आंदोलनकारी किसानों और मोदी सरकार के नुमाइंदों के बीच आज एक बार फिर विवादित कृषि कानूनों पर बात हो रही है। कई दौर की बातचीत बेनतीजा रही है, मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा और कोर्ट के आदेश पर इन कानूनों के अमल पर रोक लगा दी गई है। साथ ही कोर्ट ने एक कमेटी बना दी है, जिसका काम किसानों और सरकार से बातचीत कर मुद्दे का समाधान निकालना है। लेकिन कमेटी में शामिल लोगों पर किसानों को सख्त एतराज है क्योंकि इसमें शामिल 4 में से तीन सदस्य खुले तौर पर विवादित कृषि कानूनों का समर्थन करते रहे हैं। किसानों का तो यहां तक कहना है कि जिन लोगों ने कानून बनाया, उन्हें ही कमेटी का सदस्य बना दिया गया है। इस बीच सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त कमेटी के 4 में से एक सदस्य ने खुद को इससे अलग कर लिया है और कहा है कि वे किसानों के साथ हैं।
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इस प्रकाश में किया माना जाए कि आज यानी शुक्रवार 15 जनवरी को होने वाली बैठक से कोई नतीजा निकलेगा। इसे नीचे 10 बिंदुओं में समझने की कोशिश करते हैं कि वस्तुस्थिति क्या है:
इस बैठक से पहले ही किसानों का रुख साफ है कि बातचीत का एजेंडा सिर्फ और सिर्फ इन कृषि कानूनों की वापसी होना चाहिए। यह कैसे होगा इस पर बात हो, तभी कोई सहमति बनेगी
सरकार पहले ही इन कानूनों को वापस लेने से इनकार कर चुकी है। सरकार का तर्क है कि ये क्रांतिकारी कानून हैं जिनसे किसानों का जीवन बदल जाएगा, लेकिन किसान कह रहे हैं कि इससे उनकी रोजी-रोटी छिनने का खतरा पैदा हो गया है
सरकार कानून वापसी की बात सुनने को तैयार नहीं है, बल्कि उसका कहना है कि किसान इन कानूनों के जिन प्रावधानों पर आपत्तियां हैं उन्हें सामने रखें। इस तरह किसान और सरकार दोनों ही एक रुख नहीं हैं।
आंदोलनकारी किसानों ने पहले ही साफ कर दिया है कि वे सुप्रीम कोर्ट द्वारा 12 जनवरी को गठित कमेटी के सामने पेश नहीं होंगे और न ही उससे कोई बात करेंगे
सुप्रीम कोर्ट इन तीनों कानूनों के अमल या क्रियान्वयन पर रोक लगा चुका है, शायद उसका इरादा ‘किसानों की भावनाओं का आदर करना’ था।
लेकिन इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के दखल से मामला और उलझ गया है। किसानों ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित कमेटी को ‘सरकारी’ घोषित कर दिया है, क्योंक इसके सदस्य सार्वजनिक तौर पर इन नए विवादित कानूनों की वकालत करते रहे हैं।
विवादित कानूनों से खेत के कारोबार में लगी पाबंदियां खत्म किए जाने की बात है, भंडारण पर आवश्यक वस्तु अधिनियम 1955 के तहत लगे प्रतिबंध हटाने की बात है और किसानों को लिखित समझौतों से कांट्रेक्ट फार्मिंग करने की छूट दी गई है
किसानों का तर्क है कि इन बदलावों से किसान बड़े कार्पोरेट की दया पर निर्भर हो जाएंगे जो अंतत: उनकी जमीनों पर कब्जा कर लेंगे
सुप्रीम कोर्ट द्वारा इन कानूनों के अमल पर रोक लगाए जाने से सरकार को तो थोड़ी राहत मिली है, क्योंकि उसे अब इन कानूनों को लागू करने के लिए किसानों की शर्ते मानने की जरूरत फिलहाल नहीं है
किसानों ने साफ कर रखा है कि वे सिर्फ और सिर्फ सरकार से बात करेंगे, इस तरह उन्हें इन कानूनों को वापस लेने के लिए दबाव बनाने का मौका मिलेगा
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