हालात

कोरोना काल की 3 कहानियां: पटना में घर पर पोस्टर, लखनऊ में ह्रदय रोगी का 24 घंटे इंतजार और चंडीगढ़ की निगेटिविटी

कोरोना काल में आम लोगों पर क्या गुजर रही है इसका अंदाज़ा उनकी आपबीती सुनने के बाद ही लगता है। आपके सामने तीन कहानियां हैं पटना,लखनऊ और चंडीगढ़ से। इनके अनुभवों से साफ है कि सरकार वह केंद्र की हो या राज्य की, सिर्फ ताली-थाली पिटवाने में ही व्यस्त है।

फोटो : सोशल मीडिया
फोटो : सोशल मीडिया 
ताली-थाली पिटवाने वाली सरकार कोरोना से निपटने में कितनी बुरी तरह विफल रही है, इसका अंदाजा करना हो तो लोगों की आपबीती पर गौर करना चाहिए। क्वारंटाइन सेंटरों का जो हाल है और कोविड संक्रमित लोगों को अस्पताल में भर्ती होने के लिए जिस तरह 24-24 घंटे का इंतजार करना पड़ रहा है, उससे तो यही लगता है कि मोदी सरकार ने लॉकडाउन को ही संक्रमण का इलाज मान लिया। अगर इस समय का इस्तेमाल इन्फ्रास्ट्रक्चर दुरुस्त करने में लगाया गया होता तो आज संक्रमित लोगों को अमानवीय अनुभवों से नहीं गुजरना पड़ता। कोविड संक्रमण से पीड़ित चंद लोगों की आपबीती सबकुछ साफ कर देती है।

पटना : घर पर पोस्टर चिपकाकर लोगों को बना रहे ‘अछूत’

निवेदिता पत्रकार हैं और उनके पति शकील डॉक्टर। दोनों वामदल के कार्यकर्ता हैं। निवेदिता सीपीआई की महिला शाखा- बिहार महिला समाज की कार्यकारी अध्यक्ष हैं जबकि उनके पति सीपीआई की प्रदेश परिषद के सदस्य हैं। शकील अपने एक मित्र डॉ. ए के गौड़ के साथ मिलकर जरूरतमंद लोगों के लिए गैरलाभकारी अस्पताल, पॉलीक्लीनिक चलाते हैं। निवेदिता को उनके परिवार, दोस्तों और डॉक्टरों ने तो कोरोना वायरस के जबड़े से सुरक्षित निकाल लिया लेकिन सरकारी अधिकारी संक्रमित लोगों के साथ जिस तरह का बर्ताव करते हैं, यह देखकर वह सदमे-सी स्थिति में हैं।

निवेदिता कहती हैं, “दोस्तों, रिश्तेदारों और डॉक्टर-नर्सों का लाख-लाख शुक्र है कि मैं ठीक हो गई लेकिन अगर सरकारी अमला संक्रमित लोगों के प्रति इतना अमानवीय और लापरवाह नहीं होता तो मेरे लिए यह लड़ाई ज्यादा आसान होती।” वह कहती हैं: “मेरा बेटा पुश्किन लॉकडाउन लगने से कुछ ही दिन पहले 22 मार्च को दिल्ली से आया। कुछ ही दिन बाद हमने घर की दीवार पर एक पोस्टर चिपका पाया जिसमें लोगों को हमसे मिलने-जुलने से सावधान किया गया था।” बाद में पुश्किन का कोविड टेस्ट हुआ और वह निगेटिव निकला। लेकिन हमारी दीवार पर वह पोस्टर लगा ही रहा।

शकील ने पुलिस वालों से पोस्टर हटाने के लिए काफी कहा लेकिन उन्होंने बात नहीं मानी। अंततः शकील ने स्वास्थ्य सचिव से बात की, तब जाकर उस पोस्टर को हटाया गया।

उनके लिए 23 जुलाई से एक अजीब-सा दौर शुरू हुआ। डॉ. ए के गौड़ पॉलीक्लीनिक में रोगियों को देख रहे थे जब उन्हें कोरोना के कुछ लक्षण महसूस हुए। सरकारी अस्पताल से एंबुलेंस नहीं आने पर डॉ. शकील अपनी कार से डॉ. गौड़ को पटना एम्स ले गए। डॉ. गौड़ को अस्पताल पहुंचाने के बाद डॉ. शकील ने एहतियातन अपना टेस्ट कराया तो वह पॉजिटिव निकले। बाद में निवेदिता का भी रिजल्ट पॉजिटिव आया और उनकी हालत ज्यादा गंभीर हो गई क्योंकि वह पहले से ही अस्थमा की रोगी थीं। उन्हें सांस लेने में दिक्कत होने लगी और डॉ. शकील ने उन्हें अपने दोस्त डॉक्टर डॉ. सत्यजीत सिंह के रुबन अस्पताल में भर्ती करा दिया जहां उन्हें ऑक्सीजन, ड्रिप वगैरह चढ़ाया गया।

Published: undefined

निवेदिता कहती हैं, “उनदो नर्सों- रोजी और प्रतिमा को नहीं भूल सकती। उन्होंने अपने परिवार के सदस्य की तरह मेरी देखभाल की। एक बार प्रोटेक्टिव किट पहनने के बाद आठ घंटे तक वे न तो वे खा सकती थीं, न पी सकती थीं और नही टॉयलेट जा सकती थीं। फिर भी वे अपना काम हंसते-हंसते कर रही थीं। लेकिन मुझे सरकारी अधिकारियों की लापरवाही समझ नहीं आती जो रोगी और डॉक्टर, दोनों को भगवान के भरोसे छोड़ देते हैं।”

शकील कहते हैं, “प्रदेश और केंद्र- दोनों सरकारों में इस महामारी से निपटने की न तो इच्छाशक्ति है और न ही दृष्टि। लॉकडाउन घोषित होने के बाद के पांच महीनों के दौरान इन दोनों सरकारों ने कोरोना वायरस से मुकाबले के लिए कुछ नहीं किया। सरकार ने लॉकडाउन को ही महामारी का समाधान मान लिया। जबकि होना तो यह चाहिए था कि इस समय का इस्तेमाल मेडिकल इन्फ्रास्ट्रक्चर को मजबूत करने में किया जाता। इसका नतीजा सामने है- बड़ी तेजी से स्थिति नियंत्रण के बाहर होती जा रही है।”

Published: undefined

लखनऊ : 24 घंटे घुमाने-इंतजार कराने के बाद हृदय रोगी को मिला बेड

सुशांतो कुमार सेन 62 साल के हैं। वह हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) से रिटायर हुए हैं। कोरोना के फैलने के बाद से उन्होंने बाजार जाना छोड़ दिया है। वह कहते हैं: “ मैं सप्ताह में एक बार जाकर राशन-हरी सब्जी वगैरह ले आता हूं और उसके अलावा घर में ही रहता हूं। जानता हूं, स्थिति बुरी है। कुछ नहीं पता कि बाजार में आप जिससे बात कर रहे हैं, वह संक्रमित है या नहीं। इससे अच्छा तो घर में रहो।”

जुलाई के पहले सप्ताह में उनका टेस्ट पॉजिटिव आया। सेन कहते हैं, “पहले तो मैं निश्चिंत था कि यह भी और वायरल संक्रमण की तरह है और जल्द ही अच्छा हो जाऊंगा। लेकिन चरमराती सरकारी व्यवस्था के बारे में जब खबरें आने लगीं तो मैं घबरा गया। मैंने सुना कि अस्पतालों में रोगियों की भरमार है, बेड की मारामारी है। यहां तक कि कोविड वार्ड में काम करने वाले अस्पताल के कर्मचारियों को भी संक्रमित होने के बाद बेड के लिए 24-24 घंटे इंतजार करना पड़ रहा है। सैकड़ों कॉल करने और 24-48 घंटे के बाद एंबुलेंस आ रही हैं। स्थिति भयावह है।”

इंदिरा नगर इलाके में अपने घर में बैठे सेन उन दिनों को याद करते हुए कहते हैं, “मैंने सोचा था कि चूंकि मैं सीनियर सिटिजन हूं और हृदय रोगी भी, तो मेरे साथ ऐसा नहीं होगा। वैसे भी डॉक्टर भी कहते रहे थे कि चूंकि मुझे पहले से गंभीर बीमारी है तो मेरी खास देखभाल करनी होगी।” लेकिन उनका सारा भ्रम जाता रहा। वह कहते हैं: “19 जुलाई को मेरा रिजल्ट पॉजिटिव आया और मैंने तत्काल चीफ मेडिकल ऑफिसर के कार्यालय को जानकारी दे दी। उधर से जवाब मिला- एंबुलेंस आपको लेने आ रही है। तीन घंटे... छह घंटे.. 12 घंटे बीत गए। कई बार सीएमओ ऑफिस फोन किया। हर बार पूरी कहानी बताई लेकिन वही जवाब मिलता- एंबुलेंस आपको लेने आ रही है। उस रात सो नहीं सका, एंबुलेंस का इंतजार करता रहा।” आखिरकार 20 घंटे के बाद एंबुलेंस आई। दरवाजा खुला हुआ था और सेन को उसमें बैठ जाने को कहा गया, “एंबुलेंस की ओर जाते हुए मैंने मुड़कर देखा तो पड़ोसी अजीब नजरों से देख रहे थे। नजरें बचाता हुआ एंबुलेंस में जा बैठा। ग्लानि से भरा हुआ था क्योंकि पता था कि अब मोहल्ले को कंटेनमेंट जोन बना दिया जाएगाऔर लोग कहेंगे कि यह सब सेन के कारण हुआ।”

Published: undefined

सबसे पहले सेन को राम मनोहर लोहिया अस्पताल ले जाया गया। ड्राइवर के साथ वाले व्यक्ति (संभवतः वार्ड ब्याय ) ने कहा- अंकल, यहीं बैठो, अभी आया। वह करीब 15 मिनट बाद आया और जानकारी दी- इंचार्ज ने इंतजार करने को कहा है। सेन एंबुलेंस में बैठे रहे। एक घंटा बीत गया। अब सेन की तबियत कुछ बिगड़ती लगी। उन्होंने पूछा- कब तक इंतजार करना है? जवाब मिला- उन्होंने कहा है कि वे बताएंगे, लेकिन एंबुलेंस से नीचे नहीं उतरें। सेन कहते हैं, “ मैं चुप बैठ गया। मेरा तापमान बढ़ता महसूस हो रहा था और बोलने का मन नहीं हो रहा था। करीब चार घंटे के इंतजार के बाद कहा गया कि अस्पताल में कोई बेड नहीं है और हमें महानगर के किसी अस्पताल में जाना चाहिए। प्रशासन को कोविड संक्रमण के बारे में जानकारी दिए 24 घंटे से ज्यादा समय हो रहा था और अब तक मुझे किसी अस्तपताल में भर्ती तक नहीं कराया जा सका था।”

उसके बाद सेन को महानगर के सरकारी अस्पताल में ले जाया गया जहां उन्हें कोविड वार्ड की डॉर्मेट्री में भर्ती कराया गया।

Published: undefined

चंडीगढ़ : क्वारंटाइन सेंटर नहीं, इसे तो नकारात्मकता का केंद्र कहें!

मेरे पति को चंडीगढ़ के सुपर स्पेशि एलिटी अस्पताल में इलाज कराना था और इसी कारण मैं उना से निकलकर पति के साथ चंडीगढ़ आ गईं। इसी दौरान मुझे कुछ लक्षणों से कोरोना होने का संदेह हुआ और जब जांच कराई तो मैं वाकई पॉजिटिव थी। मैंने वापस उना आने का फैसला किया और कार चलाकर लौट गई। फिर प्रशासन को अपने पॉजिटिव होने की जानकारी दी और क्वारंटाइन सेंटर चली गई। क्वारंटाइन सेंटरों में घूम-घूमकर संक्रमित लोगों की मदद करने के दौरान मैं अक्सर रोगियों के लिए खाना वगैरह लेकर यहां आती रही थी लेकिन कभी अंदर नहीं गई थी। बहरहाल, वहां की स्थिति का अंदाजा मुझे अंदर जाने के बाद ही हुआ। सबसे पहली बात यह है कि ऐसे सेंटरों में जबर्दस्त नकारात्मकता होती है। पहले से ही आर्थिक दुश्वारियों का सामना कर रहे लोग अपने आपको एकदम निरीह समझने लगते हैं। इसमें भी वैसे उम्रदराज लोगों को ज्यादा परेशानी होती है जो स्मार्ट फोन चलाना नहीं जानते। ऐसे लोगों के लिए तीन बार खाने के अलावा करने को कुछ नहीं होता। दूसरी बात है सफाई की।

Published: undefined

यह समझने की बात है कि सोडियम हाइपो क्लोराइट का जरूरत से ज्यादा छिड़काव ठीक नहीं क्योंकि कई लोगों को इससे एलर्जी होती है। इस काल में समाज का व्यवहार भी अजीब हो गया है। मेरे मामले में पड़ोसियों ने मेरी बेटी की भी कोई मदद नहीं की। गांवों और गरीब इलाकों में स्थिति और बुरी है। लोग इससे जुड़े कलंक के कारण लक्षण उभरने के बाद भी जांच नहीं कराते। आधी-अधूरी जानकारी के कारण लोग ढेर सारा काढ़ा पीते रहते हैं जिससे कई दूसरी समस्याएं उभर जाती हैं। गांव के प्रधान समेत पंचायत सदस्यों को वैसे लोगों से मिलना चाहिए जो कोविड-19 के संक्रमण से ठीक हो गए हों। जब इन लोगों का भ्रम दूर होगा, तभी गांव के आम लोगों में फैली भ्रांतियां दूर होंगी। तेल-साबुन के प्रचार में जुटे स्टार्स को चाहिए कि वे कोरोना को लेकर लोगों में अकारण भय को दूर करने में मदद करें।

Published: undefined

Google न्यूज़नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें

प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia

Published: undefined