इलाहाबाद हाई कोर्ट ने ताजमहल के 22 बंद दरवाजों को खोलने की मांग वाली याचिका को खारिज कर दिया है। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि आप एक समिति के माध्यम से तथ्यों की खोज की मांग कर रहे हैं। यह आपका कोई अधिकार नहीं है और यह आरटीआई अधिनियम के दायरे में नहीं है। कोर्ट ने कहा कि हम आपकी दलीलों से आश्वस्त नहीं हैं।
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कोर्ट की टिप्पणी पर याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि क्या मैं इसे फिर से एक नई प्रार्थना के साथ दाखिल कर सकता हूं। अदालत ने कहा कि हमने पाया है कि यह याचिका आगरा में स्थित ताजमहल के इतिहास के संबंध में एक अध्ययन के लिए 226 के तहत एक निर्देश की मांग करती है। दूसरी प्रार्थना ताजमहल के अंदर बंद दरवाजों को खोलने की है। अदालत ने कहा कि हमारी राय है कि याचिकाकर्ता ने हमें पूरी तरह से गैर-न्यायसंगत मुद्दे पर फैसला देने का आह्वान किया है।
कोर्ट ने कहा कि हम इस याचिका पर विचार करने में सक्षम नहीं हैं।
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इससे पहले कोर्ट ने याचिकाकर्ता को फटकार लगाते हुए ताजमहल के बारे में जानकारी लेने की सलाह दी थी। कोर्ट ने याचिका डालने वाले अयोध्या बीजेपी नेता से कहा था कि पीआईएल को मजाक ना बनाएं। कोर्ट ने आगे कहा है कि ताजमहल के बारे में रिसर्च करो उसके बाद ही याचिका डालें। कोर्ट ने कहा कि पहले पढ़ लें, ताजमहल कब और किसने बनवाया।
जस्टिस डीके उपाध्याय ने याचिकाकर्ता को फटकार लगाते हुए कहा कि PIL व्यवस्था का दुरुपयोग ना करें। इसका मजाक ना बनाएं। ताजमहल किसने बनवाया पहले जाकर रिसर्च करो। यूनिवर्सिटी जाओ, PHD करो तब कोर्ट आना। रिसर्च से कोई रोके तब हमारे पास आना। अब इतिहास को आपके मुताबिक नहीं पढ़ाया जाएगा।
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आपको बता दें, बीजेपी के अयोध्या मीडिया प्रभारी डॉ. रजनीश सिंह ने कोर्ट में याचिका दायर की थी कि ताजमहल के 22 कमरों को खोला जाए। कमरों में बंद राज को दुनिया के सामने लाने के लिए इसे खोलने का अनुरोध किया गया था। लेकिन सुनवाई के बाद अब कोर्ट ने याचिका को खारिज कर दिया है।
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