हिमाचल प्रदेश में मनाली के पास स्थित करीब 1500 आबादी वाला गांव प्रीणी है। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का दूसरा घर गांव प्रीणी में है। अटल बिहारी वाजयेपी की यादें संजोये इस गांव के लोगों को आज भी मलाल है कि उनके देहांत के बाद बीजेपी के किसी बड़े नेता ने पलटकर गांव की तरफ नहीं देखा। गांव के लोगों को उम्मीद थी कि पीएम मोदी कम से कम एक बार तो प्रीणी जरूर आएंगे। लेकिन ऐसा हुआ नहीं और कोई नहीं आया। यहां तक कि अटल बिहारी वाजपेयी की अस्थियां जब विसर्जन के लिए प्रीणी आई थीं, तब भी पीएम मोदी नहीं आए थे। प्रीणी के लोगों का यह कहते-कहते दर्द छलक पड़ता है।
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प्रीणी में अटल बिहारी वाजपेयी के घर के पीछे ब्यास नदी बहती है। सेब के पेड़ों से घिरा बेहद खूबसूरत जगह पर स्थित पूर्व प्रधानमंत्री का घर है। अटल बिहारी वाजपेयी इसे अपना दूसरा घर मानते थे और साल में एक या दो बार जरुर आते थे। अभी भी उनकी बेटी नमिता भट्टाचार्या यहां आती हैं। अटल बिहारी वाजपेयी हफ्ते भर तक यहां ठहरते भी थे। जब वह यहां होते थे तो ‘आम’ लोगों से लेकर ‘खास’ लोगों तक की लाइनें लगी होती थी। कई बार मोदी भी उस कतार में शामिल रहे हैं।
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साल 1991 से अटल बिहारी वाजपेयी के घर की रखवाली कर रहे सुखराम ने बताया कि उनसे मिलने वालों में बीजेपी से ज्यादा कांग्रेस के लोग होते थे। सुखराम ने कहा कि अटल बिहारी को इससे मतलब नहीं होता था कि मिलने वाला किस पार्टी का है। वह किसी के साथ भेदभाव नहीं करते थे। यही उनकी शख्सियत थी। वह बड़े नेता थे।
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सुखराम का भी दर्द छलका और उन्होंने कहा कि उनके देहांत के बाद किसी ने पलटकर नहीं देखा। सुखराम ने कहा कि सब मतलब के लोग हैं। उसने बताया कि अटल बिहारी वाजपेयी के देहांत के बाद अस्थियां विसर्जन के लिए यहां आई थीं। इस दौरान काफी लोग आए, लेकिन मोदी नहीं आए।
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प्रीणी प्रवास के दौरान उनकी दिनचर्या को लेकर सुखराम ने बताया, “वह सुबह उठकर प्रीणी से तीन किमी दूर गांव शुरू तक सैर करने जाते थे। रास्ते में गांव के लोगों से बेहद अपनत्व के साथ मिलते और हाल चाल पूछते थे।” उन्होंने अटल बिहारी वाजपेयी की दिनचर्या पर बात करते हुए आगे बताया कि घर में मंदिर भी बनवाया, जहां वह पूजा करते थे। वे अक्सर अपने गांव से मनाली शहर भी जाते थे और जहां मनु मार्केट में शर्मा सब्जी वाले के यहां बैठते थे। वहीं वह मनाली स्वीट्स की मिठाई मंगाते थे, जो उन्हें बेहद पसंद थी।
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उन्होंने आगे बताया, “वाजपेयी जी ने इस गांव में बहुत काम करवाए हैं। उन्होंने लोगों के लिए पक्की सडकें, बच्चों के लिए स्कूल बनवाये हैं। पूरे गांव को पक्का घर दिया। सोलर लाइट्स लगवाईं। गांव में ईको-टूरिज्म के लिए काफी काम किया। आर्ट से जुडा संस्थान बनवाया, जहां आर्ट सिखाई जाती है।” इस दौरान बात करते-करते सुखराम का बड़े बीजेपी नेताओं की बेरुखी का दर्द भी छलकता रहा। सुखराम ने बताया कि 2005 के बाद तबीयत खराब होने के कारण वह यहां नहीं आ पाए।
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अटल के घर के पास ढाबे में काम कर रहे गुरुदेव ने कहा कि अटल बिहारी वाजपेयी होते तो क्या यहां सडकों का यह हाल होता। वहीं किराने की दुकान के मालिक देशराज राणा ने कहा कि अटल बिहारी वाजपेयी के बाद किसी बीजेपी नेता ने प्रीणी की तरफ पलट कर नहीं देखा। बेशक अटल बिहारी वाजपेयी के नाम पर बीजेपी आज भी वोट मांगती है।”
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प्रीणी में अटल के बनवाए स्कूल के बाहर मिली गोदावरी, सिम्मीदेवी और सागरा अटल बिहारी वाजपेयी के साथ खिचवाई अपनी तस्वीर लेकर आईं। तीनों महिलाओं ने बताया कि अटल बिहारी वाजपेयी ने यहां पर अपना जन्मदिन मनाते थे। अटल बिहारी वाजपेयी के नाम का स्कूल प्रांगण में एक पेड भी लगा है।
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सिम्मी देवी ने बताया कि अटल जी जब भी आते थे पूरे गांव को बुलाते थे। सभी से मिलते थे। गोदावरी ने बताया कि जन्मदिन पर वह गांव के खाने को बेहद पसंद करते थे। लाल चावल, शहद और घी डालकर बनने वाली गिच्चे नाम की डिश वह बनाकर लाती थीं, जिसे वह पसंद करते थे। गोदावरी ने कहा कि अटल पूरे गांव के लोगों के साथ कोई औपचारिकता नहीं करते थे। वहीं बुधराम ने बताया कि उनके देहांत पर पूरा गांव रोया था। जब अस्थियां गांव आई थीं तब भी पूरा गांव एकत्रित हुआ था और हर किसी की आंख में आंसू थे।
बुधराम ने बताया कि 1994 में जब कुल्लू घाटी में बाढ़ आई थी तो अटल जी ने पैदल घाटी का दौरा किया था। सडकें ठीक करवाईं थी। आज उन्हीं सडकों की हालत देखिए कोई पूछने वाला नहीं है। जब तक अटल ठीक थे तब तक प्रीणी प्रवास के दौरान ऋषि जमदग्नि के मंदिर में दर्शन करने वह जाते थे।
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मंदिर प्रांगण में मिले खेमराज, अनिल शर्मा, केशवराम और लाल चंद का कहना था कि दुनिया से चले जाने के बाद कौन पूछता है। यही अटल के साथ भी हुआ। सब मतलब के साथी हैं। प्रीणी गांव के हर घर में अटल के साथ लोगों की तस्वीरें हैं, लेकिन बीजेपी की राज्य और केंद्र सरकार की बेरुखी का दर्द भी है।
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