नेशनल हेरल्ड को पता चला है कि सीबीआई जज बीएच लोया की रहस्यमयी मौत के साढ़े तीन महीने बाद नागपुर के रवि भवन में अजीबोगरीब ढंग से एक ही साथ विभिन्न लोग ठहरे। रवि भवन वही राज्य अतिथि-गृह है जहां, खबरों के मुताबिक, हार्ट अटैक आने के वक्त जज लोया ठहरे हुए थे और उन्हें अस्पताल ले जाया गया और वहां 1 दिसंबर 2014 को उन्हें मृत घोषित कर दिया गया।
अपनी मौत से पहले जज लोया सोहराबुद्दीन शेख कथित फर्जी मुठभेड़ मामले की सुनवाई कर रहे थे, जिसमें बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह आरोपी थे। लोया के बाद मामले की सुनवाई करने वाले जज द्वारा उन्हें निर्दोष घोषित किए जाने के ढाई महीने बाद अमित शाह भी रवि भवन में ठहरे थे।
नेशनल हेरल्ड को मार्च 2015 का रवि भवन का जो अतिथि खाता मिला है वह दिखाता है कि अमित शाह उसी समय वहां ठहरे थे जब एडिशनल सॉलिसिटर जनरल अनिल सी सिंह वहां ठहरे थे। सिंह फिलहाल सोहराबुद्दीन मुठभेड़ मामले में ट्रायल कोर्ट में चल रही सुनवाई में सीबीआई का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। उसी वक्त वहां जस्टिस एन डब्ल्यू सांबरे भी ठहरे हुए थे। फिलहाल वे सोहराबुद्दीन मामले में कई आईपीएस अधिकारियों को आरोपमुक्त किए जाने के खिलाफ बॉम्बे हाई कोर्ट में दायर याचिका की सुनवाई कर रहे हैं।
रवि भवन के अतिथि रजिस्टर की पृष्ठ संख्या 155 पर संख्या 925 में लिखा है कि संख्या 3 और 7 के कॉटेज अमित शाह के लिए बुक किए गए थे। उसी पृष्ठ पर संख्या 926 में लिखा है कि कॉटेज संख्या 8 अनिल सिंह के लिए बुक किया गया था। संख्या 926ए (हाथ से लिखी गई) सुप्रीम कोर्ट जज यूयू ललित के नाम पर बुक था। और संख्या 927 के अनुसार, कॉटेज संख्या 9 जज एन डब्ल्यू सांबरे के नाम पर बुक था (पृष्ठ 155 की तस्वीर नीचे देखी जा सकती है)।
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रवि भवन के रजिस्टर के अनुसार, शाह, सिंह और सांबरे रवि भवन में 13-14 मार्च, 2015 को एक ही समय में ठहरे थे। अमित शाह 12 मार्च से 15 मार्च, 2015 तक रवि भवन में ठहरे; अनिल सिंह और जज सांबरे दोनों एक दिन के लिए ठहरे। वे 13 मार्च को आए और 14 मार्च को चले गए। चूंकि, शाह के नाम पर दो कॉटेज बुक थे, यह निश्चित रूप से नहीं बताया जा सकता कि वे असल में किस कमरे में ठहरे थे।
संयोग यह है कि अमित शाह जिस दिन बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने, उसी दिन 9 जुलाई 2014 को अनिल सिंह को केंद्र सरकार ने भारत का एएसजी (पश्चिमी जोन) नियुक्त किया। बीजेपी अध्यक्ष के अलावा अमित शाह केंद्र या राज्य में किसी और पद पर नहीं हैं।
नागपुर जाने वाले कई वकील, जज,नेता, पत्रकार रवि भवन में ठहरते हैं, क्योंकि यह नागपुर में हाई कोर्ट के ठीक सामने की केन्द्रीय जगह पर है। फिरभी, क्या यह सिर्फ एक संयोग मात्र था कि हाल ही आरोपमुक्त हुए एक ताकतवर आरोपी, फिलहाल दूसरी तरफ से मुकदमा लड़ रहे एक वकील और वह जज जो बाद में उसी मामले में आरोपियों को मुक्त किए जाने के खिलाफ दायर पुनर्विचार याचिका करने वाले थे, वे सब एक ही समय में गेस्ट हाउस में ठहरे हुए थे।
इसके बारे में जानने के लिए नेशनल हेरल्ड ने अमित शाह को निम्नलिखित सवाल ईमेल द्वारा भेजे:
नेशनल हेरल्ड यह कंफर्म करने में सक्षम नहीं हो पाया कि कब अनिल सिंह सोहराबुद्दीन मामले में सीबीआई का प्रतिनिधित्व करना शुरू किया। एएसजी बनने के तुरंत बाद जुलाई 2014 में या बाद में? यह जानने के लिए हमने 4 अप्रैल, 2018 को एएसजी से उनके मोबाइल फोन पर संपर्क किया। इस पत्रकार ने अनिल सिंह को अपना परिचय दिया और उनसे पूछा कि क्या फोन पर वही बात कर रहे हैं? अनिल सिंह ने अपनी पहचान कंफर्म की। इस पत्रकार ने अनिल सिंह को बताया कि उसने जज लोया मामले में फॉलोअप रिपोर्ट के सिलसिले में नागपुर की यात्रा की थी और उसे इस मामले को लेकर कुछ सवाल पूछने हैं। इस बात को जारी रखते हुए उसने कहा कि वह रवि भवन भी गया था और उसने गेस्ट रजिस्टर देखा है। उसी वक्त, सिंह ने कहा कि उन्हें इस पत्रकार की आवाज साफ सुनाई नहीं दे रही है और वे बाद में कॉल करेंगे। उन्होंने कॉल काट दी और वापस कॉल नहीं किया।
हमने बाद में वही सवाल एएसजी अनिल सिंह को भेज दिए, जो हमने अमित शाह को भेजे थे। उसके अलावा, हमने अनिल सिंह से यह भी पूछा कि ट्रायल कोर्ट में सोहराबुद्दीन मामले में सीबीआई का उन्होंने कब से प्रतिनिधित्व करना शुरू किया। हमें यह रिपोर्ट प्रकाशित करने तक दोनों में से किसी का जवाब नहीं मिला है। हम उनके प्रतिक्रिया/जवाब को प्रकाशित करेंगे अगर और जब वे हमें मिलते हैं।
सोहराबुद्दीन मामले में अचानक एक तबादला
फरवरी 2018 में, बॉम्बे हाई कोर्ट की जस्टिस रेवती मोहिते-डेरे को सोहराबुद्दीन मामले में वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को आरोपमुक्त किए जाने के खिलाफ दायर सीबीआई और रूबाबुद्दीन शेख की पुनर्विचार याचिका को सुनते हुए तीन महीने हो चुके थे। जैसा कि जस्टिस रेवती मोहिते-डेरे को लगा कि सीबीआई इस मामले में आरोपी जूनियर पुलिसवालों को आरोपमुक्त किए जाने के खिलाफ है, जबकि वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को आरोपमुक्त किए जाने का विरोध नहीं कर रही है। वैसे ही जैसे सीबीआई मे अमित शाह को आरोपमुक्त किए जाने का विरोध नहीं किया था। सीबीआई ने अमित शाह को आरोपमुक्त किए जाने को चुनौती नहीं दी। इसके वकील अनिल सिंह ने 23 जनवरी 2018 को बॉम्बे हाई कोर्ट को यह भी बताया कि सीबीआई द्वारा अमित शाह को आरोपमुक्त किए जाने का विरोध नहीं करने के फैसले को चुनौती देने वाली बॉम्बे लॉयर्स एसोसिएशन की जनहित याचिका का भी सीबीआई विरोध करेगी।
मोहिते-डेरे ने ट्रायल कोर्ट द्वारा नवंबर 2017 में जारी फरमान को निरस्त कर दिया था और सोहराबुद्दीन मामले में मीडिया को रिपोर्ट करने की इजाजत दे दी थी। उन्होंने सीबीआई को उसकी तैयारी की कमी के चलते डांट भी लगाई थी। एक सुनवाई के दौरान मोहिते-डेरे ने सीबीआई को कहा था, “मुझे सीबीआई से उस तरह का सहयोग नहीं मिल पा रहा है जो मुझे उससे मिलना चाहिए। अगर यही आपका तरीका है तो आप ट्रायल कर ही क्यों रहे हैं?”
26 फरवरी, 2018 को सारी पुनर्विचार याचिकाओं पर चल रही सुनवाई को बॉम्बे हाई कोर्ट के भीतर मोहिते-डेरे की बेंच से जस्टिस एन डब्ल्यू सांबरे की बेंच को दे दिया गया। नागपुर में रहने वाले एक क्रिमिनिल लॉयर ने यह दावा किया कि जस्टिस मोहिते-डेरे को राजनीतिक ताकतों ने उनकी जगह बता दी।
जज सांबरे का नागपुर से गहरा रिश्ता है और बॉम्बे हाई कोर्ट की वेबसाइट पर मौजूद उनके परिचय के अनुसार, वे नागपुर के कानूनी जगत से काफी जुड़ाव रखते हैं। सांबरे का जन्म नागपुर में हुआ था। वे वहां ही वकील बने। बॉम्बे हाई कोर्ट के नागपुर बेंच में उन्होंने वकील के तौर पर काम भी किया। वे नागपुर में हाई कोर्ट बार एसोसिएशन के सचिव भी रहे। उन्होंने महाराष्ट्र सरकार का नागपुर हाई कोर्ट बेंच में प्रतिनिधित्व भी किया। उन्हें सरकारी वकील और सरकार की ओर से अपील करने वाले के तौर भी चुना गया। इसके अलावा सरकारी और अर्द्ध-सरकारी संस्थाओं के वकील भी रहे। 6 जनवरी, 2014 को उन्हें बॉम्बे हाई कोर्ट के एडिशनल जज के रूप में पदोन्नति दी गई।
जज सांबरे की बॉम्बे हाई कोर्ट में नियुक्ति बिना विवादरहित के नहीं थी। नागपुर के दो वकीलों सतीश यूके और बीएम लोनारे ने तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को हस्तक्षेप करने और जज सांबरे का शपथ-ग्रहण रोकने के लिए कहा था। द टाइम्स ऑफ इंडिया ने 4 मार्च, 2014 को यह खबर दी थी कि यूके और लोनारे ने इस बात की ओर ध्यान दिलाया है कि “एक ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट फर्स्ट क्लास (जेएमएफसी) ने 30 दिसंबर, 2013 को सांबरे के खिलाफ गंभीर आपराधिक जानकारियों के साथ एक आदेश पारित किया था।” उन्होंने सांबरे के खिलाफ एक और मामले की ओर भी ध्यान दिलाया जिसमें राष्ट्रपति ने राज्य के मुख्य सचिव को आरोपों की जांच करने का आदेश दिया था।
यूके का सवाल है, “क्या यह एक संयोग है कि सोहराबुद्दीन केस सांबरे की बेंच के पास चला गया?” जज लोया के रहस्यमयी मौत के मामले में सतीश यूके व्हिसलब्लोअर हैं।
कई संयोगों का एक सिलसिला है और अभी तक कोई जवाब नहीं मिला।
इस बीच, ट्रायल कोर्ट में सोहराबुद्दीन मुठभेड़ मामला सीबीआई के लिए अच्छा नहीं चल रहा है। कल ही, 5 अप्रैल, 2018 को 66 गवाहों में से 48वां गवाह इस मामले में अपनी बात से मुकर गया।
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