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योगी आदित्यनाथ ने गोरक्षपीठ के गन्ने तो बिकवा दिए, लेकिन 30 हजार गन्ना किसनों का क्या?

गोरखपुर और आसपास के जिलों में कई हजार गन्ने की खेती करते हैं। किसानों के फसलों को खरीदा नहीं जा रहा है। गन्ने खेतों में ही सूख रहे हैं। वहीं सीएम आदित्यनाथ के गोरक्षपीठ के लगभग साने गन्ने बेचे जा चुके हैं। 

फोटो: सोशल मीडिया
फोटो: सोशल मीडिया 

गोरखपुर गोरक्षपीठ के महंत योगी आदित्यनाथ के यूपी के मुख्यमंत्री बनने से गोरखपुर की जनता को भले ही कोई लाभ न मिला हो, लेकिन गोरक्षपीठ को इसका फायदा जरूर मिल रहा है। ऐसा मानने की ठोस वजह भी है। दरअसल पास के जिले महराजगंज में गोरक्षपीठ की लगभग 150 एकड़ जमीन है। इस जमीन पर गन्ने की खेती की जाती है। इस बार करीब 20 हजार क्विंटल गन्ने की उपज हुई। गोरखपुर और इसके आसपास के जिलों के किसानों की तरह पीठ के कर्ताधर्ताओं को भी चिंता हुई कि इसकी बिक्री कैसे होगी। क्योंकि पास के गड़ौरा की जेसीवी शुगर मिल बंद है। जेसीवी शुगर मिल पर करीब 80 करोड़ रुपये का बकाया है।

लेकिन गोरक्षपीठ को गन्ना बेचने के लिए ज्यादा परेशान नहीं होना पड़ा। अब पीठ के महंत ही जब सूबे के मुखिया हों तो इनके गन्ने की बिक्री में कोई परेशानी कैसे हो सकती है। गोरक्षपीठ का लगभग सारा गन्ना पास में सिसवा के इंडियन पोटाश लिमिटेड को बेच दिया गया। वहीं गोरखपुर और इसके पास के जिले महराजगंज और कुशीनगर के लगभग 30 हजार किसानों के गन्ने खेतो में ही सूख रहे हैं। सीएम योगी आदित्यनाथ के पास इनके बारे में सोचने की फुर्सत कहा हैं।

हालांकि इस क्षेत्र के गन्ने की फसल को महराजगंज की सिसवा, कुशीनगर की कप्तानगंज, रामकोला और ढाडा चीनी मिलों को आवंटित कर दी गई है। लेकिन इनकी फसलों को खरीदा नहीं जा रहा। कोई न कोई बहाना बनाकर टाला जा रहा है। जिसकी वजह से गन्ना किसान काफी परेशान हैं। महाराजगंज जिले के ठूठीबारी क्षेत्र के गन्ना किसान मनोज जोशी कहते हैं, “ पहले तो गन्ना विभाग से पर्ची नहीं मिल रही। किसी तरह पर्ची मिल गई तो गन्ने को मिल तक पहुंचाना महंगा सौदा साबित हो रहा है। एक ट्राॅली गन्ने की ढुलाई के लिए 7 से 8 हजार वसूले जा रहे हैं। एक ट्राॅली में 70 से 80 क्विंटल गन्ना ही ढोया जा सकता है। मिल मालिक सरकार द्वारा तय समर्थन मूल्य 330 रुपये क्विंटल की दर से भुगतान कर दे तो भी 22 से 24 हजार ही मिलेंगे। ऊपर से ढुलाई का खर्चा 7 हजार रुपए तक पड़ जाता है। तो प्रति ट्राॅली 7 हजार रुपए तक कम ही हाथ में आएगा।

वहीं कई किसानों को तो अपनी आधी फसलों की पर्ची ही नहीं दी गई। कुशीनगर के छितौनी क्षेत्र के सालिकपुर रेता निवासी गन्ना किसान विजय कुशवाहा और कैलाश का कहना है कि गन्ना विभाग की मनमानी से 50 फीसदी गन्ने की खरीद की ही पर्ची मिली है। इनके गन्ने खेतों में ही सूख रहे हैं। मजबूरी में सरकार द्वारा तय समर्थन मूल्य से काफी कम दाम में ही गन्ना बेचना पड़ा रहा है।

किसानों का कहना है कि उन्हें मोदी और योगी सरकारों से सम्मान निधि के 6 हजार रुपये नहीं चाहिए। वह सिर्फ गन्ने की खरीद और उसका भुगतान ही सुनिश्चित करा दें। बहरहाल, कुशीनगर में करीब 1.25 लाख क्विटल गन्ने अब भी खेतों में सूख रहे हैं। पूर्वचांल चीनी मिल मजदूर यूनियन के अध्यक्ष नवल किशोर मिश्रा कहते हैं कि चीनी मिल प्रबंधन द्वारा एक ट्राॅली में 10 फीसदी से अधिक गन्ने को सूखा ने बताकर रिजेक्ट किया जा रहा है। इतनी मात्रा में गन्ने रिजेक्ट हो जाने से किसानों की लागत भी नहीं निकल रही है।

एक और गन्ना किसान पुनीत मिश्र का कहना है कि क्षेत्र के किसान नेपाल की चीनी मिलों को गन्ना बेच देते थे, लेकिन रिश्तों में तल्खी के बीच नेपाली नागरिक भारतीय गन्ने की खरीद का विरोध कर रहे हैं। वहीं पूर्व सांसद और समाजवादी पार्टी के नेता कुंवर अखिलेश सिंह कहते हैं कि मुख्यमंत्री को खुद के खेत के गन्ने की चिंता है, लेकिन छोटे किसानों की फिक्र नहीं। इन किसानों की जिदंगी की गाड़ी चलेगी या थमेगी, यह गन्ने की बिक्री पर निर्भर है। उनका आरोप है कि सरकार की गलत नीतियों की वजह से 65 फीसीद से ज्यादा गन्ने खेतों में ही सूख रहे हैं। कुशीनगर में पांच चीनी मिलें चल रही हैं।

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