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इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस ने पीएम मोदी को पत्र लिखकर जजों की नियुक्ति पर उठाए सवाल, जानिए क्या कहा

इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज रंगनाथ पांडेय ने पीएम मोदी को पत्र लिखकर न्यायपालिका के कथित भ्रष्टाचार की तरफ उनका ध्यान खींचने की कोशिश की है। रंगनाथ पांडेय ने पत्र में लिखा है कि हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट वंशवाद और जातिवाद से बुरी तरह ग्रस्त हैं।

फोटो: सोशल मीडिया
फोटो: सोशल मीडिया 

इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस रंगनाथ पांडेय ने पीएम मोदी को चिट्ठी लिखकर जजों की नियुक्तियों पर गंभीर सवाल उठाए हैं। जस्टिस रंगनाथ पांडेय ने पीएम मोदी को भेजे पत्र में लिखा है कि हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जजों का चयन बंद कमरों में चाय की दावत पर किया जाता है, जिसका मुख्य आधार जजों की पैरवी और उनका पसंदीदा होना ही है।

उन्होंने पीएम को भेजे पत्र में लिखा है कि हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में न्यायधीशों की नियुक्तियों में कोई निश्चित मापदंड नहीं है। प्रचलित कसौटी केवल परिवारवाद और जातिवाद है।

Published: 03 Jul 2019, 11:07 AM IST

पीएम मोदी को लिखे पत्र में उन्होंने लिखा है, “34 साल के सेवाकाल में उन्हें कई बार हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जजों को देखने का अवसर मिला। उनका विधिक ज्ञान संतोषजनक नहीं है। कई न्यायधीशों के पास सामान्य विधिक ज्ञान और अध्ययन तक उपलब्ध नहीं था। कई अधिवक्ताओं (वकीलों) के पास न्याय प्रक्रिया की संतोषजनक जानकारी तक नहीं है। कॉलीजियम के सदस्यों के पसंदीदा होने की योग्यता के आधार पर न्यायाधीश नियुक्ति कर दिए जाते हैं। यह स्थिति बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है।”

पीएम को भेजे पत्र में जस्टिस ने लिखा है कि जब सरकार द्वारा राष्ट्रीय न्यायिक चयन आयोग की स्थापना का प्रयास किया गया तो सुप्रीम कोर्ट ने इसे अपने अधिकार क्षेत्र में हस्तक्षेप मानते हुए असंवैधानिक घोषित कर दिया था।

Published: 03 Jul 2019, 11:07 AM IST

रंगनाथ पांडेय ने पिछले साल में हुए के सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों के विवाद और अन्य मामलों का हवाला देते हुए लिखा है कि न्यायपालिका की गुणवत्ता और अक्षुण्णता लगातार संकट की स्थिति में है। उन्होंने पीएम से गुजारिश की है कि न्यायपालिका की गरिमा को पुर्नस्थापित करने के लिए न्याय संगत कठोर निर्णय लिए जाएं।

Published: 03 Jul 2019, 11:07 AM IST

उन्होंने आगे लिखा है कि, “हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों का चयन बंद कमरों में चाय की दावत पर वरिष्ठ न्यायाधीशों की पैरवी और पसंदीदा होने के आधार पर किया जाता रहा है। इस प्रक्रिया में गोपनीयता का पूरा ध्यान रखा जाता है। प्रक्रिया को गुप्त रखने की परंपरा पारदर्शिता के सिद्धांत को झूठा करने जैसी है। न्यायिक चयन आयोग के स्थापित होने से न्यायाधीशों को अपने पारिवारिक सदस्यों की नियुक्ति करने में बाधा आने की संभावना बलवती हो रही थी। सुप्रीम कोर्ट की इस विषय में अति सक्रियता हम सभी के लिए आंख खोलने वाला प्रकरण सिद्ध होता है।”

Published: 03 Jul 2019, 11:07 AM IST

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Published: 03 Jul 2019, 11:07 AM IST

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