लोकसभा चुनाव 2019

बिहार में हर जगह लग रहे ‘रोड नहीं तो वोट नहीं’ के नारे, जेडीयू-बीजेपी की सरकार के मुंह पर तमाचा

लोकसभा चुनाव के शुरुआत के साथ बिहार में लोगों ने इतनी जगह वोट बहिष्कार का ऐलान किया कि प्रधानमंत्री से मुख्यमंत्री तक के नाम पर चल रहीं सड़क निर्माण योजनाओं के दावे की हवा निकल गई। ये बहिष्कार बीजेपी-जेडीयू की डबल इंजन सरकार को हकीकत का आइना दिखाते हैं।

फोटोः सोशल मीडिया
फोटोः सोशल मीडिया 

राष्ट्रीय जनता दल और कांग्रेस के साथ मिलकर विधानसभा चुनाव में बहुमत हासिल करने वाले नीतीश कुमार ने जब अचानक महागठबंधन से धोखा कर बीजेपी का दामन थामा तो केंद्र और राज्य दोनों जगह एनडीए की सरकार का फायदा गिनाते हुए बिहार के लिए उसे ‘डबल इंजन’ की सरकार का नाम दिया गया। इस डबल इंजन की चर्चा खूब हुई लेकिन लोकसभा चुनाव के दौरान एनडीए के किसी प्रत्याशी के मंच से कोई बड़ा नेता इसकी चर्चा नहीं कर रहा है।

बिहार में प्रचार के लिए आने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी केंद्र की योजनाओं के गुण गा रहे हैं, तो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बिहार की योजनाओं से आगे नहीं बढ़ रहे हैं। इसकी एक बड़ी वजह बार-बार सामने आ रही वोट बहिष्कार की खबरें हैं। राज्य में सड़कों के लिए आम लोगों ने इतनी जगहों पर वोट बहिष्कार का ऐलान किया है कि प्रधानमंत्री से मुख्यमंत्री तक के नाम पर बिहार में चल रही सड़क निर्माण योजनाओं के दावे की हवा निकल गई।

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लोकसभा चुनाव के पांचवें चरण में 6 मई को सीतामढ़ी, मधुबनी, सारण, मुजफ्फरपुर और हाजीपुर जबकि छठे चरण में 12 मई को वाल्मीकिनगर, पूर्वी चंपारण, पश्चिमी चंपारण, शिवहर, वैशाली, सीवान, महाराजगंज और गोपालगंज सीटों पर वोटिंग है। दोनों चरणों में वोट बहिष्कार की खबरें अब आनी शुरू हो गई हैं।

ग्रामीण सड़कों का जाल खड़ा करने का दावा करने वाली डबल इंजन सरकार की वोटरों ने हवा निकाल दी है। शायद ही कोई एक लोकसभा क्षेत्र हो जिसमें ‘रोड नहीं तो वोट नहीं’ के नारे नहीं गूंजे हों। लोकसभा चुनाव की आचार संहिता लागू होने के बाद से लगातार ऐसी खबरें आ रही थीं और संबंधित क्षेत्र में मतदान की तारीख के 15 दिन पहले से हर जगह यह गूंज तेज होती रही। बहुत सारे ऐसे इलाकों में निर्वाचन आयोग ने अपनी जिम्मेदारी समझते हुए वोटरों को मना लिया लेकिन कई इलाके के लोग नहीं माने और उन्होंने वोट देने से इंकार कर दिया।

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29 अप्रैल को मुंगेर सीट के लखीसराय विधानसभा क्षेत्र के हलसी में एक बूथ पर वोट बहिष्कार हुआ। मुंगेर वही सीट है, जहां जेडीयू ने अपने कद्दावर नेता और मुख्यमंत्री के सबसे करीबी राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह को जिताने के लिए पूरी ताकत झोंक दी। इस बार चुनाव में सरकारी तंत्र के बेजा इस्तेमाल की खबरें सबसे ज्यादा मुंगेर से ही आईं क्योंकि यहां सीधे तौर पर नीतीश कुमार की प्रतिष्ठा फंसी हुई है। इतना कुछ होने के बावजूद रोड के नाम पर यहां एक जगह वोट नहीं पड़ना अपने आप में डबल इंजन सरकार के मुंह पर तमाचा है।

इससे पहले, यानी तीसरे चरण में झंझारपुर लोकसभा सीट पर चुनाव के दौरान निर्वाचन आयोग की टीम झंझारपुर अनुमंडल के ही लखनौर प्रखंड के दीप गांव को लेकर परेशान थी। गांव के खरंजे को सड़क में बदलने की मांग के साथ लोगों ने वोट बहिष्कार का ऐलान किया था। अररिया सदर प्रखंड के महिषाकोल झमटा सहित आधा दर्जन गांवों के वोटरों ने परमान नदी के झमटा महिषाकोल घाट पर चचरी पुल की जगह स्थायी पुल की मांग के लिए वोट बहिष्कार का ऐलान किया।

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इसके साथ ही खगड़िया सीट पर बेलदौर विधानसभा क्षेत्र के तौफिर गढ़िया बूथ के मतदाताओं ने रोड नहीं बनने के कारण वोट बहिष्कार किया था। खगड़िया के ही परबत्ता विधानसभा क्षेत्र में नवटोलिया स्थित मध्य विद्यालय के बूथ के साथ इंदिरानगर और धनखेता के लोगों ने भी इसी मांग को लेकर मतदान का बहिष्कार किया था।

जिस समय खगड़िया में वोट बहिष्कार हो रहा था, लगभग उसी समय निकटवर्ती बेगूसराय लोकसभा क्षेत्र में निर्वाचन से जुड़े अफसरों को दो इलाके के लोगों के नारों ने परेशान कर रखा था। बेगूसराय-रोसड़ा रोड से अंदर बूढ़ी गंडक नदी से घिरे थाथा गांव तक सड़क की मांग गूंजती रही।

केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह की प्रतिष्ठा से जुड़े बेगूसराय में ही मोहनपुर और गम्हरिया गांव को जोड़ने वाली पुलिया के निर्माण की मांग के साथ लोग नारेबाजी कर रहे थे। भुईधारा पुल के नाम से चर्चित यह पुलिया 1987 की बाढ़ में कई जगहों से टूटी थी। वक्त के साथ और जर्जर होती पुलिया पर लोग जुगाड़ के सहारे चलते रहे, लेकिन इस बार पुलिया निर्माण के लिए आंदोलन खड़ा कर निर्वाचन आयोग तक अपनी बात पहुंचा ही दी।

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इससे पहले, दूसरे चरण में किशनगंज के पाठामारी प्रखंड में दल्ले गांव के पास मेची नदी पर पुल की दशकों पुरानी मांग को लेकर छह वार्ड के सारे वोटरों ने मतदान नहीं किया था। भागलपुर लोकसभा क्षेत्र में गोपालपुर विधानसभा के छह बूथों पर हजारों लोगों ने रोड के नाम पर ही वोट नहीं दिया। निकटवर्ती बांका सीट पर जेडीयू ने इस बार अपने कामकाज का दावा करते हुए प्रत्याशी दिया था, लेकिन यहीं अमरपुर के धिमड़ा, धोरैया के झिटका और पंजवारा के चंडीडीह में वोटरों ने सड़क की मांग के साथ वोट बहिष्कार किया।

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वैसे, देखा जाए तो डबल इंजन सरकार को हकीकत का आइना दिखाने वाले वोट बहिष्कार का सिलसिला पहले चरण से ही शुरू हो गया था। गया लोकसभा क्षेत्र के शेरघाटी में बेला गांव के लोगों ने वोट बहिष्कार किया था। परैया प्रखंड में करहट्टा पंचायत के सिकंदरपुर में, पीराचक, कोंच प्रखंड के सीताबिगहा और कल्याणपुर में, इमामगंज के लुटुआ पंचायत में गेजना आदि के वोटरों ने भी ऐसी ही मांग को सामने रखते हुए वोट बहिष्कार किया।

पहले चरण में ही नवादा के वारिसलीगंज विधानसभा क्षेत्र के बलियारी बडीहा, गोविंदपुर विस के बजबारा, रजौली विस के बूथ पर रोड के लिए वोट बहिष्कार की खबर ने डबल इंजन सरकार के कामकाज और उसकी दुर्गति दिखा दी।

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