देश के ज्यादातर शिक्षाविदों ने नई शिक्षा नीति के मसौदे पर पहले ही दिन से सवाल उठाने शुरू कर दिए हैं। हाल में मानव संसाधन विकास मंत्री से मुलाकात करके लौटे शिक्षाविदों की एक टीम ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, “नई शिक्षा नीति के मसौदे में उच्च शिक्षा का हाल सबसे ज्यादा बुरा होने वाला है।”
इसी टीम के एक अन्य सदस्य का कहना है कि शिक्षकों को अगर ठेका पर पढ़ाने की पद्धति लागू की गई तो इससे उच्च शिक्षा का स्तर जो पहले से ही चिंताजनक है वह और भी रसातल में चला जाएगा। शिक्षाविदों और उच्च शिक्षा विशेषज्ञों को इस बात से चिंता है कि तय अवधि के बाद शिक्षकों को उनके पदों या काम से हटाने की तलवार लटकायी गई तो कोई भी योग्य शिक्षक शिक्षा कार्य से विरक्ति की ओर बढ़ेगा। जाहिर है कि उसकी योग्यता को मापने के बारे में हर जगह एक समान और सही मापदंड होगा, इसकी कोई गारंटी नहीं है।
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मानव संसाधन विकास मंत्रालय के सूत्र नई शिक्षा नीति के इस प्रावधान के बचाव में कहते हैं कि अभी भी शिक्षकों को एक साल के लिए अस्थायी तौर पर ही नियुक्त किया जाता है और उनका यह कार्यकाल पूरा होने पर ही उन्हें स्थायी नौकरी दी जाती है। मंत्रालय के अधिकारी का कहना कि यह कदम योग्यता को प्रोत्साहित करने लिए उठाया गया है। इसलिए इस कदम से अच्छे परिणाम देने वाले शिक्षकों को अच्छा काम करने के लिए आकर्षित किया जा सकेगा।
नई शिक्षा नीति के मसौदे में विविध विषयों जिनमें खगोल विज्ञान, गणित, स्वास्थ्य विज्ञान, सिविल इंजिनियरिंग, आर्किटेक्चर, पोत जहाज निर्माण, योगा और कलाकृति जैसे विषयों को पाठ्यक्रमों में शामिल करने की अनुशंसा की गई है। मसौदे में उच्च शिक्षा के मौजूदा तंत्र से पूरी तरह हटाकर विभिन्न अनुशासी संस्थानों के साथ संबद्ध करने की पहल की गई है। इसमें परंपरागत प्राचीन साहित्य को बढ़ावा देने की वकालत की गई है, जोकि विज्ञान, संगीत व नृत्य के अलावा 64 कलाओं की बात करता है।
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मसौदे में शिक्षा नीति के मूल प्रारूप, जो पूर्व इसरो प्रमुख के कस्तूरी रंजन की अगुवाई में तैयार हुआ है, में कुछ समानताएं हैं। ज्ञात रहे कि मोदी सरकार ने इस मसौदे को विभिन्न पक्षकारों के सुझावों के लिए सार्वजनिक किया था। माना जा रहा है कि नए और अंतिम मसौदे में हिंदुत्व का पुट इसी प्रक्रिया के फीडबैक के आधार पर तैयार किया गया है।
संशोधित मसौदे को केंद्रीय शिक्षा सलाहकार बोर्ड की 21 सितंबर को हुई पूर्ण बैठक में हरी झंडी दे दी गई। केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने इस बैठक की अध्यक्षता की थी। इसमें सभी प्रदेशों के शिक्षा मंत्रियों ने शिरकत की थी। मसौदे में देश के सभी शिक्षा संस्थानों, विश्वविद्यालयों में प्रवेश के लिए सयुंक्त लिखित परीक्षा के अलावा सभी तरह के शैक्षिक प्रवेशों के लिए एक अलग स्वतंत्र संस्थान खोलने का प्रस्ताव है।
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मोदी सरकार ने 2014 में सत्ता में आने पर विश्वविद्यालय अनुदान आयोग को यह हिदायत दी थी कि वह दिल्ली विवि के अंडर ग्रैजुएट प्रोग्राम को आगे न बढ़ाए। विशेषज्ञों को हैरत है कि मोदी सरकार इस दिशा में पूरी तरह भ्रमित दिखती है, क्योंकि नये मसौदे में सरकार ने खुद ही इस तरह के चार साल के कोर्स की जोरदार सिफारिश की है।
ज्ञात रहे कि नई शिक्षा नीति के मसौदे में जो सबसे बड़ा बदलाव किया गया है, वह अंडर ग्रैजुएट कोर्स को 5 साल करने का है। इसमें हर साल कोर्स से बाहर निकलने का विकल्प खुला रखा जाएगा। इस शैक्षिक कार्यक्रम को बैचलर ऑफ लिबरल आर्ट का नाम दिया जाना प्रस्तावित है।
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