वर्ष 2009 लोकसभा चुनाव के नतीजे चौंकाने वाले रहे। किसी को उम्मीद नहीं थी कि यूपीए एकबार फिर से सत्ता में वापस आएगी। 2009 का चुनाव पांच चरणों में (16 अप्रैल, 22 अप्रैल, 30 अप्रैल, 7 मई औ 13 मई) को संपन्न हुए। 16 मई को मतगणना और चुनावों का परिणामों की घोषणा हुई। कांग्रेस के नेतृत्व वाले संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) ने लोकसभा का नेतृत्व करने का जनादेश जीता। श्रीमती मीरा कुमार लोकसभा अध्यक्ष बनीं और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को दोबारा देश का नेतृत्व करने का अवसर मिला।
इस चुनाव में 8.3 लाख मतदान केंद्र बनाए गए थे। उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, केरल, तमिलनाडु और राजस्थान में यूपीए ने बेहतर प्रदर्शन किया और यूपीए प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह की अगुवाई में सरकार बनाने की स्थिति में आ गई। इस चुनाव में न सिर्फ बीजेपी की अगुवाई वाली एनडीए की हार हुई, बल्कि गैर-कांग्रेसी गैर-बीजेपी सरकार का सपना पालने वाले वाममोर्चे का भी अब तक सबसे खराब प्रदर्शन हुआ। इस चुनाव में तमिलनाडु में जयललिता, आंध्र प्रदेश में महाकुटुमी, केरल और पश्चिम बंगाल में वाम मोर्चे की हार, बिहार में लालू और पासवान की करारी हार हुई।
इस चुनाव के बाद डॉ. मनमोहनसिंह पंडित जवाहर लाल नेहरू के बाद ऐसे पहले व्यक्ति बने, जिन्होंने प्रधानमंत्री के रूप में लगातार 10 साल का कार्यकाल पूरा किया। पांच चरणों में हुए 15वीं लोकसभा के चुनाव में करीब 57 प्रतिशत वोटिंग हुई। इस चुनाव में कांग्रेस को 205 सीटें मिली थीं, जबकि यूपीए को करीब 262 सीटें। सरकार बनाने के लिए यूपीए को अन्य दलों का भी समर्थन लेना पड़ा था।
बीजेपी ने इस चुनाव में वरिष्ठ नेता और अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में उपप्रधानमंत्री रहे लालकृष्ण आडवाणी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया, लेकिन फिर भी बाजी एनडीए के हाथ नहीं लगी। बीजेपी को 116 सीटों से ही संतोष करना पड़ा। इस चुनाव में मुलायमसिंह यादव के नेतृत्व वाली समाजवादी पार्टी 23 सीटें जीतकर तीसरे सबसे बड़ी पार्टी बनी। बीएसपी (21) और जदयू (20) क्रमश: चौथे और पांचवें स्थान पर रहीं।
कांग्रेस को करीब 29 फीसदी वोट प्राप्त हुए थे। जबकि भारतीय जनता पार्टी को करीब 19 फीसदी वोट मिले। कांग्रेस की सहयोगी पार्टी तृणमूल कांग्रेस के 19 उम्मीदवार चुनाव जीतने में कामयाब रहे। वहीं डीएमके के 18 उम्मीदवार संसद पहुंचे। वहीं बीजेपी की सहयोगी दल जनता दल (यूनाइटेड) को 20 सीटें हासिल हुई थी। वहीं शिवसेना के 11 उम्मीदवार चुनाव जीतने में कामयाब रहे। सीपीआई 4 और सीपीएम मात्र 16 सीटों पर सिमट गई।
इस चुनाव में थर्ड फ्रंड और फोर्थ फ्रंट ने भी चुनाव लड़ा था। बीएसपी थर्ड फ्रंट का हिस्सा थी, जिसमें बीजेडी और जनता दल (एस) जैसी पार्टियां शामिल थीं, जबकि एसपी चौथे मोर्चे का हिस्सा थी, जिसमें लालू के राष्ट्रीय जनता दल और पासवान के एलजेपी जैसे दल शामिल थे।
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