहा है। यह कोई सोच भी नहीं सकता कि मुंबई से बाहर वह इतनी भीड़ इकट्ठा कर सकता है। इसलिए पुलिस इंटेलिजेन्स ने भी 500 लोगों के इकट्ठा होने की संभावना जताई थी।
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लेकिन अब समझा जा रहा है कि सारा ताना-बाना किस तरह बुना गया। एडीजी राजेन्द्र सिंह का कहना है कि मोर्चा निकालने की अनुमति मांगने के लिए किए गए आवेदन में एकेडमी के नाम का उल्लेख नहीं किया गया था। उन्होंने यह तक कहा कि हिंसा के बाद एकेडमी का नाम सामने आने के बाद जांच-पड़ताल की गई, तो अब तक इसके अमरावती में ऑफिस होने की कोई जानकारी नहीं मिली है। जिन भी लोगों को गिरफ्तार किया गया, उनमें से किसी ने एकेडमी से संबद्ध होने की बात नहीं कही है।
इसीलिए शिव सेना प्रवक्ता संजय राउत की इस बात में दम लगता है कि एकेडमी, दरअसल, भाजपा द्वारा प्रायोजित संगठन है। यह भी कारण है कि राज्य के गृहमंत्री दिलीप वाल्से पाटिल ने भी कहा है कि भले ही एकेडमी का नाम सामने आया है, पुलिस-प्रशासन हिंसा में शामिल होने की संभावना रखने वाले अन्य लोगों की भी तलाश कर रहा है।
हिंसा के प्रायोजित होने की वजह भी लग रही है। एकेडमी के नेतृत्व वाला मोर्चा 12 नवंबर को शांतिपूर्ण ढंग से कलक्ट्रेट तक पहुंचा और उसने वहां ज्ञापन भी सौंपा। गड़बड़ी तब शुरू हुई जब भीड़ लौट रही थी। रेलवे यार्ड से कुछ शरारती तत्वों ने पत्थर फेंके। स्वाभाविक है, इससे मोर्चा में शामिल लोग भड़क गए। लेकिन जब तक पुलिस कुछ समझती, उससे पहले ही कुछ लोगों ने ऐसे प्रतिष्ठानों पर हमले शुरू कर दिए जो दूसरे पक्ष के लोगों के थे। उन लोगों ने न सिर्फ संपत्ति को क्षति पहुंचाई बल्कि कुछ व्यापारियों के साथ दुर्व्यवहार भी किया।
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प्रत्यक्षदर्शी होने का दावा करने वाले लोग यह भी कह रहे कि इस किस्म से हमला करने वाले अधिकांश लोगों को इस शहर में पहले कभी नहीं देखा गया। इससे इस संदेह को बल मिलता है कि उत्पात मचाने वाले लोग बाहर से भी आए थे।
महा विकास अघाड़ी सरकार के खिलाफ जब-तब कुछ-न-कुछ करते रहने वाली भाजपा ने मौके का फायदा उठाया और उसने अगले दिन- 13 नवंबर को अमरावती बंद की घोषणा कर दी। कुछ व्यापारियों ने भी उसे समर्थन दे दिया। विश्व हिन्दू परिषद के लोग भी ताक में बैठे ही थे। भारी पुलिस बंदोबस्त के बावजूद अमरावती के केन्द्र- राजकमल चौराहे पर भगवा झंडों के साथ धीरे-धीरे सैकड़ों लोग इकट्ठा हो गए। वे उत्तेजक नारे भी लगा रहे थे। उन लोगों ने एक खास तरीका भी अपनाया। एक दिशा की ओर विरोध प्रदर्शन के लिए बढ़ने की जगह लोग अलग- अलग जत्थों में विभिन्न दिशाओं की ओर बढ़ने लगे। इससे पुलिस की मुश्किलें बढ़ गई। इन लोगों ने शिनाख्त कर दुकानों, गैराजों को तो निशाना बनाया ही, राजकमल चौराहे के पास दो दरगाहों को लगभग तहस-नहस ही कर दिया। पान की गुमटियों तक को निशाना बनाया गया, अम्बापेठ और हमालपुरा में गैराजों में तोड़फोड़ की गई और वहां मौजूद गाड़ियों में आग लगा दी गई। यहां तक कि पुलिस वाहनों पर भी पत्थर फेंके गए।
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इधर यह सब हो रहा था, उधर सक्कर सठ में एक शनि मंदिर पर पत्थर फेंके जाने लगे। इस मंदिर के पुजारी भी इसमें गंभीर रूप से घायल हो गए। मसानगंज, छत्रपुरी खिड़की, गांधी चौक, पटवा चौक, मोरबाग, विलास नगर, साहू बाग, चित्रा चौक और इटवारा बाजार इलाकों में आबादी मिल-जुलकर रहती रही है। यहां भी दोनों पक्ष आमने-सामने गए और एक-दूसरे पर पत्थर बरसाने लगे। वैसे भी, अमरावती की आबादी लगभग उसी तरह मिली-जुली है जैसी शेष भारत में है। स्थिति बिगड़ती देख पुलिस ने आंसू गैस के गोले बरसाए, पानी की बौछारें छोड़ीं और लाठी चार्ज किया। बाद में कर्फ्यू लगाना पड़ा। इंटरनेट भी डाउन कर दिया गया ताकि अफवाहें फैलने से रोका जा सके।
लेकिन इन सबसे एक बात तो साफ है कि सरकार में शामिल दलों- कांग्रेस, शिव सेना और एनसीपी के साथ-साथ तमाम धर्मनिरपेक्ष शक्तियों के लिए यह चुनौती दिनोंदिन बढ़ती जा रही है कि वे सांप्रदायिक तत्वों को सिर उठाने का मौका ही नहीं दें और आरंभ में ही उन पर नियंत्रण पाने का पूरा प्रयास करें क्योंकि सावधानी जरा-सी हटी नहीं कि इस किस्म की दुर्घटना होने का खतरा बढ़ जाएगा।
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