प्रिय प्रधानमंत्री मोदी जी,
जैसा कि वादा किया था, आपके लिए आज का तीन सवालों का सेट प्रस्तुत है। हम अडानी के हैं कौन (#HAHK) श्रृंखला की बारहवीं कड़ी।
11 फरवरी 2023 को हमने बंदरगाह क्षेत्र में अडानी समूह के एकाधिकार को सुगम बनाने में आपकी भूमिका पर सवाल उठाया था। आज के प्रश्न सार्वजनिक उपक्रम इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन (आईओसी) द्वारा अडानी के स्वामित्व वाले गंगावरम बंदरगाह में लिक्विड पेट्रोलियम गैस (एलपीजी) टर्मिनल का उपयोग करने के लिए किए गए विवादास्पद समझौते से संबंधित हैं।
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अब यह सर्वविदित है कि आपने अडानी को बंदरगाहों के कारोबार का विस्तार करने में सहायता करने के लिए आपके अधिकार क्षेत्र में उपलब्ध सभी साधनों का उपयोग किया है, चाहे वह बिना बोली की प्रक्रिया को अपनाए बंदरगाह रियायतें देना हो या व्यापारिक समूहों पर आयकर के छापे डलवाकर उन्हें अपनी मूल्यवान परिसंपत्तियाँ अडानी को बेचने के लिए बाध्य करना हो। सवाल है कि आप जानबूझकर सार्वजनिक क्षेत्र को कमजोर क्यों कर रहे हैं, जिन्हें भारत के नागरिकों के हित में संचालित करने का उत्तरदायित्व आपकी सरकार पर है।
आपकी सरकार ने महाराष्ट्र में दिघी बंदरगाह के लिए जवाहरलाल नेहरू पोर्ट ट्रस्ट द्वारा 2021 की बोली को पहले ही रोक दिया था, जो अंततः अडानी की झोली में चली गई। अब हमें पता चला है कि आईओसी (इंडियन ऑयल कार्पोरेशन), जो पहले सरकार द्वारा संचालित विशाखापत्तनम बंदरगाह के माध्यम से एलपीजी का आयात कर रही थी, को अब इसके बजाए पड़ोस के गंगावरम बंदरगाह का उपयोग करने के लिए तैयार किया जा रहा है और वह भी "आपूर्ति लो या भुगतान करो" जैसे एक प्रतिकूल अनुबंध के आधार पर। क्या आप भारत के सार्वजनिक क्षेत्र को केवल अपने मित्रों को और समृद्ध बनाने के उपकरण के रूप में देखते हैं?
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आईओसी ने स्पष्ट किया है कि उसने अडानी पोर्ट्स के साथ केवल एक "गैर-बाध्यकारी समझौता ज्ञापन" पर हस्ताक्षर किए हैं और "अभी तक" किसी “आपूर्ति लो या भुगतान करो” जैसे बाध्यकारी समझौते पर हस्ताक्षार नहीं किए है। क्या अडानी पोर्ट्स ने अनजाने में इस खेल को अंतिम रूप देने से पहले इसका खुलासा कर दिया था? क्या ऐसे समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर स्पष्ट रूप से उस दिशा का संकेत नहीं दे रहे हैं, जिसमें आईओसी को धकेला जा रहा है? क्या यह तथ्य कि “आपूर्ति लो या भुगतान करो” अनुबंध पर हस्ताक्षार होने ही वाले थे, इस वास्तविकता को उजागर नहीं करते हैं कि अडानी की बंदरगाह को एलपीजी के आयात के लिए प्रमुख बंदरगाह बनाया जा रहा था, न कि अन्य ऐसी कई बंदरगाहो में से एक, जैसा कि आईओसी ने कहा है?
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आईओसी में सरकारी उपक्रम भारतीय जीवन बीमा निगम 9,400 करोड़ रुपए के मूल्य की 8.3% हिस्सेदारी के साथ एक प्रमुख शेयरधारक है, और अडानी पोर्ट्स और एसईज़ेड में यह 1,130 करोड़ रुपए के मूल्य की 9.1% हिस्सेदारी के साथ एक प्रमुख शेयरधारक भी है। सरकारी शेयरधारकों द्वारा निर्धारित मानकों के अनुसार व्यापक जांच (ड्यू डिलीजेंस) नदारद क्यों है? आईओसी शेयरधारकों के हितों के संरक्षण की निगरानी कौन कर रहा है? या यह लूट आपकी उदार नज़र और बंधे हाथों के कारण जारी है?
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