अयोध्या मामले में ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को चुनौती देने का फैसला किया है। बैठक के बाद बोर्ड के सदस्य सैयद कासिम रसूल इलियास ने इस बात की जानकारी देते हुए बताया कि बोर्ड ने फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दायर करने का फैसला किया है।
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प्रेस कॉन्फ्रेंस में मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने कहा कि कई मुद्दों पर फैसले समझ के परे है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में माना कि विवादित भूमि पर नमाज पढ़ी जाती थी और गुंबद के नीचे जन्मस्थान होने के कोई प्रमाण नहीं है। उन्होंने कहा कि बोर्ड ने कहा कि हमने विवादित भूमि के लिए लड़ाई लड़ी थी, वही जमीन चाहिए। किसी और जमीन के लिए हमने लड़ाई नहीं लड़ी थी।
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उन्होंने आगे कहा कि कोर्ट ने फैसले में कहा कि हिंदू सैकड़ों साल से पूजा करते रहे हैं, इसलिए पूरी जमीन रामलला को दी जाती है, जबकि मुस्लिम भी तो वहां इबादत करते रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने माना कि 6 दिसंबर, 1992 में मस्जिद को गिराया जाना गलत था। इसके बाद भी मंदिर के लिए फैसला क्यों दिया गया।
जमीयतुल उलमा ए हिन्द अध्यक्ष अरशद मदनी कहते है कि मस्जिद शिफ्ट नही हो सकती। दूसरी जगह लेने का सवाल नहीं है। फैसले में कई अंतर्विरोध हैं।
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बोर्ड के सचिव जफरयाब जिलानी ने कहा कि शरीयत के हिसाब से जहां एक बार मस्जिद बन जाती है, वहां मस्जिद ही रहती है। मस्जिद के बदले हम रुपया पैसा वा दूसरी जमीन नहीं ले सकते हैं। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड 5 एकड़ जमीन की पेशकश को लेने से इनकार करता है। अयोध्या फैसले के विरोध में ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड 30 दिन के अंदर रिव्यू पिटिशन दाखिल करेगा।
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बता दें कि 9 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या की विवादित जमीन का मालिकाना हक रामलला विराजमान को दिया था। इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने मस्जिद बनाने के लिए अयोध्या में दूसरी जगह पर मुस्लिम पक्ष को 5 एकड़ जमीन देने का आदेश दिया था। फैसले के बाद अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को तीन महीने के अंदर एक न्यास बनाने को कहा था।
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