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खतरे की घंटीः चारों बड़ी सरकारी तेल कंपनियों के लाभ में लगातार होती जा रही है कमी

ओएनजीसी कुछ समय पहले तक लगातारमुनाफा कमा रही कर्ज मुक्त कंपनी थी। नगदी के मामले में भी कंपनी का उदाहरण दियाजाता था। लेकिन अब ऐसा नहीं है। पिछले कुछ सालों से ओएनजीसी पर दूसरी कंपनियों मेंनिवेश के लिए दबाव डाला जा रहा है। इसके लिए ओएनजीसी को कर्ज भी लेना पड़ा।

फोटो : सोशल मीडिया
फोटो : सोशल मीडिया 

मोदी सरकार में देश की सबसे फायदे वाली तेल कंपनियों पर भी खतरा बढ़ता जा रहा है। ऑयल एंड नेचुरल गैस कॉर्पोरेशन (ओएनजीसी) को छोड़कर चारों बड़ी सरकारी तेल कंपनियों के लाभ में कमी आई है। लेकिन पहली बार लोन लेने और दूसरी कंपनियों में निवेश के साथ-साथ कैश रिजर्व काफी कम होने के कारण ओएनजीसी ज्यादा विवादों में रही है।

वहीं, देश की प्रमुख निजी कंपनी रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड के तेल बिजनेस का न केवल मुनाफा बढ़ा है बल्कि वह देश की सबसे बड़ी तेल कंपनी बन गई है। पिछले एक पखवाड़े के दौरान ब्रिटेन की रिटेल कंपनी बीपी और दुबई की कच्चा तेल सप्लाई करने वाली कंपनी आरामको के साथ हुए समझौते के बाद रिलायंस का तेल सेक्टर पर एकछत्र राज हो जाएगा।

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शुरुआत करते हैं देश की सबसे बड़ी सरकारी तेल कंपनी ओएनजीसी से। ओएनजीसी कुछ समय पहले तक लगातार मुनाफा कमा रही कर्ज मुक्त कंपनी थी। नगदी के मामले में भी कंपनी का उदाहरण दिया जाता था। लेकिन अब ऐसा नहीं है। पिछले कुछ सालों से ओएनजीसी पर दूसरी कंपनियों में निवेश के लिए दबाव डाला जा रहा है। इसके लिए ओएनजीसी को कर्ज भी लेना पड़ा।

गुजरात स्टेट पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन के अधिग्रहण को लेकर ओएनजीसी के कदम को लेकर काफी आलोचना का सामना करना पड़ा। विशेषज्ञों की मानें, तो कंपनी की हालत बिगड़ने में इस कदम का बड़ा हाथ रहा। अगस्त, 2017 में कर्ज में डूबी गुजरात की इस कंपनी का 80 फीसदी ओएनजीसी ने खरीद लिया। इसके लिए ओएनजीसी ने 7,560 करोड़ रुपये का भुगतान किया। बीते बजट सत्र के दौरान 3 जुलाई, 2019 को राज्यसभा में इस डील पर सवाल उठाते हुए सदस्य मनीष गुप्ता ने पूछा कि क्या सरकार के अपने विनिवेश का लक्ष्य हासिल करने के लिए गुजरात स्टेट पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन और हिंदुस्तान पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड में हिस्सेदारी खरीदने के लिए ओएनजीसी को बैंकों से लोन लेना पड़ा। इस पर पेट्रोलियम मंत्री ने माना कि गुजरात स्टेट पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन का 7560 करोड़ रुपये के भुगतान के लिए टर्म डिपोजिट के अगेंस्ट लोन लेना पड़ा।

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इसी तरह, ओएनजीसी ने जनवरी, 2018 में हिन्दुस्तान पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड (एचपीसीएल) में 51.11 प्रतिशत हिस्सेदारी खरीदने के लिए 36,915 करोड़ रुपये का भुगतान किया। इनमें 12,034 करोड़ रुपये कंपनी ने आंतरिक कोष और शेष 24,881 करोड़ रुपये वाणिज्यिक बैंकों से कर्ज लिया था।

मनीष गुप्ता का दूसरा सवाल था कि क्या इस उधार की वजह से ओएनजीसी की आर्थिक स्थिति खराब हुई और कंपनी के सामने पहली बार नगदी का संकट खड़ा हो गया है? इसके जवाब में सरकार ने बताया कि ओएनजीसी के पास 31 मार्च, 2019 तक नगदी और बैंक बैलेंस के रूप में 504 करोड़ रुपये था और कंपनी की साख देखते हुए उसे अपनी वर्किंग कैपिटल (कार्यशील पूंजी) के लिए लोन मिल सकता है। जब इस जवाब की पड़ताल के लिए नवजीवन ने ओएनजीसी की वार्षिक रिपोर्ट 2018- 19 का अध्ययन किया तो पता चला कि 31 मार्च, 2019 तक कंपनी के पास नगदी के रूप में केवल 17.97 करोड़ रुपये थे, जबकि बैंक बैलेंस 486 करोड़ रुपये था।

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रिपोर्ट के मुताबिक, ओएनजीसी के पास 2017-18 में 29.60 करोड़ रुपये नगद और 983 करोड़ बैंक में थे। और अगर पांच साल पहले, यानी 31 मार्च, 2014 की बात की जाए तो उस समय वर्किंग कैपिटल के तौर पर ओएनजीसी के पास 10,798 करोड़ रुपये नगदी और इतना ही बैंक बैलेंस था।

सरकार जमकर प्रचारित कर रही है कि ओएनजीसी का फायदा बढ़ गया है। ओएनजीसी को 2018-19 में करों का भुगतान करने के बाद 26,715 करोड़ रुपये का कुल मुनाफा हुआ जबकि 2017-18 में कंपनी को 19,945 करोड़ रुपये का मुनाफा हुआ था। पर ओएनजीसी की पुरानी वार्षिक रिपोर्ट खंगालें तो देख सकते हैं कि यह किस तरह कम है। कंपनी को 2013-14 में 22,094 करोड़ रुपए का मुनाफा हुआ था। नरेंद्र मोदी के सत्ता संभालने के बाद लगातार दो साल यह कम हुआ। 2015-16 में कंपनी का मुनाफा घटकर 16,139 करोड़ तक पहुंच गया। अब जब सरकार यह शेखी बघार रही है कि कंपनी को 2018- 19 में भारी मुनाफा हुआ है तो उसी कंपनी की वार्षिक रिपोर्ट बताती है कि 2011-12 में कंपनी को 25,122 करोड़ रुपये का मुनाफा हुआ था।

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इन सबके अलावा ओएनजीसी के संसाधनों और कारोबार का निजीकरण भी शुरू किया गया है। राज्यसभा में 13 फरवरी, 2019 को इस बाबत सवाल किया गया कि क्या हाइड्रो कार्बन महानिदेशालय (डीजीएच) ने ओएनजीसी और ऑयल इंडिया लिमिटेड के ऑयल प्रोड्यूसिंग फील्ड (ऐसे स्थान, जहां से तेल निकाला जाता है) की पहचान की है जिन्हें निजी सेक्टर को सौंपने का निर्णय लिया गया है? इस पर पेट्रोलियम मंत्री अशोक प्रधान ने जवाब दिया कि ऐसा तेल का उत्पादन बढ़ाने के लिए किया जा रहा है। वहीं, इस बारे में 17 जुलाई, 2019 को भी एक सवाल पूछा गया कि क्या केंद्र सरकार ने निजी कंपनियों को ओएनजीसी और ऑयल इंडिया लिमिटेड के तेल क्षेत्रों को बेचने का निर्णय लिया है? तब सरकार ने बताया कि 66 छोटे एवं सीमांत फील्ड की रेवेन्यू शेयरिंग बेसिस पर नीलामी की गई है।

सरकार का तर्क है कि ये ऐसे फील्ड हैं जो ओएनजीसी और ऑयल इंडिया लिमिटेड के तो हैं लेकिन कई साल से यहां कोई उत्पादन नहीं हो रहा है। सरकार ने दावा किया कि उसका मकसद निजीकरण नहीं बल्कि प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देना है, इसलिए सरकारी कंपनियों को भी टेंडर करने के लिए कहा गया है। लेकिन सरकार ने अपने जवाब के साथ टेंडर हासिल करने वाली कंपनियों की जो सूची संलग्न की है, उससे पता चलता है कि 66 में से 46 ऑयल फील्ड निजी कंपनियों को सौंप दी गई हैं। इनमें कई कंपनियां नई-नई हैं और उनकी शुरुआत 2015 के बाद हुई है।

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अन्य कंपनियों का हाल और भी बुरा

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भारत पेट्रोलियम कॉरपोरेशन लिमिटेड (बीपीसीएल) का लाभ पिछले दो सालों से कम हो रहा है। कंपनी की वार्षिक रिपोर्ट बताती है कि 2018-19 में बीपीसीएल को कर का भुगतान करने के बाद 7132 करोड़ रुपये का लाभ हुआ। यह पिछले साल के मुकाबले 844 करोड़ रुपये कम है। बीपीसीएल को 2017-18 में 7976 करोड़ रुपये का मुनाफा हुआ जबकि उससे पहले 2016-17 में 8039 करोड़ रुपये का मुनाफा हुआ था। इससे पहले बीपीसीएल का मुनाफा 2011-12 से लगातार बढ़ रहा था। 2011- 12 में कंपनी को 1,311 करोड़ रुपये का फायदा हुआ था।

इसी तरह हिंदुस्तान पेट्रोलियम (एचपीसीएल) के मुनाफे में भी कमी आई। इसे 2016-17 में 6,209 करोड़ रुपये का मुनाफा हुआ था जो 2017-18 में बढ़कर 6,357 करोड़ रुपये हो गया। लेकिन 2018-19 में यह घटकर 6029 करोड़ रुपये रह गया। वैसे, एचपीसीएल का टर्न ओवर बढ़ा है।

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