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कर्नाटक उपचुनावों में कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन की जीत के बाद पूरे देश में विपक्षी एकता बनाने का अभियान हुआ तेज

विपक्षी एकता की कोशिशों को आगे बढ़ाने के लिए नायडू 11 दिसंबर के बाद की तारीख का इंतजार नहीं करना चाहते। पांच प्रदेशों के चुनाव नतीजों की प्रतीक्षा में वक्त खराब करने के बजाय विपक्षी दल आपस में लगातार मिलें और अपने गिले-शिकवे दूर करने का क्रम जारी रखें।

फोटो: सोशल मीडिया
फोटो: सोशल मीडिया पूरे देश में विपक्षी एकता बनाने का अभियान हुआ तेज

दक्षिण भारत में बीजेपी के मजबूत किले के तौर पर पहचान रखने वाले कर्नाटक के उपचुनावों में कांग्रेस-जेडीएस को 4-1 से बढ़त मिली। इस जीत को मध्यप्रदेश और राजस्थान के आगामी विधानसभा चुनावों में भुनाने की रणनीति पर टीडीपी नेता चंद्रबाबू नायडू और कांग्रेस दोनों ने काम करना आरंभ कर दिया है। आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री नायडू चाहते हैं कि राज्य स्तर पर बीजेपी को शिकस्त देने के लिए कर्नाटक की तर्ज पर बीजेपी विरोधी पार्टियां मजबूती से एकजुट हों। कर्नाटक में बीजेपी की करारी हार से उत्साहित नायडू प्रमुख विपक्षी नेताओं को भरोसे में लेकर आगामी कुछ दिनों में बीजेपी विरोधी विपक्षी नेताओं का शिखर सम्मेलन बुलाने की योजना पर विचार कर रहे हैं।

इस मुहिम को परवान चढ़ाने के लिए नायडू अगले सप्ताह दिल्ली आकर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी से मुलाकात करेंगे और पिछले सप्ताह हुई बैठकों के सिलसिले को आगे बढ़ाएंगे। नायडू के करीबी सूत्रों के अनुसार, अगले सप्ताह दिल्ली में उनकी यात्रा का तात्कालिक मकसद है मध्यप्रदेश, राजस्थान में बीजेपी को हराने की रणनीति को कर्नाटक की तर्ज पर आगे बढ़ाना। मध्यप्रदेश में 28 नवंबर और राजस्थान में अगले माह 7 दिसंबर को चुनाव होने हैं।

टीडीपी सूत्रों का कहना है कि अगले सप्ताह से लेकर 27 नवंबर तक मध्य प्रदेश और राजस्थान में बीजेपी को हराने के लिए दिल्ली और इन दोनों ही राज्यों में कांग्रेस और सहयोगी दलों की सभाओं में नायडू खुद मौजूद रह सकते हैं। विपक्षी एकता की कोशिशों को आगे बढ़ाने के लिए नायडू 11 दिसंबर के बाद की तारीख का इंतजार नहीं करना चाहते। उनके निकट सूत्रों का मानना है कि पांच प्रदेशों के चुनाव नतीजों की प्रतीक्षा में वक्त खराब करने के बजाय विपक्षी दल आपस में लगातार मिलें और अपने गिले-शिकवे दूर करने का क्रम जारी रखें। चूंकि छत्तीसगढ़ में 12 और 18 नवंबर को जल्द चुनाव हो जाएंगे, इसलिए वह फिलहाल नायडू के तात्कालिक एजेंडे से बाहर है।

ज्ञात रहे कि राजस्थान और मध्य प्रदेश दोनों ही प्रदेशों में कांग्रेस ने समाजवादी पार्टी, बीएसपी, एनसीपी और वाम दलों के लिए कोई सीट नहीं छोड़ीं। गैर-बीजेपी छोटी पार्टियां इन दोनों ही अहम प्रदेशों में कांग्रेस से नाराज हैं। सीपीआई के राष्ट्रीय सचिव अतुल कुमार अनजान कहते हैं कि पिछले साल गुजरात विधानसभा चुनावों में भी अगर बड़ा गठबंधन बीजेपी के खिलाफ बनता तो विपक्षी पार्टियां मिलकर बीजेपी को काफी पीछे छोड़ देती और इसके जरिये बीजेपी और मोदी के गुजरात मॉडल को ध्वस्त किया जा सकता था।

नायडू पहले ही गैर-बीजेपी मुख्य क्षेत्रीय नेताओं - बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव, बीएसपी प्रमुख मायावती, एनसीपी प्रमुख शरद पवार, आरजेडी के तेजस्वी यादव और नेशनल कॉन्फ़्रेंस नेता फारुख अब्दुल्ला से 2019 में विपक्षी दलों की व्यापक एकता पर मंथन कर चुके हैं। उनकी कोशिश है कि पिछले दिनों जिन बिंदुओं का आरंभिक खाका तैयार हुआ है, उस पर अब बातें आगे बढ़ाई जाएं।

आंध्र और तेलंगाना में तेलुगु देशम पार्टी प्रमुख चंद्रबाबू नायडू कांग्रेस से गठबंधन पर पहले ही सहमत हो गए हैं। पिछले दिनों दिल्ली में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी समेत प्रमुख क्षेत्रीय विपक्षी नेताओं से मुलाकात के बाद नायडू 2019 के लिए व्यापक रणनीति बनाने में जुट गए हैं। गुरुवार को बेंगलुरू में जेडीएस अध्यक्ष एचडी देवेगौड़ा से मुलाकात के बाद उनका दिल्ली दौरा काफी अहम माना जा रहा है।

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नायडू के करीबी सूत्रों का कहना है कि कर्नाटक की मांडया लोकसभा सीट पर जेडीएस उम्मीदवार एलआर शिवराम गौड़ा की 3,24,943 मतों से जीत इस बात का सबसे बड़ा सबूत है कि कई दशकों से कांग्रेस और जनता परिवार के बीच सीधा मुकाबला होता था। बीजेपी और मोदी विरोधी मोर्चा बनाकर वर्षों से एक दूसरे के विरोधी रहे कांग्रेस और जेडीएस साथ आ गए। बीजेपी को हराने के लिए यूपी में दो दशक से एक दूसरे के कट्टर विरोधी रहे समाजवादी पार्टी और बीएसपी को एकजुट करने और पारस्परिक भरोसा बढ़ाने के लिए मांडया सीट पर विपक्ष की भारी जीत का उदाहरण दिया जा रहा है।

फिलहाल बंगाल में चंद्रबाबू नायडू दो नावों की सवारी कर रहे हैं। ममता बनर्जी नए साल में19 जनवरी 2019 को कोलकाता में बीजेपी विरोधी बड़ी रैली की तैयारियों में जुटी हैं। चंद्रबाबू समेत देश के बीजेपी विरोधी सभी क्षेत्रीय दलों को रैली के लिए न्योता भेजा जा चुका है। सिर्फ सीपीएम को नहीं बुलाया गया है। छोटे वाम दलों और केरल में सीपीएम के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन को न्योता भेजा गया है, लेकिन सबने आने से मना कर दिया है।

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