बीजेपी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह के बाद यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ही सर्वाधिक डिमांड वाले नेता हैं। लेकिन इस बार पूर्वांचल में उनके गढ़ माने जाने वाली सीटों- गोरखपुर, देवरिया और संतकबीर नगर, में जिन लोगों को टिकट दिया गया है, उनमें से दो हाल-हाल तक योगी के विरोधी रहे हैं। इसलिए माना यह भी जाने लगा है कि योगी की तथाकथित लोकप्रियता से परेशान मोदी-शाह इस तरह की चुनौती खड़ी कर रहे हैं कि- अगर बीजेपी हारी तो तो ठीकरा योगी पर और किसी तरह जीत हो गई तो वजह बताई जाएगी मोदी लहर।
गोरखपुर योगी आदित्यनाथ की परंपरागत लोकसभा सीट है। लेकिन यहां पिछले साल हुए उपचुनाव में एकजुट विपक्ष से बीजेपी को हार का मुंह देखना पड़ा था। तब भी जबकि बीजेपी प्रत्याशी उपेन्द्र दत्त शुक्ल के पक्ष में योगी ने 24 जनसभाएं की थीं। एसपी के टिकट पर पहली बार मैदान में उतरे प्रवीण निषाद ने गोरक्षपीठ के दो दशक पुराने तिलिस्म का खात्मा कर दिया था।
बादमें योगी के समर्थकों ने यह हवा उड़ाकर अपने नेता का चेहरा बचाने का प्रयास किया कि शुक्ला योगी की पसंद नहीं थे इसीलिए बीजेपी के ज्यादातर समर्थक वोटिंग के दिन नेपाल सैर पर चले गए या फिर घरों से निकले ही नहीं। घटे वोट प्रतिशत का ही नतीजा था कि शुक्ल को हार का सामना करना पड़ा।
इस बार बीजेपी ने इस सीट पर भोजपुरी फिल्मों के अभिनेता रवि किशन को उम्मीदवार बनाया है। उनका पूरा नाम रवि किशन शुक्ला है। रवि किशन ने पिछला लोकसभा चुनाव जौनपुर से कांग्रेस टिकट पर लड़ा था जहां उनकी जमानत जब्त हो गई थी। गोरखपुर से उनकी उम्मीदवारी की घोषणा के बाद कुछ बीजेपी समर्थकों ने भी सोशल मीडिया पर रवि किशन की एक पुरानी फोटो शेयर की जिसमें वह साड़ी पहने हुए हैं।
वैसे, रवि किशन ने जनवरी में हुए गोरखपुर महोत्सव के दौरान ही गोरखपुर से चुनाव लड़ने की इच्छा जाहिर की थी। लेकिन तब इसे किसी ने गंभीरता से नहीं लिया था। इन दिनों यूपी में आम चर्चा है कि योगी एक खास जाति के लोगों को तरजीह दे रहे हैं। रवि शुक्ला की उम्मीदवारी इसलिए बहुत कुछ कहती है।
दरअसल, बीजेपी का एक खेमा बराबर प्रचारित कर रहा था कि संगठन से धर्मेन्द्र सिंह या किसी और नाम पर सहमति बनती है तो पार्टी को ब्राह्मणों की नाराजगी झेलनी पड़ेगी। धर्मेन्द्र सिंह को योगी का पसंद माना जा रहा था। वैसे, बीच में पिपराइच से बीजेपी विधायक महेन्द्र पाल सिंह का नाम भी लिया जाने लगा था। बल्कि महेन्द्र पाल सिंह के समर्थकों ने तो मिठाइयां तक बांट दी थी।
वहीं, संतकबीर नगर से बीजेपी ने निषाद पार्टी के अध्यक्ष संजय निषाद के बेटे और गोरखपुर उपचुनाव में एसपी टिकट पर जीते प्रवीण निषाद पर दांव लगाया है। उपचुनाव में एसपी की जीत से योगी की नेतृत्व क्षमता पर जिस तरह उंगली उठी थी, उससे समझा जा सकता है कि योगी, प्रवीण को कितना पसंद करते होंगे।
वैसे भी, पिछले महीने गोरखपुर में आरक्षण की मांग कर पैदल मार्च कर रहे प्रवीण और उनके समर्थकों पर पुलिस ने बर्बर लाठीचार्ज किया था। इसमें प्रवीण निषाद के हाथ में क्रैक भी आ गया था। वैसे, निषाद पार्टी गोरखपुर सीट के कुछ इलाकों में भले ही दखल रखती हो, इससे बाहर उसका बहुत आधार नहीं है। ऐसे में योगी नहीं चाहते थे कि निषाद पार्टी को एनडीए का अंग बनाया जाए।
लेकिन इसके अध्यक्ष संजय निषाद ने यूपी के मंत्री सिद्धार्थनाथ सिंह के जरिये केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा को साधा और फिर बीजेपी के राष्ट्रीय नेतृत्व ने योगी के अनमनेपन के बावजूद गठबंधन को मंजूरी दे दी। खैर, संत कबीरनगर में प्रवीण निषाद को एसपी-बीएसपी गठबंधन उम्मीदवार भीष्म शंकर तिवारी से कड़ी टक्कर मिलनी है।
पूर्व बीजेपी अध्यक्ष डॉ. रमापति राम त्रिपाठी को पूर्व मंत्री कलराज मिश्रा का टिकट काटकर देवरिया से उतारा गया है। डॉ. रमापति जूताकांड से सुर्खियों में आए संतकबीर नगर के बीजेपी सांसद शरद त्रिपाठी के पिता हैं। शरद ने जिस तरह सरकारी बैठक में विधायक पर जूते बरसाए थे, उसके बाद उन्हें टिकट देना पार्टी के लिए मुमकिन नहीं था। लेकिन शरद का टिकट काटकर ब्राह्मण वोटों को मैनेज करना मुश्किल होता इसलिए उनके पिता डॉ. रमापति को उम्मीदवार बनाया गया है।
वैसे, रमापति का परिचय यह भी है कि वह प्रधानी से लेकर विधानसभा तक का चुनाव हार चुके हैं। एक और खास बात ये कि डॉ. रमापति और योगी आदित्यनाथ में टकराव नई बात नहीं है। योगी आदित्यनाथ साल 2007 में हुए विधानसभा चुनाव में डॉ. रमापति पर टिकट बेचने का आरोप लगाकर बगावत कर चुके हैं। डॉ. रमापति के बेटे शरद त्रिपाठी ने मेहदावल के जिस बीजेपी विधायक राकेश सिंह बघेल पर जूते बरसाए थे, वह भी योगी के करीबी हैं। राकेश बघेल योगी के समानांतर संगठन हिन्दू युवा वाहिनी के भी प्रमुख पदाधिकारी रहे हैं।
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