लोकसभा चुनाव 2019

कभी गढ़ रहीं तीसरे दौर की सीटों पर भी भगवा दल की हालत खराब, छत्तीसगढ़ में नए चेहरे भी नहीं रिझा पा रहे वोटर को

लोकसभा चुनाव के दो चरणों में पिछड़ने के बाद बीजेपी को तीसरे चरण की सीटों पर भी संभलने का मौका नहीं मिल रहा है। तीसरे चरण की कई सीटों पर बीजेपी ने अपने वर्तमान सांसदों के टिकट काट नए चेहरों पर दांव खेला है, लेकिन इससे भी पार्टी का भला होता नहीं दिख रहा है।

फोटोः सोशल मीडिया
फोटोः सोशल मीडिया 

लोकसभा चुनाव के तीसरे चरण में भी बीजेपी को संभलने का मौका नहीं मिल रहा है। एनडीए में झगड़ा, लोगों में उपेक्षा का भाव और पार्टी सांसदों के प्रति गुस्से से बीजेपी को समझ में ही नहीं आ रहा कि आगे क्या किया जाए। उत्तर प्रदेश में बीजेपी ने अपने कई निवर्तमान सांसदों के टिकट काट दिए और कई सीटों पर इस बार नए चेहरे दिए हैं। मगर इससे भी पार्टी का भला होता नहीं दिख रहा है क्योंकि मोदी सरकार के कामकाज से आजिज वोटर गैर बीजेपी दलों के पक्ष में बहुत सोच-समझकर एक मुश्त वोटिंग कर रहा है, जाति-धर्म से ऊपर उठकर अपना वोट बेकार नहीं होने दे रहा।

बीजेपी प्रत्याशियों की परेशानी यही है। पिछली बार मुरादाबाद सीट बीजेपी 43 प्रतिशत वोट लेकर जीत गई थी। उस वक्त एसपी और बीएसपी ने अलग-अलग चुनाव लड़ा था। अगर पिछली बार के इन दोनों के मतों को ही जोड़ दें, तो वह 49.53 प्रतिशत हो जाता है। यहां मुस्लिम वोटरों की संख्या लगभग 40 फीसदी है।

रामपुर में भी यही हाल था। बीजेपी को महज 37.42 फीसदी वोट मिले थे जबकि यहां एसपी-बीएसपी का वोट 43.43 फीसदी था। बीजेपी ने इस बार फिल्म अभिनेत्री जया प्रदा को उम्मीदवार बनाया है। वह पहले एसपी में थीं, लेकिन इस बार कमल के सहारे हैं। कांग्रेस ने यहां से संजय कपूर को उम्मीदवार बनाया है। गठबंधन की तरफ से आजम खान उम्मीदवार हैं जिनकी जया प्रदा से तनातनी हमेशी सुर्खियों में रही है। इस सीट पर मुस्लिम वोटरों की संख्या लगभग 45 फीसदी है।

संभल का हाल थोड़ा हटकर है। यहां मुसलमान वोटरों की संख्या 24 फीसदी है। पर यह सीट समाजवादियों की मानी जाती रही है। बीजेपी ने अपने निवृत्तमान सांसद सत्यपाल सैनी को रिपीट किया है लेकिन माना जाता है कि ऐसा इसलिए कि उनसे बेहतर उम्मीदवार पार्टी को मिल नहीं सका। यहां सैनी समाज की भी अच्छी संख्या है। पिछले चुनाव में बीजेपी को यह सीट सिर्फ 34.08 प्रतिशत वोट पाने से मिल गई थी। जीत का अंतर 5000 वोटों से भी कम था। लेकिन यहां पिछली बार एसपी-बीएसपी का वोट प्रतिशत 57.49 था। समझा जा सकता है कि यहां बीजेपी की क्या स्थिति रह सकती है।

फिरोजाबाद सीट की स्थिति थोड़ी दूसरी है। पिछले चुनाव में बीजेपी यहां दूसरे नंबर पर थी। यहां एसपी जीती थी। लेकिन पिछली बार एसपी-बीएसपी का मत प्रतिशत 59.15 फीसदी था। बदायूं में भी यही हाल है। मुलायम सिंह यादव ने पिछला चुनाव मैनपुरी सीट से भारी मतों से जीता था। एटा और आंवाला में बीजेपी जरूर थोड़ा संघर्ष करने की हालत में लगती है। बरेली में बीजेपी को कड़ी टक्कर मिलती दिख रही है। पीलीभीत में वरुण गांधी और सुल्तानपुर में मेनका गांधी को जिन परेशानियों से जूझना पड़ रहा है, वह सबके सामने है ही।

छत्तीसगढ़ वाटरलू

यहां बीजेपी को विधानसभा चुनाव में जिस तरह की करारी हार मिली, उससे तो बीजेपी 11 में से एक सीट भी नहीं जीत सकती। बीजेपी को भी इसका अंदाजा है, इसीलिए उसने सभी मौजूदा सांसदों के टिकट काट दिए हैं। लेकिन इससे भी उसकी मैदान में वापसी इसलिए संभव नहीं है क्योंकि बघेल सरकार ने अपने कई वायदे सत्ता संभालने के एक माह के अंदर ही पूरे कर दिए हैं। इसीलिए बीजेपी को लग रहा है कि लोकसभा चुनाव में उसकी हार का अंतर विधानसभा से भी बड़ा हो सकता है।

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