हत्या और बलात्कार के संगीन मामलों में दोहरी उम्रकैद की सजा काट रहा सिरसा के डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत राम रहीम सिंह एक बार फिर पैरोल पर 40 दिन के लिए बाहर आ गया है। पैरोल की अवधि वह यूपी के बागपत जिला स्थित डेरे में काटेगा। उसे लगातार चौथी बार पैरोल दिए जाने का चौतरफा विरोध होने लगा है। जबकि हरियाणा सरकार पूरे प्रकरण से अनभिज्ञ होने का हास्यास्पद नाटक कर रही है। राज्य की बीजेपी सरकार के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर और जेल मंत्री रंजीत सिंह चौटाला कह रहे हैं कि जेल और रोहतक मंडल प्रशासन ने नियमानुसार रामरहीम को पैरोल दी है और इसमें राज्य सरकार का कोई दखल नहीं है!
गौरतलब है कि गुरमीत राम रहीम सिंह पर दो हत्याओं और दो बलात्कार के आरोप अदालत में साबित हो चुके हैं और इन्हीं संगीन अपराधों में उसे अलग-अलग उम्र कैद की सजा देते हुए हरियाणा के जिला रोहतक के सुनारिया जेल में बंद रखा गया है। जब उसे बलात्कार के मामले में सजा सुनाई गई थी, तब पंचकूला और सिरसा में जमकर आगजनी और फसाद हुआ था, जिसमें कई लोग मारे गए थे। फिर भी हरियाणा की बीजेपी सरकार बार-बार इस हत्यारे और बलात्कारी डेरेदार पर अतिरिक्त मेहरबानी दिखाती रही है और साफ तौर पर उसके प्रति 'सॉफ्ट कॉर्नर' रखती है।
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गुरमीत राम रहीम सिंह पर सिरसा के पत्रकार छत्रपति की हत्या की साजिश रचने का संगीन आरोप साबित हुआ था। उस मामले में पत्रकार छत्रपति के पुत्र अंशुल छत्रपति चश्मदीद गवाह हैं। उनकी आंखों के आगे उनके पिता पर हत्यारों ने गोलियां चलाईं थीं। अंशुल गुरमीत को उम्र कैद की सजा मिलने तक अडिग रहे जबकि उन्हें गवाही से मुकरने के लिए हर संभव हथकंडा इस्तेमाल किया गया।
डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत राम रहीम सिंह को रोहतक मंडल के आयुक्त द्वारा दी गई पैरोल के खिलाफ पहली प्रतिक्रिया अंशुल छत्रपति की ही आई। अंशुल कहते हैं, "गुरमीत राम रहीम सिंह दो हत्याओं और दो बलात्कारों का गुनाहगार है। इसके तहत उसे उम्र कैद हुई। साधुओं को नपुंसक बनाने के आरोप भी उस पर हैं। इस सबसे साबित होता है कि वह आदतन अपराधी प्रवृत्ति का व्यक्ति है और ऐसे व्यक्ति को एक दिन की भी पैरोल नहीं दी जानी चाहिए। लेकिन उसे बार-बार पैरोल और फरलो देकर रिहा कर दिया जाता है। मेरा साफ कहना है कि बीजेपी सरकार उससे मिली हुई है। 40-40 दिन की रिहाई देना गलत है। यह पीड़ितों के साथ बेइंसाफी है।"
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अंशुल छत्रपति इससे इत्तफाक़ नहीं रखते कि इसमें मुख्यमंत्री या जेल मंत्री की कोई भूमिका नहीं है। वह कहते हैं, "आप खुद सोचिए, क्या संभव है कि प्रशासन अपने तौर पर इतना बड़ा कदम उठा ले? सब जानते हैं कि गुरमीत राम रहीम सिंह को भविष्य में फायदे लेने के लिए पैरोल और फरलो के बार-बार छुट्टी दे दी जाती है।" घटनाक्रम की दूसरी गवाह, अंशुल छत्रपति की बहन भी ठीक ऐसा ही मानती हैं।
पड़ोसी राज्य पंजाब में भी गुरमीत राम रहीम सिंह को प्रशासन द्वारा पैरोल पर 40 दिन की रिहाई देने का तीखा विरोध हो रहा है। शिरोमणि अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल ने डेरा मुखिया को पैरोल दिए जाने पर सख्त एतराज जताया है और कहा है कि बीजेपी की सरकारें कातिलों और बलात्कारियों को बार-बार पैरोल दे रही है जबकि बेगुनाह बंदी सिखों को रिहा नहीं किया जा रहा। बगैर किसी ठोस आरोप और सुबूत के आधार पर उन्हें जेलों में बंद किया हुआ है। डेरेदार गुरमीत राम रहीम सिंह को खुश करने के लिए बीजेपी किसी भी हद तक जाने को तैयार है क्योंकि उसके पास कथित तौर पर थोड़ा-बहुत वोट बैंक है।
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शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) के अध्यक्ष एडवोकेट हरजिंदर सिंह धामी के अनुसार, "हत्या और बलात्कार के संगीन आरोपों में सजा काट रहे लोगों को पैरोल देना और समाज में इस तरह बिचरने देना सरासर गलत है। अगर ऐसे लोगों को छुट्टी दी जा रही है तो बंदी सिखों को रिहा करने में क्या दिक्कत है। यह बीजेपी की दोहरी नीति है।"
एसजीपीसी की पूर्व प्रधान बीबी जागीर कौर का कहना है कि सच्चा सौदा मुखिया को इस तरह रिहा करना सिखों के जख्मों पर नमक छिड़कना है और उन पीड़ितों के दुखों में इजाफा करना भी है जिनकी प्रताड़ना के चलते गुरमीत राम रहीम सिंह उम्र भर के लिए कैदी है। बीबी जागीर कौर ने कहा कि डेरा मुखी को 40 दिनों की पैरोल देना उन लड़कियों को मानसिक पीड़ा पहुंचाना है जिन्होंने अपनी जान खतरे में डालकर उसे जेल की सलाखों के पीछे पहुंचाया। समूह समाज को एकजुट होकर डेरा मुखी को दी गई पैरोल का सख्त विरोध करना चाहिए।
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प्रमुख निहंग जत्थेबंदी बाबा बुड्ढा दल के मुखिया बाबा बलबीर सिंह ने कहा कि बीजेपी सरकारें अपने अधिकारों का नाजायज इस्तेमाल करते हुए गुरमीत राम रहीम सिंह को बार-बार जेल से बाहर जाने देती है और बरसों से जेलों में बंद बेकुसूर सिखों की बाबत खामोश हैं। सिखों की तरह कई मुसलमानों को भी बेगुनाही के बावजूद जेलों में डाल रखा है। उनकी भी बीजेपी सरकारों को कोई परवाह नहीं।
संगरूर से सांसद और अकाली दल अमृतसर के प्रधान सिमरनजीत सिंह मान ने भी गुरमीत राम रहीम सिंह की पैरोल का तीखा विरोध किया है और कहा है कि व्यवहारिक तौर पर नियमों की अनदेखी करके डेरा मुखी को बाहर निकाल दिया जाता है, जबकि जो करतूतें और अपराध उसने किए हैं वे इतने घिनौने हैं कि उसे खुली हवा में सांस लेने तक का हक नहीं। सांसद मान के अनुसार वह यह मामला लोकसभा में उठाएंगे और उनकी पार्टी सड़कों पर उतर कर गुरमीत राम रहीम सिंह को दी जा रही पैरोल का विरोध करेगी।
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कई अन्य संगठनों ने भी 14 महीनों में चौथी बार गुरमीत राम रहीम सिंह को पैरोल पर रिहा किए जाने की निंदा की है। पंजाब लोक मंच के प्रधान और अंतरराष्ट्रीय स्तर की गदर लहर की याद में बने देशभक्त यादगार हाल के ट्रस्टी कॉमरेड अमोलक सिंह के अनुसार वोट और नोट बटोरने के लिए पैरोल या फरलो के बहाने गुरमीत राम रहीम सिंह को रिहा किया जाता है, इससे यह भी साबित होता है कि बीजेपी लगातार फासीवाद की ओर बढ़ रही है और जन भावनाओं की उसे रत्ती भर भी परवाह नहीं है।
उधर, पंजाब के जिला फरीदकोट की अदालत में बेअदबी कांड में जुड़े तीन फौजदारी मामलों में भी डेरेदार गुरमीत राम रहीम सिंह मुख्य आरोपी है। गुरमीत राम रहीम सिंह सहित अन्य पांच सह-आरोपियों ने पंजाब में चल रहे मुकदमों की बाबत सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल करते हुए कहा है कि सूबे में डेरा मुखी की जान को खतरा है और पंजाब की अदालतों में डेरा प्रेमी आजाद तरीके से अपना केस नहीं लड़ सकते। सुप्रीम कोर्ट में दाखिल अर्जी में कहा गया है कि बेअदबी कांड में नामजद मुलजिम महेंद्रपाल बिट्टू का न्यायिक हिरासत के दौरान जेल में कत्ल हो चुका है और दो महीने पहले डेरा प्रेमी प्रदीप सिंह को सुरक्षाकर्मी मिले होने के बावजूद कोटकपूरा में मार दिया गया। लिहाजा डेरा मुखी सहित अन्य तमाम आरोपियों (डेरा अनुयायियों) की जान को खतरा है। सुप्रीम कोर्ट में इस पटीशन पर 30 जनवरी को सुनवाई संभव है।
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इस बीच 40 दिन की पेरोल पर छूटा गुरमीत राम रहीम सिंह उत्तर प्रदेश के बागपत स्थित अपने बरनावा आश्रम पहुंच गया है और पहले की तरह वर्चुअल मीडिया के जरिए अपने अनुयायियों से मुखातिब हो रहा है। पहला संदेश देते हुए पहला वाक्य उसने यह बोला कि, "हम फिर बाहर आ गए हैं!" गोया उसकी मर्जी है कि जब चाहे बाहर आ जाए और जब चाहे वापिस चला जाए। बरनावा आश्रम उसकी आलीशान आरामगाह है। शनिवार की दोपहर जब वह रोहतक की सुनारिया जेल से डेरे की गाड़ियों के काफिले के साथ बाहर निकला तो आश्रम में पहुंचते ही उसने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग शुरू कर दी।
पैरोल पर मिली रिहाई के बाद बाहर आने के वक्त उसके साथ हनीप्रीत भी थी जो अब सिरसा स्थित सच्चा सौदा मुख्य डेरे के साथ-साथ तमाम अन्य डेरों का प्रबंधकीय कामकाज देखती है। डेरे के अनुयाई उसे 'बहन जी, दीदी या माताजी' का संबोधन देते हैं। यह संबोधन गुरमीत राम रहीम सिंह के आदेशानुसार है। पिछली बार की पैरोल पर रिहाई के दौरान उसने अपने अनुयायियों को ऐसा करने की हिदायत दी थी। सिरसा में उसकी 40 दिन की रिहाई का जश्न मिठाईयां बांटकर मनाया गया और डेरेदार के अनुयायी मानकर चल रहे हैं कि उनके 'पिताजी' (गुरमीत राम रहीम सिंह) सिरसा आकर भी उन्हें दर्शन देंगे। हालांकि ऐसी संभावना कम है।
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