ऐसे समय में जब कोविड महामारी की दूसरी लहर उन लोगों के जीवन पर भारी पड़ रही है, यह एक 81 वर्षीय महिला की कहानी है, जिन्होंने पिछले पांच सालों से मायलोइड ल्यूकेमिया (ब्लड कैंसर) की एक पुरानी रोगी होने के बावजूद कोविड का सफलता से मुकाबला किया है।
दक्षिण कोलकाता की रहने वाली बानी दत्ता का शुक्रवार को 18 दिनों के बाद कोविड परीक्षण निगेटिव आया। बानी दत्ता के बेटे देबाशीष दत्ता, जो बुरोटोल्ला थाने के प्रभारी अधिकारी हैं उन्होंने कहा, "मेरी मां ने हमेशा जीवन की लड़ाई पॉजिटिविटी से लड़ी है। यह उनकी अदम्य भावना के कारण है कि वह इस घातक वायरस से लड़ने में सफल रही हैं। मैं भगवान का शुक्रगुजार हूं कि वह अब ठीक हो गई हैं।"
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बंगाल में कोविड से लड़ने वाले राज्य सरकार के एक महत्वपूर्ण अधिकारी देबाशीष को पिछले 21 दिनों से अपने परिवार और बाहरी दुनिया के बीच संतुलन बनाना पड़ा।
अपने अनुभव के बारे में बोलते हुए, देबाशीष ने कहा, "शुरूआत में मेरे बेटे और मेरी पत्नी का कोविड परीक्षण पॉजिटिव आया था । मैं समझ गया कि सबसे बुरा आने वाला है। जब मेरी मां का भी परीक्षण पॉजिटिव आया, तो मुझे पता था कि अगर मुझे स्थिति से लड़ना है, तो मुझे स्वस्थ रहना होगा। इसलिए मैं अपने पुलिस क्वार्टर में शिफ्ट हो गया और वहां से लगातार डॉक्टरों और परिवार के साथ तालमेल बनाए रखा।"
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उन्होंने कहा "मैं अपनी मां के बारे में बहुत चिंतित था क्योंकि उन्हें गंभीर बीमारी थी। मैं हर दिन घर जाता था और बाहर से उनसे बात करता था। मैंने रात में उन्हें वीडियो कॉल किया और उनका हौसला बढ़ाने के लिए उनसे बात की। मैंने डॉक्टरों के साथ समन्वय किया, मैंने अपने परिवार के सदस्यों से बार-बार ऑक्सीजन के स्तर की निगरानी करने और डॉक्टरों को इसकी रिपोर्ट करने के लिए कहा। मैंने उनके दरवाजे पर दवाएं और अन्य जरूरी चीजें रखता था फिर उनकी एक झलक देखने के लिए बाहर इंतजार करता। यह एक भयानक अनुभव था।"
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"मेरे पिता की मौत के बाद, मैं उनका इकलौता सहारा था। मैं कभी नहीं चाहता था कि वह असुरक्षित महसूस करें। मेरे डॉक्टरों ने मुझे सलाह दी कि मैं उनका हौसला बुलंद रखूं नहीं तो वह लड़ाई हार सकती हैं। मैंने उनसे अक्सर बात की, हल्के स्वर में बात की। उन्हें कभी यह महसूस नहीं होने दिया कि वह अपने जीवन की सबसे कठिन लड़ाइयों में से एक लड़ रही है।''
देबाशीष, उन्होंने अपना पहला वैक्सीन शॉट ले लिया है उन्होंने कहा,"मुझे पता था कि वह मानसिक रूप से मजबूत थी और मेरा कर्तव्य केवल उन्हें उन कठिन परिस्थितियों की याद दिलाना था जो उन्होंने अपने पूरे जीवन में झेली थीं। मैंने उन्हें परिस्थितियां से लड़ते देखा है और इस बार भी उन्होंने अपनी लड़ाई जीती।"
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देबाशीष को न केवल अपने परिवार के लिए, बल्कि देश के सबसे बड़े रेड-लाइट जिलों में से एक सोनागाछी में रहने वाली हजारों महिलाओं के लिए भी खुद को सुरक्षित रखना था। अधिकारी इन महिलाओं के कल्याण के लिए काम कर रहे हैं।
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उन्होंने कहा, "मैं इन महिलाओं को नहीं छोड़ सकता। वे एक दयनीय स्थिति में हैं और मैं अपने परिवार को भी नहीं छोड़ सकता। यह एक कठिन स्थिति थी। सुबह से मैं सोनागाछी की गलियों से होकर महिलाओं में कोविड के लक्षण होने का पता लगाता था, फिर उन्हें अस्पतालों या सुरक्षित घरों में भेजना, उनके भोजन की व्यवस्था करना और फिर अपने क्वार्टर में वापस आकर परिवार के साथ वर्चुअल समय बिताता।"
अधिकारी ने कहा, "मैंने अपने अनुभव से जो कुछ भी सीखा है, वह यह है कि परीक्षण न्यूनतम लक्षण होने पर ही किया जाना चाहिए। पहले तीन से पांच दिन बहुत महत्वपूर्ण होते हैं और अगर उचित दवाएं दी जाए, तो बचने की संभावना ज्यादा होती है।"
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