लोकसभा चुनाव के अंतिम चरण में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित उनके दो कैबिनेट सहयोगियों और एक पूर्व कैबिनेट सहयोगी की साख दांव पर है। खास बात यह कि ये चारों सीटें एक साथ लगी हुई हैं। सातवें चरण में मोदी, रेल राज्यमंत्री मनोज सिन्हा, स्वास्थ्य मंत्री अनुप्रिया पटेल और पूर्व केंद्रीय मानव संसाधन राज्य मंत्री बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष महेन्द्र नाथ पाण्डेय की परीक्षा होनी है।
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वाराणसी सीट से मैदान में हैं। इसके अलावा मनोज सिन्हा गाजीपुर से, अनुप्रिया पटेल मिर्जापुर से और महेंद्र नाथ पांडेय चंदौली से उम्मीदवार हैं। ये तीनों सीटें वाराणसी से लगी हुई हैं। नरेंद्र मोदी के बीते पांच सालों में बनारस में किए गए विकास कार्यो की परीक्षा भी होनी है।
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मोदी भले ही वाराणसी का विकास करने का दावा करते हों, लेकिन लोगों की नाराजगी देख कर लगता नहीं की वारणसी की जनता उनके काम से खुश है। नोटबंदी और जीएसटी जैसे फैसले से व्यवसायी वर्ग तो नाराज है ही, विश्वनाथ कॉरिडोर के नाम पर कई लोगों का घर उजाड़ दिया गया। कई सड़क पर आ गए। इस बार मोदी को इनकी नाराजगी भी झेलनी पड़ेगी। कांग्रेस ने अजय राय को दोबारा प्रत्याशी बनाया तो वहीं एसपी-बीएसपी गठबंधन से शालिनी यादव चुनाव मैदान में हैं। इसके अलावा बहुबाली अतीक अहमद निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में मैदान में हैं, तथा बीजेपी से नाराज सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के सुरेंद्र प्रताप सहीत कुल 31 प्रत्याशी वाराणसी में ताल ठोक रहे हैं।
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अंतिम चरण में राज्य की जिन 13 सीटों पर मतदान होना है, उनमें से 11 सीटें बीजेपी के पास, एक सीट उसकी सहयोगी अपना दल और एक सीट समाजवादी पार्टी (एसपी) के पास है। अब इन्हें संजोने की जिम्मेदारी मोदी के कंधों पर है।
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गाजीपुर से रेल और संचार राज्यमंत्री मनोज सिन्हा बीजेपी से एक बार फिर चुनाव लड़ रहे हैं। तीन बार सांसद और एक बार मंत्री रह चुके सिन्हा के लिए इस चुनाव में चुनौतियां ज्यादा कठीन हैं। एसपी-बीएसपी गठबंधन ने अफजल अंसारी को प्रत्याशी बनाया है। इस लोकसभा क्षेत्र में लगभग दो लाख मुस्लिम मतदाता हैं। अंसारी की क्षेत्र में अच्छी पकड़ मानी जाती है। अफजल एक बार पहले भी गाजीपुर से सांसद रह चुके हैं। वह बाहुबली माफिया मुख्तार अंसारी के भाई हैं। कांग्रेस ने यहां से अजीत कुशवाहा को मैदान में उतारा है। इस लोकसभा सीट पर सवर्ण मतदाताओं की संख्या निर्णायक मानी जाती है। ओबीसी, एससी और अल्पसंख्यकों की भी ठीक-ठाक संख्या है। वहीं ओमप्रकाश राजभर की पार्टी का साथ छोड़ने से इनले लिए मुश्किलें और बढ़ गई है। इस क्षेत्र में राजभर समाज का बड़ा वोट बैंक है। यह सिन्हा को नुकसान पहुंचा सकता है। ऐसे में मनोज सिन्हा के लिए लड़ाई कठिन बताई जा रही है।
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बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष महेन्द्र नाथ पाण्डेय ने 2014 के चुनाव में बनारस से लगी सीट चंदौली पर पार्टी का 15 सालों का सूखा समाप्त किया था। चंदौली पहले भी बीजेपी का गढ़ माना जाता रहा है। यहां से 1991, 1996 और 1999 के आम चुनावों बीजेपी के आनंद रत्न मौर्या ने लगातार तीन जीत दर्ज की थी। लेकिन 1999 और 2004 के चुनाव में आनंद रत्न का जनाधार कम हो गया और वह दूसरे नंबर पर रहे। 2014 के चुनाव में बीएसपी के अनिल कुमार मौर्य को मात देकर महेंद्र नाथ ने चंदौली में फिर से कमल खिलाया था। लेकिन इस बार एसपी-बीएसपी गठबंधन से पार पाना उनके लिए आसान नहीं होगा। वहीं कांग्रेस ने शिवकन्या कुशवाहा चुनावी मैदान में हैं जो उनकी परेशानियों को और बढ़ा रहे हैं।
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अपना दल की अध्यक्ष अनुप्रिया पटेल ने मिर्जापुर से 2014 में मोदी लहर में जीत हासिल की थी। 2016 में अनुप्रिया पटेल को मंत्रिमंडल में जगह दी गई। उन्हें स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय में राज्य मंत्री बनाया गया। उनके मंत्री हो जाने की वजह से इस सीट का महत्व इस बार और ज्यादा बढ़ गया है। जातिगत वोटों के सहारे वह चुनाव मैदान में हैं। कुर्मी वोटर और बीजेपी के पारंपरिक वोट से उन्हें अच्छी खासी उम्मीद है। लेकिन एसपी-बीएसपी गठबंधन यहां भी उनके लिए मुश्किल खड़ा कर रहा है।
आईएएनएस के इनपुट के साथ
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