बीजेपी मध्य प्रदेश विधानसभा का चुनाव क्या हारी, लोकसभा चुनाव के लिए प्रत्याशी चयन में फूंक-फूंक कर कदम रख रही है। उसने कई सांसदों के टिकट काटने की घोषणा की और कुछ के बारे में बताया कि वे चुनाव लड़ रहे हैं। लेकिन जो महत्वपूर्ण मानी जाने वाली सीटें हैं, उन पर उम्मीदवार तय करने में उसे भारी मशक्कत करनी पड़ रही है। इन पंक्तियों के लिखे जाने तक तो यही हालत है।
भोपाल सीट को ही ले लीजिए। बीजेपी इसे सेफ सीट कहती रही है। लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को अब तक यहां से अपने प्रतिद्वंद्वी के नाम का इंतजार है। कई नाम लिए गए। इनमें पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी थे। इस रिपोर्ट के लिखे जाने तक साध्वी प्रज्ञा का नाम भी लिया जा रहा था।
यही हाल विदिशा का है। यहां से विदेश मंत्री सुषमा स्वराज सांसद रही हैं। इस बार उन्होंने पहले ही चुनाव नहीं लड़ने की घोषणा कर दी है। उन्होंने अपनी मंशा करीब एक साल पहले ही बता दी थी। तब से कहा जा रहा था कि शिवराज की पत्नी साधना सिंह यहां से तैयारी शुरू कर चुकी हैं। इन दिनों लालकृष्ण आडवाणी की बेटी प्रतिभा आडवाणी का नाम भी इस सीट के लिए चल निकला है।
इसी तरह, इंदौर में लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन से लगभग जबरन ही कहवा लिया गया कि वह चुनाव नहीं लड़ रहीं। लेकिन बीजेपी अब तक उनका विकल्प ही खोज रही है। वैसे, इंदौर के शरद जोशी ने कहा जिस तरह से सुमित्रा ताई का टिकट काटा गया, वह बीजेपी के परंपरागत वोटरों को भी अच्छा नहीं लगा।
यह सब तब है जबकि पिछले लोकसभा चुनाव में बीजेपी को मध्य प्रदेश की 29 में से 27 सीटें मिली थीं। बाद में हुए उपचुनाव में बीजेपी ने कांग्रेस के हाथों एक सीट खो दी थी। पर विधानसभा चुनाव में सत्ता कांग्रेस के हाथ में आने के बाद से यहां का चुनावी तापमान 2014 से जुदा है। बीजेपी यहां भी राष्ट्रीय सुरक्षा और उग्र राष्ट्रवाद के सहारे है जबकि कांग्रेस बेरोजगारी, किसान और आदिवासियों के मुद्दों को उभार रही है।
कांग्रेस घोषणा पत्र में गरीबों को न्यूनतम आय गारंटी योजना के तहत वार्षिक 72 हजार देने की बात की चर्चा यहां दूरदराज के गांवों में भी हो रही है। इस तरह की योजना की चर्चा मंदसौर में दूसरे ढंग से हो रही है। यहां 2018 में पुलिस गोलीकांड में 6 किसानों की मौत हो गई थी। फिर भी, पिछले विधानसभा चुनाव में भी इस इलाके से बीजेपी प्रत्याशी की जीत हुई थी।
लेकिन कमलनाथ सरकार की कर्जमाफी की घोषणा का इस क्षेत्र में असर देखा जा सकता है। मनावर के किसान संतोष सिंह कहते हैं किसान को उपज की वाजिब कीमत चाहिए। कभी प्राकृतिक आपदा, तो कभी बिजली-पानी का संकट किसान की मेहनत पर पानी फेर देता है। किसान कर्ज लेता है और कर्ज ना चुका पाने की स्थिति में आत्महत्या करने को विवश हो जाता है। वे कहते हैं, “हम तो ऐसी सरकार चाहते हैं जो हमारी समस्याओं को समझने और महसूस करने वाली हो।”
वैसे, मालवा-निमाड़ और महाकौशल के नतीजे ही राज्य में सियासी वर्चस्व तय करते रहे हैं। आदिवासी बहुल इन क्षेत्रों में कोई 13 जिले हैं। बीजेपी के प्रदेश प्रमुख राकेश सिंह महाकौशल के जबलपुर के ही निवासी हैं और वहीं से चुनाव मैदान में हैं। इसी इलाके में मुख्यमंत्री कमलनाथ की पुरानी संसदीय सीट छिंदवाड़ा भी है। इस बार उनके बेटे नकुलनाथ इस सीट से कांग्रेस प्रत्याशी हैं।
इंदौर, सीहोर समेत मालवा-निमाड़ को भी बीजेपी का गढ़ माना जाता रहा था। लेकिन पिछले विधानसभा चुनाव में किसान आंदोलन और एससी-एसटी एक्ट के चलते सवर्ण आंदोलन ने पासा पलटकर वोटों से कांग्रेस की झोली भर दी। बीजेपी इस इलाके में 28 सीटों पर सिमट गई।
प्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ ने अपनी टीम में चार आदिवासी चेहरों को शामिल किया है जबकि पिछली शिवराज सरकार में आदिवासी कोटे से दो विधायकों को ही मंत्री बनाया गया था।
(मध्य प्रदेश से सत्यप्रिय शास्त्री की रिपोर्ट)
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