बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार फिलहाल शराबबंदी पर जन जागरूकता पैदा करने के लिए अपने 'समाज सुधार अभियान' यात्रा पर राज्य का दौरा कर रहे हैं। इस दौरान सासाराम में आयोजित एक सभा में मुख्यमंत्री स्पष्ट शब्द में कह चुके हैं, "हमलोग वैसे किसी आदमी को बिहार आने की इजाजत नहीं देंगे, जो शराब पीने की इच्छा रखता है। अगर शराब पीना है तो बिहार मत आइए।"
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राज्य में शराबबंदी हुए पांच साल से ज्यादा हो गए हैं, लेकिन अभी भी इस कानून को लेकर न केवल चर्चा हो रही है बल्कि सियासत भी हो रही है। हाल ही में भारत के मुख्य न्यायाधीश एन वी रमणा के दिए गए एक बयान के बाद शराबबंदी कानून को लेकर फिर से चर्चा गर्म हो गई। बीते रविवार को भारत के मुख्य न्यायाधीश एन वी रमणा ने अपने संबोधन में बिहार शराबबंदी कानून का हवाला देते हुए कानून का मसौदा तैयार करने में दूरदर्शिता की कमी का उदाहरण देते हुए कहा कि ऐसे कारणों से अदालतों में मामले बढ़े हैं।
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इधर, बिहार पुलिस और अदालत के आंकड़ों पर गौर करें तो यह साफ है कि बिहार मद्य निषेध और उत्पाद अधिनियम, 2016 के लागू होने के बाद से अदालतों में मामले बढ़े हैं और जेलों में भी कैदियों की संख्या बढ़ी है। राज्य पुलिस मुख्यालय के आंकड़ों पर गौर करें तो बिहार में शराबबंदी कानून लागू होने के बाद अक्टूबर महीने तक इस कानून के तहत 3 लाख 48 हजार से ज्यादा मामले दर्ज किए गए हैं और करीब 4 लाख से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया गया है।
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इन मामलों से संबंधित करीब 20,000 जमानत के आवेदन राज्य के विभिन्न अदालतों में लंबित बताए जा रहे हैं। आंकड़ों के मुताबिक, पटना उच्च न्यायालय में जनवरी 2020 और नवंबर 2021 के बीच शराबबंदी के मामलों में 19,842 जमानत याचिकाओं को निपटाया गया है। इसी दौरान विभिन्न अदालतों में 70,673 जमानत की याचिकाएं निपटाई गईं।
इधर, जेल में कैदियों की बात की जाए तो बताया जाता है कि राज्य के 59 जेलों में करीब 47,000 कैदियों को रखने की क्षमता है, जबकि सूत्रों का दावा है कि फिलहल इन जेलों में करीब 70,000 कैदी हैं, जिनमें से लगभग 25,000 कैदी शराबबंदी कानून के तहत जेलों में बंद हैं।
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इस साल नवंबर महीने में कई जिलों में जहरीली शराब पीने की घटनाओं के बाद से बिहार में शराबबंदी कानून के उल्लंघन के खिलाफ अभियान तेज कर दिया गया है। इधर, सूत्रों का कहना है कि शराबबंदी के लंबित मामलों के निपटारे के लिए सरकार ने बड़ी पहल की है। इसके लिए 70 से अधिक विशेष अदालत बनाई गई हैं। इनमें से सबसे अधिक पटना में चार विशेष अदालतें बनाई गई हैं।
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