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2016 के नागरिकता संशोधन बिल के खिलाफ 46 संगठनों का असम बंद, बाजारों में पसरा सन्नाटा, सड़कों से वाहन नदारद

असम में नागरिकता संशोधन विधेयक-2016 के विरोध में 46 संगठनों ने मंगलवार को बंद बुलाया है। बंद को देखते हुए राज्‍य के कई इलाकों में बाजार बंद हैं और सड़कों पर वाहन नहीं चल रहे हैं।

फोटो: सोशल मीडिया 
फोटो: सोशल मीडिया  नागरिकता संशोधन बिल 2016 के खिलाफ 46 संगठनों का असम बंद

संसद के शीतकालीन सत्र में नागरिकता (संशोधन) बिल, 2016 को मंजूरी देने के केंद्र सरकार के प्रस्ताव के विरोध में करीब 46 संगठनों ने 12 घंटों के लिए असम बंद का ऐलान किया है। बंद को देखते हुए राज्‍य के कई इलाकों में बाजार बंद हैं और सड़कों पर वाहन नहीं चल रहे हैं। बंद के दौरान कई इलाकों में प्रदर्शनकारियों ने टायर जलाकर विरोध दर्ज करा रहे हैं। बंद का ऐलान कृष्ण मुक्ति संग्राम समिति और असम जतियातावादी युवा छात्र परिषद द्वारा की गई है।कांग्रेस पार्टी ने भी इस बंद को अपना समर्थन दिया है।

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गृह मंत्रालय के साथ संयुक्त संसदीय समिति की आज होने वाली बैठक के विरोध के लिए भी प्रदर्शन किया जा रहा है। असम बंद के समर्थकों को भय है कि कहीं इस बैठक में नागरिकता संशोधन विधेयक को कानून में तब्दील करने का फैसला न ले लिया जाए। असम बंद के आह्वान पर कृषक मुक्ति संग्राम समिति के नेता अखिल गोगोई ने कहा कि बीजेपी सरकार असम की जाति और माटी की रक्षा का वादा कर यहां सत्ता में आई थी लेकिन वह बहुत जल्द ही अपने वादे से मुकर गई और स्थानीय समुदायों के खिलाफ एक साजिश रच रही है।

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उन्होंने आगे कहा, “असम की बीजेपी सरकार संविधान संशोधन विधेयक के जरिए हिंदू बंगालियों को नागरिकता देना चाहती है। मेघालय में मंत्रिमंडल ने विधेयक का विरोध करने का निर्णय पहले ही ले लिया है, जहां बीजेपी भी सरकार का हिस्सा है।”

बंद को देखते हुए असम की बीजेपी सरकार ने राज्य में शांति बनाए रखने के लिए अपील की है। इसी बीच प्रदेश के वित्त मंत्री हेमंत बिस्वा सरमा ने गुवाहाटी हाई कोर्ट के ऑर्डर का हवाला देते हुए कहा कि बंद अवैध है। उन्होंने कहा कि कोर्ट ने बंद को अवैध घोषित किया है, इसलिए हमें कोर्ट के फैसला का पालन करना चाहिए। बंद कराने वाले लोगों को क्षति का भुगतान करना पड़ेगा।

क्या है नागरिकता संशोधन बिल?


नागरिकता (संशोधन) विधेयक, 2016 को लोकसभा में ‘नागरिकता अधिनियम’ 1955 में बदलाव के लिए लाया गया है। केंद्र सरकार ने इस विधेयक के जरिए अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान के हिंदुओं, सिखों, बौद्धों, जैन, पारसियों और ईसाइयों को बिना वैध दस्तावेज के भारतीय नागरिकता देने का प्रस्ताव रखा है। इसके लिए उनके रहने की समय अवधि को 11 साल से घटाकर 6 साल कर दिया गया है। यानी अब ये शरणार्थी 6 साल बाद ही भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन कर सकते हैं। इस बिल के तहत सरकार अवैध प्रवासियों की परिभाषा बदलने के प्रयास में है। यह बिल लोकसभा में 15 जुलाई 2016 को पेश हुआ था।

जबकि 1955 नागरिकता अधिनियम के अनुसार, बिना किसी प्रमाणित पासपोर्ट, वैध दस्तावेज के बिना या फिर वीजा परमिट से ज्यादा दिन तक भारत में रहने वाले लोगों को अवैध प्रवासी माना जाएगा।

पूर्वोत्तर के राज्यों में इस बिल के विरोध में आंदोलन कर रही पार्टियों का कहना हैं कि इससे एक गलत परंपरा शुरू होगी।

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