लोकसभा चुनाव 2019

बिहारः जमुई में क्या एलजेपी का ‘चिराग’ बच पाएगा आरएलएसपी के पंखे के सामने

बिहार की जमुई लोकसभा सीट से एनडीए में शामिल लोक जनशक्ति पार्टी (एलजेपी) ने पिछले लोकसभा चुनाव में तो आसानी से जीत दर्ज कर ली थी, लेकिन आगामी लोकसभा चुनाव में यहां एलजेपी और विपक्षी दलों के महागठबंधन में शामिल आरएलएसपी के बीच कड़ा मुकाबला माना जा रहा है।

फोटोः सोशल मीडिया
फोटोः सोशल मीडिया 

नक्सल प्रभावित जमुई सीट का महत्व ऐसे तो बिहार की दूसरी लोकसभा सीटों की तरह ही है, लेकिन चुनाव में एलजेपी प्रमुख और केंद्रीय मंत्री राम विलास पासवान के पुत्र और निर्वतमान सांसद चिराग पासवान के एक बार फिर चुनावी मैदान में उतरने और महागठबंधन की ओर से आरएलएसपी के भूदेव चौधरी के ताल ठोकने से मुकाबला काफी दिलचस्प बन गया है।

बॉलीवुड से राजनीति में आए चिराग 2014 के आम चुनाव में यहां से आरजेडी के सुधांशु शेखर को पराजित कर लोकसभा पहुंचे थे। साल 2009 के लोकसभा चुनाव में एनडीए प्रत्याशी भूदेव चौधरी ने आरजेडी के उम्मीदवार श्याम रजक को 29,747 मतों से पराजित कर दिया था। इस तरह देखा जाए तो पिछले दो चुनावों से इस सीट पर एनडीए का कब्जा रहा है।

हालांकि, इस बार चुनाव में बिहार में राजनीतिक समीकरण बदले हुए हैं। पिछले चुनाव में जहां एलजेपी और आरएलएसपी, एनडीए के घटक दल थे, वहीं जेडीयू ने अपने बलबूते चुनाव लड़ा था। इस बार एलजेपी और जेडीयू, एनडीए का हिस्सा हैं, लेकिन आरएलएसपी अब आरजेडी नीत महागठबंधन का घटक बन गई है। तालमेल के तहत एनडीए में जमुई सीट एलजेपी के पास ही है लेकिन महागठबंधन में यह आरएलएसपी के खाते में गई है।

जमुई क्षेत्र के महत्व का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि प्रधानंमत्री नरेंद्र मोदी ने बिहार में अपने चुनावी अभियान की शुरुआत यहीं से की है। तारापुर, शेखपुरा, सिकंदरा, जमुई, झाझा और चकाई जैसे छह विधानसभा वाले इस लोकसभा क्षेत्र में मतदाताओं की कुल संख्या करीब 17 लाख है।

बिहार के अन्य लोकसभा क्षेत्रों की तरह इस सीट पर भी जातीय समीकरण से चुनाव परिणाम प्रभावित होते रहे हैं। हालांकि एलजेपी के नेता और एनडीए प्रत्याशी चिराग इसे सही नहीं बताते। उन्होंने कहा, “मुझे सभी जातियों का समर्थन मिल रहा है। पांच साल में मैंने इस क्षेत्र में कई विकास कार्य करवाए हैं। विकास कार्य को लेकर ही हम लोग मतदाताओं के बीच जा रहे हैं और लोग समर्थन भी दे रहे हैं।”

वैसे, जमुई में चुनाव को लेकर लोगों में दिलचस्पी भी देखी जा रही है। बस अड्डे से लेकर नुक्कड़ों तक में राजनीति की चर्चा जरूर हो रही है, मगर इन चर्चाओं का मुख्य बिंदु नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी ही हैं। 80 प्रतिशत से ज्यादा कृषि पर आश्रित लोगों का यह संसदीय क्षेत्र भले ही अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हो, पर सभी प्रत्याशियों की नजर सवर्ण मतदाताओं को आकर्षित करने में लगी है।

जमुई के तारापुर इलाके में एक चाय की दुकान पर बैठे लोगों में शामिल रंजन देश हित की बात करते हुए मोदी के साथ जाने की बात करते हैं तो वहीं चाय की चुस्की लेते हुए एक अन्य युवक मोदी पर वादा खिलाफी का आरोप लगाते हैं। इसके बाद वहां दो गुटों में इसे लेकर चर्चा गरम हो जाती है।

के के एम कॉलेज के पूर्व प्राचार्य जय कुमार सिंह का कहना है कि भूदेव चौधरी की लोकप्रियता चिराग के मुकाबले कम है, जिस कारण चिराग अपनी पैठ मतदाताओं में बना पा रहे हैं। उन्होंने कहा कि मुकाबला कड़ा है, लेकिन अन्य चुनावों की तरह यहां जातीय समीकरणों को भी नकारा नहीं जा सकता। यादव, मुस्लिम और सवर्ण जाति की बहुलता वाले इस लोकसभा क्षेत्र में पिछड़ी जातियों की संख्या भी अच्छी खासी है।

हालांकि जिले के वरीय अधिवक्ता सीताराम सिंह कहते हैं, “महागठबंधन इस चुनाव में जहां पूरी तरह फूंक-फूंककर कदम रख रहा है और विरोधी को मात देने की लिए कोई कसर नहीं छोड़ना चाहता, वहीं चिराग के राजनीतिक कद के बढ़ने के कारण वे लोगों की पसंद बने हुए हैं। ऐसे में यहां मुकाबला कड़ा और दिलचस्प है। पिछले पांच साल में चिराग के प्रयास से जमुई में विकास के कई ऐसे कार्य हुए हैं, जो उन्हें जनता की पसंद बनाता है, जिसका उन्हें लाभ अवश्य मिलेगा।”

जंगल, पहाड़, और नदियों से घिरे जमुई संसदीय क्षेत्र में ऐसे तो कई क्षेत्रीय समस्याएं हैं, मगर इन समस्याओं की जड़ में नक्सलियों की पैठ को मुख्य कारण माना जाता है। ग्रामीणों का कहना है कि नक्सलियों की पैठ के कारण जहां इस क्षेत्र में विकास कार्य ठप हो जाते रहे हैं, वहीं लोगों का पलायन बदस्तूर जारी है। यहां पहले चरण के तहत 11 अप्रैल को मतदान होना है।

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