प्रिय प्रधानमंत्री मोदी जी,
जैसा कि आपसे वादा था, आज आपके लिए एचएएचके (हम अडानी के हैं कौन) श्रृंखला में प्रश्नों का तेरहवां सेट प्रस्तुत है। आज के प्रश्न इस बात से संबंधित हैं कि कैसे केंद्रीय मंत्रिमंडल के वरिष्ठ सदस्यों ने सार्वजनिक धन का उपयोग करके और अपने करीबी व्यवसायी मित्रों से अनु्ग्रह की गुहार लगाकर अडानी एंटरप्राइजेज के फॉलो-ऑन पब्लिक ऑफर (एफपीओ) की नैया पार लगाने का प्रयास किया।
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क्या यह सच है कि लंबे समय से व्यावसायिक संबंध रखने वाले तथा हमेशा सुर्खियों में बने रहने वाले एक केंद्रीय मंत्री ने गौतम अडानी की ओर से पांच-छह प्रसिद्ध व्यवसायियों को व्यक्तिगत रूप से कॉल किया और उन्हें गौतमभाई को शर्मिंदगी से बचाने के लिए उनके एफपीओ में अपने व्यक्तिगत धन का निवेश करने के लिए आग्रह किया? क्या यह विषय जांच के लायक हितों के टकराव का नहीं है? क्या इस केंद्रीय मंत्री ने आपके निर्देश पर यह काम किया?
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क्या अडानी एफपीओ को उबारने के लिए जिन व्यवसायियों पर दबाव डाला गया था, उन्हें यह आश्वासन दिया गया था कि ये सब कवायद गौतम अडानी की साख को बचाने के लिए है और एफपीओ को बाद में रद्द कर दिया जाएगा और निवेशकों को उनका पैसा वापस कर दिया जाएगा? क्या इस प्रासंगिक जानकारी को अधिकांश निवेशकों से छिपाना और केवल कुछ चुनिंदा लोगों के साथ साझा करना भारतीय प्रतिभूति नियमों का उल्लंघन नहीं है? क्या एफपीओ निवेशकों से इस तरह धोखा करना नैतिक है?
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अडानी एंटरप्राइजेज एफपीओ के आधारभूत निवेशकों में भारतीय जीवन बीमा निगम (299 करोड़ रुपये की बोली), भारतीय स्टेट बैंक कर्मचारी पेंशन फंड (99 करोड़ रुपये की बोली) और एसबीआई लाइफ इंश्योरेंस कंपनी (125 करोड़ रुपये की बोली) शामिल थे। सार्वजनिक स्वामित्व वाली इन संस्थाओं ने इस तथ्य के बावजूद एफपीओ में भाग लिया कि इशू मूल्य की तुलना में बाजार भाव काफी नीचे गिर गया था और एलआईसी व एसबीआई दोनों के पास पहले से ही अडानी समूह की इक्विटी का एक बड़ा हिस्सा था। क्या एलआईसी और एसबीआई को करोड़ों भारतीयों की बचत को एक बार फिर से अडानी समूह को उबारने के लिए निवेश करने के निर्देश जारी किए गए थे?
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