महाराष्ट्र के वर्धा लोकसभा सीट पर भी पहले चरण में लोकसभा चुनाव के लिए 11 अप्रैल को वोट डाले जांएगे। वर्धा में हमेश से ही कांग्रेस और बीजेपी के बीच ही मुकाबला रहा है। यहां इस बार भी कांग्रेस और बीजेपी के बीच सीधा मुकाबला है। बीजेपी की ओर से यहां पर रामदास तडस और कांग्रेस की ओर से चारुलता टोकस मैदान में हैं। वहीं बहुजन समाज पार्टी ने यहां से शैलेश कुमार अग्रवाल को उतारा है। फिलहाल इस सीट से बीजेपी के रामदास तडस सांसद हैं। 2014 लोकसभा चुनाव में रामदास तडस ने कांग्रेस के उम्मीदवार के सागर मेघे को हराया था।
वर्धा लोकसभा क्षेत्र कभी कांग्रेस का गढ़ हुआ करता था। यहां 38 साल से ज्यादा कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार सांसद रहे। पहले आम चुनाव के साथ ही यह लोकसभा सीट भी अस्तित्व में आया। 1952 के पहले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के उम्मीदवार श्रीमन नारायण अग्रवाल जीते। इसके अगले तीन लोकसभा चुनाव 1957, 1962 और 1967 में कांग्रेस के टिकट पर कमलनयन बजाज वर्धा से सांसद बने। 1971 में जगजीवन गणपतराव कदम कांग्रेस की टिकट पर चुनकर आए। उनके बाद 1977 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर संतोष राव गोडे जीते। इसके बाद कांग्रेस ने एक बार फिर से यहां से लगातार तीन बार चुनाव जीते। 1980, 1984 और 1989 में कांग्रेस के टिकट पर वसंत राव साठे चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंचे। 1991 के चुनाव में पहली बार कांग्रेस के इतर कोई और पार्टी का उम्मीदवार चुनाव जीतने में कामयाब रहा। यहां से माकपा के रामचंद्र घंगारे सांसद चुने गए। इसके अगले 1996 के चुनाव में बीजेपी का यहां से खाता खुला, जब पहली बार विजय मुडे बीजेपी के टिकट पर लोकसभा पहुंचे। इस जीत के बाद कांग्रेस और बीजेपी के बीच यहां सीधी टक्कर हो रही है। हालांकि अगले दो चुनाव में फिर से कांग्रेस का ही कब्जा रहा। 1998 में यहां कांग्रेस के दत्ता मेघे जीते। उनके बाद 1999 में कांग्रेस की प्रभाराव, 2004 में भाजपा के सुरेश वाघमारे, 2009 में दोबारा कांग्रेस के दत्ता मेघे जीतकर संसद पहुंचे। लेकिन 2014 में फिर बीजेपी के रामदास तडस चुनाव जीते।
वर्धा लोकसभा क्षेत्र के अतर्गत 6 विधानसभा सीटें आती है। ये सीटें हैं वर्धा, हिंगणघाट, देवली, धामणगांव रेलवे और मोर्शी। इनमें से तीन विधानसभा सीट वर्धा, हिंगणघाट और मोर्शी पर बीजेपी का कब्जा है। जबकि देवली, आर्वी और धामणगांव रेलवे विधानसभा सीट कांग्रेस कांग्रेस के खाते में है।
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