लोकसभा चुनावो में कर्नाटक को छोड़कर पूरे दक्षिण भारत ने बीजेपी को ठेंगा दिखा दिया। मोदी-शाह की जोड़ी का आंध्र प्रदेश और केरल में तो खाता तक नहीं खुला। वहीं तमिलनाडु और तेलंगाना में भी नाम मात्र को बीजेपी की मौजूदगी नजर आ रही है।
दक्षिण भारत से लोकसभा में 130 सांसद आते हैं। इन राज्यों में आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु, कर्नाटक, केरल और केंद्र शासित पुडुचेरी की एक सीट शामिल है। इन राज्यों में बीजेपी ने 2014 के मुकाबले बेहतर प्रदर्शन किया है, और उसकी सीट संख्या 17 से बढ़कर करीब 30 होती दिख रही है। इनमें सबसे ज्यादा सीटें उसे कर्नाटक से ही मिली हैं, जहां एक बार उसकी सरकार रह चुकी है।
यह नतीजे बताते हैं कि दक्षिण का विंध्याचल बीजेपी के लिए अभी भी टेढ़ी खीर ही बन हुआ है। हालांकि माना जा रहा था कि सबरीमला मंदिर के मुद्दे पर करीब महीने भर तक चले हंगामे का फायदा बीजेपी को मिलेगा और दक्षिण में उसके लिए द्वार खुलेगा, लेकिन ऐसा हो नहीं पाया है।
यह रिपोर्ट लिखे जाने तक तमिलनाडु में कांग्रेस-डीएमके गठबंधन ने लगभग सभी सीटों पर जीत दर्ज की है। तमिलनाडु में बीजेपी-एआईएडीएमके गठबंधन को शिकस्त मिली है और इसके प्रमुख उम्मीदवारों में से एक तमिलनाडु विधानसभा के डिप्टी स्पीकर एम थम्बीदुरै करूर से पिछड़ गए थे। यहां से कांग्रेस के ज्योतिमणि करीब एक लाख वोटों से आगे थे।
इस गठबंधन के जो प्रमुख उम्मीदवार पिछड़े हैं उनमें तमिलनाडु के मंत्री पी राधाकृष्णन का भी नाम है। इसके अलावा करुणानिधि की बेटी कनिमोझी, पूर्व टेलीकॉम मंत्री ए राजा, पूर्व केंद्रीय मंत्री टी आर बालू और दयानिधि मारन जैसे डीएमके नेताओं के साथ ही पी चिदंबरम के पुत्र कार्ति चिदंबरम बढ़त बनाए हुए थे।
तमिलनाडु की कोएम्बटूर सीट पर बीजेपी को अपनी जीत की उम्मीद थी, लेकिन यहां भी डीएमके-कांग्रेस गठबंधन की सहयोगी सीपीएम को बढ़त मिली है।
तमिलनाडु के पड़ोसी राज्य आंध्र प्रदेश में भी बीजेपी को कुछ हाथ नहीं लगा है। आंध्र प्रदेश की सभी 25 सीटों पर जगन रेड्डी की पार्टी वाईएसआरसीपी ने प्रचंड जीत हासिल की है। इसके साथ ही आंध्र प्रदेश विधानसभा के चुनावों में भी वाईएसआरसीपी को बहुमत मिला है।
कर्नाटक के अलावा दक्षिण भारत में आखिर बीजेपी पैर क्यों नहीं जमा पा रही, इस बार में नालसार हैदराबाद के प्रोफेसर हराती वगीसन कहते हैं कि, राम मंदिर, गाय, बालाकोट जैसे बीजेपी के भावनात्मक मुद्दों की दक्षिण भारत में कोई संभावना नहीं है और दक्षिण के लिए ये मुद्दे महत्वहीन हैं। वे कहते हैं कि, “इसके अलावा दक्षिण भारत में आम तौर पर बीजेपी को उत्तर भारत की पार्टी समझा जाता है और बीजेपी इस रुख को तोड़ने में नाकाम रही है।“
बीजेपी को दक्षिण में एक और चुनौती का सामना करना पड़ा है, वह है मजबूत क्षेत्रीय नेता। मसलन आंध्र में जगनमोहन रेड्डी और चंद्रबाबू नायडू हैं तो तमिलनाडु में एम के स्टालिन हैं। वहीं केरल में वाम मोर्चे और कांग्रेस की अगुवाई वाले यूडीएफ का उसके पास फिलहाल कोई तोड़ नहीं है।
मद्रास विश्वविद्यालय के प्रोफेसर रामू मणिवनन कहते हैं कि, “बीजेपी जिस तरह के हिंदुत्व की राजनीति करती है, उसकी दक्षिण भारत में कोई जगह नहीं है। मसलन एनईईटी का मसला. या फिर कावेरी विवाद या फिर स्टरलाइट जैसे मुद्दे तमिलनाडु के लिए अहम थे तो विशेष राज्य का दर्जा आंध्र प्रदेश के लिए मुख्य था। और बीजेपी के पास इन दोनों का कोई तोड़ नहीं था।”
कर्नाटक में कुछ साल पहले बीजेपी ने अपने कदम जमा लिए थे, इसीलिए वहां कथित तौर पर मोदी मैजिक चलता नजर आया। लेकिन इसके पीछे सत्तारूढ़ कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन की आपसी लड़ाई भी काफी हद तक जिम्मेदार है। इन मतभेदों के चलते चुनाव प्रचार में दोनों के दलों के बीच जो तालमेल दिखना चाहिए थे, वह नजर नहीं आया, और बीजेपी ने बाजी मार ली।
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